• बुंदेलखंड साहित्य महोत्सव 2020 शुरू
  • बुन्देली संस्कृति से सरोबार हुआ झांसी
    झांसी। वीरांगना लक्ष्मीबाई की नगरी झांसी के इतिहास में जुड़े आज एक नए अध्याय में साहित्य, कला, संस्कृति, लोकगीत, लोकनृत्य के मानचित्र पर सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया। देश भर के एवं विशेषकर बुन्देलखण्ड क्षेत्र के नामी गिरामी साहित्यकारों और कलाकारों की उपस्थिति में बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव 2020 का उद्धघाटन मुख्य अतिथि झांसी मण्डल के आयुक्त सुभाष चंद्र शर्मा एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो जयंत विनायक वैशम्पायन सहित मंचासीन विशिष्ट जनों के दीप प्रज्जवलन कर किया।
    ऐतिहासिक किले के पास क्राफ्ट मेला मैदान में आयोजित समारोह को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि ने कहा की इस मंच से झांसी के किले की दिवार दिख रही है और स्वयं रानी इसकी साक्षी हैं कि उनके प्रागंण यह कार्यक्रम हो रहा है। सुभद्राकुमारी चौहान की रानी लक्ष्मीबाई पर लिखी पंक्तियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि रानी ने झांसी को भारत के मानचित्र पर अलग पहचान दी है। आज इस भूमि को यह महोत्सव समर्पित करते हुए हम सभी इस बात की आशा करते हैं यह झांसी की संस्कृति के वैश्विक प्रसार में सहायक होगा।
    महोत्सव के उदघाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय प्रो जेवी वैशम्पायन ने कहा कि बुन्देलखण्ड पिछड़ा नहीं सभी क्षेत्रों में समृद्ध है। विशेषकर सांस्कृतिक रूप से। चित्तौड़ की तरह झांसी के किले को वीरता का परिचायक बताते हुए उन्होंने झांसी में सांस्कृतिक उत्सव की इस पहल के लिये आयोजकों की सराहना की। जिलाधिकारी झांसी आंद्रे वामसी ने बुन्देलखण्ड के नाम के पीछे की कथा का जिक्र करते हुए कहा कि बुन्देलखण्ड का नाम बुंद से बुन्देली और फिर बुन्देलखण्ड पड़ा है। उन्होंने बताया कि आधुनिकता के दौर में भी अपनी संस्कृति तो पोषित करने का यह प्रयास एक नई पहल है। वरिष्ठ साहित्यकार एवं लेखिका मैत्रयी पुष्पा ने बुन्देलखण्ड मेेें एक साहित्य महोत्सव की शरूआत के साकार हो रहे सपने पर प्रसन्नता जाहिर की। उन्होंने बताया कि झांसी के लिए यह गौरव की बात है कि जो साहित्यकार अब तक केवल दिल्ली और अन्य बड़े स्थानों पर दिखते थे आज सभी झांसी में देखने और सुनने को मिलेंगे। पदमश्री कैलाश मड़वैया ने यह साहित्य समागम अपने में केवल को साहित्य तक ही सीमित नहीं है बल्कि कई विधाओं को समेटे है। झांसी की लोककलाओं के मर्मज्ञ हरगोविंद कुशवाहा ने राजा छत्रसाल की कथा का जिक्र करते हुए बुंदेली में पंक्तियों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया की आज से लगभग 20 वर्ष पूर्व ऐसा कार्यक्रम आयोजित हुआ था जिसमें 40 से अधिक लोकविधाओं की प्रस्तुति दी गयी थी। यह पहल लम्बे अर्से बाद हुई है लेकिन अब यह क्रम रूकेगा नहीं।
    इस अवसर पर सिने जगत के हस्ताक्षर एवं बुन्देली हृदय में बसने वाले राजबुन्देला ने कहा की यह हमारा अपना मंच बुन्देली संस्कृति को समर्पित है। निश्चित ही हमारी संस्कृति को विस्तार मिलेगा। इतिहासज्ञ मुकुन्द मेहरोत्रा एवं शिक्षा विद डा. नीति शास्त्री ने भी बुन्देली में बोल को सभी को आमंत्रित किया। महोत्सव के संयोजक डा पुनीत बिसारिया ने अतिथियों का स्वागत किया एवं दिन में होने वाले कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। आयोजन सचिव चंद्र प्रकाश ने सभी का आभार जताया। संचालन डा रेखा लगरखा एवं डा. सुनील त्रिवेदी ने किया। इस अवसर पर संयुक्त विकास आयुक्त चंद्रशेखर शुक्ला, उपाध्यक्ष झांसी विकास प्राधिकरण सर्वेश दीक्षित, प्रो. देवेश निगम, डा. रेखा पाण्डेय, डा. डीके भट्ट, प्रो. प्रतीक अग्रवाल, योगिता यादव, डा. मुन्ना तिवारी आदि के साथ झांसी के कई वरिष्ठजन एवं नागरिकगण उपस्थित रहे।
    कार्यक्रम स्थल पर विशाल पुस्तक मेला, राष्ट्रीय संगोष्ठी, कृषि विभाग की किसान जागरूकता संगोष्ठी, विविध प्रतियोगिताएं, हस्तशिल्प के स्टॉल, फूड कोर्ट, सभी वर्गों के लिए विविध आयोजन आदि आयोजित हो रहे हैं। तीन दिवसीय कार्यक्रम में प्रतिदिन सुबह 10 बजे से संगोष्ठी, मध्याह्न 12 बजे से साहित्य,बुन्देली, सिनेमा, पत्रकारिता, सोशल मीडिया, ललित कला, पर्यटन आदि विषयों पर परिचर्चा रखी गयी है। कार्यक्रम में देशविदेश के ख्यातलब्ध साहित्यकार, फिल्मकार, पत्रकार, सोशल मीडिया विशेषज्ञ, कलाविद आदि प्रतिभाग कर रहे है। प्रतिदिन अपराह्न 3 बजे से प्रतियोगिताएं आयोजित होंगीं जिसमें बुंदेलखंड को जानो, वधू स’जा, बेबी फैशन शो, फोटोग्राफी, रस्साकसी, मेंहदी आदि प्रतियोगिताएं शामिल हैं। सायं केसमय 6,30 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम रहेगी। इसमें बुन्देली लोक नृत्य, लोकगीत, भजन, कव्वाली, गज़़ल, ठुमरी, कोंच की रामलीला, कारास देव की गोट आदि आकर्षण का केन्द्र हैं। आयोजकों ने समारोह स्थल तक पहुंचने के लिए प्रतिदिन शाम 6 बजे दो बसों की व्यवस्था बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के गेट पर की गयी है। इन बसों से जनता और विद्यार्थियों को क्राफ्ट मेला मैदान तक सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने हेतु नि:शुल्क लाने-ले जाने की व्यवस्था है।