बीयु के जनसंचार और पत्रकारिता विभाग में उच्च शिक्षा नीति पर वेबिनार आयोजित
झाँसी। भारत की पहचान कभी भी आक्रमणकारी शक्ति के रूप में नहीं रही है. इतिहास में भारत विश्व में अपनी शिक्षा और बौद्धिक ज्ञान के कारण ही पहचाना जाता रहा है. नालन्दा, तक्षशिला और विक्रम विश्वविद्यालय जैसे उच्च शैक्षणिक संस्थानों के अवशेष आज भी हमारी बौद्धिक सम्पदा के प्रतिबिम्ब हैं. विगत कुछ शताब्दी वर्षों में शिक्षा की संरचना, उदेश्य, भाषा और सामग्री में कई परिवर्तन हुए. वर्तमान समाज आज इसी परिवर्तित शिक्षा की नीवं पर खड़ा है. भारत को विश्व में पुनः विश्व गुरु के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करने एवं विश्व का नेतृत्व करने के लिए एक नई शिक्षा नीति की आवश्यकता थी. 2020 की शिक्षा नीति निश्चित ही इसमें रोडमैप के रूप में कार्य करेगी. उक्त विचार वेबिनार के मुख्य अथिति प्रो. के.जी. सुरेश, कुलपति, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रिय जनसंचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपल ने उच्च शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार और जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग, बीयु द्वारा आयोजित ‘उच्च शिक्षा नीति में नया सवेरा’ विषय पर आयोजित वेबिनार में व्यक्त किये. उन्होंने कहा की इसके लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकार, निजी संस्थान और नागरिक समाज को मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है. वर्तमान में हमारे शिक्षकों और शिक्षार्थियों में कमी नहीं है क्यूंकि विश्व में भारतीय इंजिनियर, डॉक्टर्स, वैज्ञानिक और कंप्यूटर विशेषज्ञों का ही बोलबाला है. भारत में प्रतिभाओं का ना रुकने के कारण शोध के क्षेत्र में हमारी उदासीनता है. नई शिक्षा नीति में ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ नाम की एकल संस्था सभी शोध कार्यों को देखेगी. शिक्षा क्षेत्र में ६ प्रतिशत जीडीपी के आवंटन से शिक्षा और शोध दोनों ही क्षेत्र में बेहतर और सकरात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे. क्रेडिट बैंक, विषयों की चुनाव में स्वतंत्रता, मल्टी एंट्री और एग्जिट की व्यवस्था, वोकेशनल के साथ लाइफ स्किल आधारित शिक्षा आदि कुछ महत्वपूर्ण विषयों की उन्होंने जानकारी दी. उन्होंने कहा की शैक्षणिक समाज ने नई नीति का खुलेमन से स्वागत किया है. क्रियान्वयन को लेकर चिन्ताएं और संशय हैं. समय के साथ इनका हल निकल आएगा. वेबिनार में अध्यक्षीय उद्बोधन करते हुए प्रो. जे.वी. वैशम्पायन, कुलपति, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय,झाँसी ने कहा की नई शिक्षा नीति को लेकर शैक्षिक जगत में चर्चा का माहौल है. उन्होंने कहा की नई शिक्षा नीति निश्चित ही छात्रों के भौतिक और मानसिक विकास में सहायक होगी. यह नीति केवल प्रोफेशनलों का निर्माण नहीं करेगी बल्कि उनमें मानविकी गुणों का विकास कर उन्हें सामाजिक नागरिक बनाने का भी कार्य करेगी. इसके साथ गुणवत्तापूर्ण शोध के लिए मार्ग प्रशस्त करने में भी सहायक होगी. उन्होंने कहा की उच्च शैक्षणिक संस्थानों के विकास के लिए आवश्यक है की उन्हें प्रशासनिक और वित्तीय स्वतंत्रता और स्वायत्तता दी जाये. इससे संस्थान बेहतर रूप में कार्य कर पाएंगे. उन्होंने कहा की कुछ चुनौतियाँ भी हैं जैसे रिकॉर्ड का रख रखाव. सम्बद्ध कॉलेज का ना रहने पर वित्तीय संकट आदि. लेकिन मुझे लगता है शीघ्र ही इनका समाधान दूंढ लिया जायेगा. विशिष्ठ अथिति प्रो गोपाल सिंह, संकाध्यक्ष, मीडिया एवं जनसंचार विभाग, बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ ने कहा की वैश्विव स्तर पर हो रहे परिवर्तनों के सापेक्ष में नई शिक्षा नीति का शैक्षणिक समाज बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था. उन्होंने प्राथमिक शिक्षा में संरचात्मक परिवर्तन के निर्णय को सही बताया. इसके साथ ही मातृ और क्षेत्रीय भाषा पर आधारित शिक्षा के विषय में कहा की बालक अपनी भाषा में ही स्वाभाविक विकास और ज्ञान प्राप्त कर सकता है. सरकारी स्कूल इन्फ्रास्ट्रक्चर और अंग्रेजी भाषा के आधार पर ही पिछड़े हैं. इन दोनों कमियों को दूर कर उन्हें मुख्यधारा में लाया जा सकता है. भारतीय संस्कृति और परंपरा के साथ कौशल विकास आधारित यह शिक्षा नीति स्वाबलंबन और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में सफल होगी. इसके समावेशी रूप से समाज के हर तबके को शिक्षा मिलने का रास्ता प्रशस्त होगा. प्रो. सी.बी. सिंह संकाध्यक्ष, कला संकाय, बीयु ने विषय प्रवर्तक करते हुए विषय के मुख्या बिन्दुओं को रखा. डॉ कौशल त्रिपाठी, समन्वयक जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग ने सभी अथितियों का स्वागत किया. डॉ. सी.पी. पैन्यूली, सह आचार्य जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग ने सभी का आभार प्रकट किया. इस अवसर जय सिंह, उमेश शुक्ला, राघवेन्द्र दीक्षित, अभिषेक कुमार, सतीश साहनी, डॉ रश्मि गौतम, शास्वत सिंह के साथ ही प्रदेश और देश से अनेक प्रतिभागी उपस्थित रहे.