झांसी। 16 दिसंबर को नॉर्थ सेंट्रल रेलवे मेंस यूनियन कारखाना शाखा झाँसी के तत्वाधान में कॉ. जॉन बेंजामिन पार्क में उनकी 126वी जयंती कारखाना शाखा अध्यक्ष कॉ. रामकुमार परिहार की अध्यक्षता में आयोजित किया गया।
इस दौरान विभिन्न वक्ताओं ने कॉ.जॉन बेंजामिन के जीवन पर प्रकाश डाला इसमें प्रमुख रूप से कॉ.आफाक अहमद ने कॉ. जॉन बेंजामिन के जीवन व संघर्ष पर विस्तृत रूप से प्रकाश डालते हुए उनके जीवन में घटित हुई घटनाओं को सभी साथियों को बताने का काम किया। कॉ जॉन बेंजामिन भारतीय मज़दूर आंदोलन के उन चंद नामों में शामिल हैं, जिन्होंने अपने विचार, साहस और संघर्ष से इतिहास में स्थायी जगह बनाई। उनका जन्म 16 दिसम्बर 1901 को हुआ। उनके पूर्वज पोढ़ी गढ़वाल (पीलीभीत क्षेत्र) के निवासी थे, जहाँ से उनका परिवार आगे चलकर बरेली ज़िले में आकर बसा। यह वही भूमि थी जहाँ उनके विचारों को आकार मिला और संघर्ष की चेतना ने जन्म लिया।
सन् 1917 में आप अपने पिताजी के साथ झांसी आ गये और झांसी कारखाना के थर्मल पावर हाउस में नौकरी करने लगे। सन् 1919 में आप लाहौर गए और वहां से लौटते वक्त अमृतसर आ गये, संयोग से उसी दिन जलियांवाला बाग में बड़ी सभा हो रही थी जहां जनरल डायर ने घेर कर गोलियां चलवा दी, एक गोली आपके बाएं हाथ की कोहनी को चीरती चली गई, आपके साथी अब्दुल रहमान जो आपके साथ ही थे उन्होंने फौरन आपको हॉस्पिटल ले जाकर इलाज कराया ।
कॉमरेड जॉन बेंजामिन का कार्यक्षेत्र जी.आई.पी. रेलवे (Great Indian Peninsula Railway) रहा, जो उस समय ब्रिटिश शासन की सबसे बड़ी रेलवे व्यवस्थाओं में से एक थी। रेलवे वर्कशॉप में काम करते हुए उन्होंने मज़दूरों की दुर्दशा—कम मज़दूरी, असुरक्षित कार्य-स्थिति और अमानवीय व्यवहार—को बहुत क़रीब से देखा। आप इटारसी में हुए अधिवेशन में जी आई पी आर के अध्यक्ष चुने गए। यहीं से उनके भीतर मज़दूरों के अधिकारों के लिए संगठित संघर्ष की चेतना विकसित हुई। वे धीरे-धीरे मज़दूरों के बीच एक विश्वसनीय, निर्भीक और सिद्धांतवादी नेता के रूप में पहचाने जाने लगे।
ऐतिहासिक हड़ताल
3 फरवरी 1930 को जी.आई.पी. रेलवे वर्कशॉप में एक ऐतिहासिक मोड़ आया। जब वर्कशॉप बंद हुई, तब बाहर मैदान में मज़दूरों की एक विशाल सार्वजनिक सभा आयोजित हुई। यह सभा भारतीय रेलवे मज़दूर आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। कॉ जॉन बेंजामिन की ओजस्वी और तर्कपूर्ण तक़रीर ने मज़दूरों में नया साहस भर दिया। उनकी भाषा में न तो उग्रता थी, न दिखावा—बल्कि सच्चाई और आत्मविश्वास था। यह वही दौर था जब मज़दूर आंदोलन ने ब्रिटिश हुकूमत को गंभीरता से सोचने पर मजबूर कर दिया। ये हड़ताल 40 दिनों तक चली, आप उस समय जी आई पी आर और झांसी रेलवे के अध्यक्ष थे।
मज़दूरों के हक़ में खड़े होने की क़ीमत उन्हें चुकानी पड़ी
सन 1946 में कॉमरेड जॉन बेंजामिन को रेलवे सेवा से पृथक (निलंबित/बर्ख़ास्त) कर दिया गया। यह फ़ैसला उनकी विचारधारा और मज़दूरों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रत्यक्ष परिणाम था।
इस अवसर पर केंद्रीय पदाधिकारी श्रीमती ऊषा सिंह, शाखा अध्यक्ष रामकुमार परिहार, पूर्व मुख्यालय मंडल के संयुक्त सचिव आफाक अहमद, ख़ेम चंद, पूर्व शाखा अध्यक्ष आशीष नायक, शाखा कोषाध्यक्ष सुनील कुमार, उपाध्यक्ष दयाशंकर यादव, राजेंद्र सिंह, युसूफ खान, बृजभूषण शाक्य अभिषेक रायकवार ,मनोज शाहू,संतोष कुमार वर्मा,मदन लाल,सुदामा राय,वीरेंद्र यादव ,अरविंद कुमार,रमेश ,के.के.निरंजन, आनंद, संजय बानोरिया, अर्चना वर्मा, रीना शाक्य आदि उपस्थित रहे।
मंच का संचालन युसूफ खान जी द्वारा किया गया।
अंत में शाखा अध्यक्ष कॉ.रामकुमार परिहार जी ने सभी का आभार प्रकट किया।














