कोर्ट ने कहा-दोनों में सहमति होने के बावजूद चलेगा पॉक्सो केस

दिल्ली। एक नाबालिग पत्नी के पति के खिलाफ POCSO एक्ट के तहत केस दर्ज हुआ। आरोपी पति ने दिल्ली हाई कोर्ट में इसको चुनौती दी। उसकी याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि दोनों में सहमति के बावजूद पॉक्सो केस चलेगा। कोर्ट ने कहा कि अगर वह महिला की अपील पर आरोपी को छोड़ देगा तो इससे समाज में गलत मैसेज जाएगा।

कोर्ट ने कहा कि हम कम उम्र में विवाह को न्यायिक समर्थन नहीं दे सकते। जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे के साथ यौन संबंध सिद्ध होने पर पोक्सो अधिनियम के तहत अपराध पूर्ण हो जाता है।

कोर्ट ने क्या-क्या कहा?
कोर्ट ने आगे कहा कि संसद ने 18 वर्ष की आयु निर्धारित की है। कानून यौन सहमति को मान्यता नहीं देता, इसलिए कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए समानता के नाम पर सहमति से बने संबंधों को अपवाद नहीं लिख सकता। न्यायालय ने कहा, ऐसा करना व्याख्या से लेकर कानून तक की सीमा को लांघना होगा।

अदालत ने कहा कि दंपति के बीच संबंध और गहरे होने से पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध को वैध नहीं ठहराया जा सकता। नाबालिग की सहमति पारिवारिक दबाव का परिणाम हो सकती है।

यह है पूरा मामला?
एक महिला और उसके पति के बीच ऐसे समय संबंध स्थापित हुए थे, जब महिला नाबालिग थी। नतीजा ये हुआ कि महिला गर्भवती हो गई। उसने नाबालिग रहते हुए ही एक बच्चे को जन्म दिया। इस मामले में 2023 में केस दर्ज हो गया। महिला ने कोर्ट में अपील की कि दोनों शादीशुदा हैं और वह अपने पति के खिलाफ कोई एक्शन नहीं चाहती।

आरोपी के साथ-साथ उसके माता-पिता ने भी पोक्सो एक्ट और बाल विवाह की धारा के तहत दर्ज क्रिमिनल केस रद्द करने की मांग की थी। परिवार का तर्क था कि पीड़िता ने खुद कहा है कि वह आरोपी के खिलाफ कोई एक्शन नहीं चाहती। उसने कहा कि उसके साथ कभी सेक्सुअल असॉल्ट नहीं हुआ क्योंकि यह आपसी सहमति से बना रिश्ता था। लड़की अब बालिग हो गई।