क्या साबित करना चाहते है भारत के रेल मंत्री ?
भारत। रेलवे की खामियां उजागर करने वाली आवाज़ों को चुप कराने की कोशिश ? मोदी सरकार के रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सोशल मीडिया पर रेलवे से जुड़े ‘फर्जी वीडियो’ फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी जारी की है। लेकिन क्या यह चेतावनी केवल फेक न्यूज़ पर है या रेलवे की जमीन पर सच्ची समस्याओं को उठाने वाले पत्रकारों और आम यात्रियों की आवाज़ को दबाने का नया हथियार बन रही है? हाल के बयानों से ऐसा लगता है कि मंत्री जी अब सवालों से ज्यादा ‘धमकी’ की भाषा बोल रहे हैं, जबकि रेलवे की बुनियादी सुविधाएं यात्रियों को परेशान करती जा रही हैं।
रविवार को दिल्ली के आनंद विहार रेलवे स्टेशन का औचक निरीक्षण करने के बाद वैष्णव ने कहा, “रेलवे से जुड़े फर्जी वीडियो सोशल मीडिया पर फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है।” यह बयान त्योहारों के सीजन में यात्रियों की भीड़ प्रबंधन के बीच आया, जब स्टेशन पर सफाई और सुविधाओं की कमी साफ नजर आ रही थी। लेकिन सवाल यह है कि क्या हर वीडियो जो शौचालयों की गंदगी, पानी की कमी या दलाली के वीडियो दिखाता है, वह ‘फर्जी’ है? या यह सरकार की नाकामियों को छिपाने का बहाना है ? रेलवे में यात्रियों की शिकायतें पुरानी हो चुकी हैं। टिकट बुकिंग में दलाली का बाजार गर्म है—IRCTC पर आसानी से सीट न मिलने पर एजेंटों को हजारों रुपये चुकाने पड़ते हैं। ट्रेनों में पानी की बोतलें खत्म हो जाती हैं, शौचालय गंदे पड़े रहते हैं, और सफर के दौरान बुनियादी सुविधाओं की कमी से लाखों यात्री परेशान हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे अनगिनत वीडियो वायरल होते हैं, जो इन समस्याओं को उजागर करते हैं। लेकिन अब मंत्री की चेतावनी से पत्रकार और एक्टिविस्ट डर के साए में हैं।
क्या सच्चाई दिखाना अब ‘फर्जी’ कहलाकर मुकदमे का सबब बनेगा ? यह पहली बार नहीं है जब वैष्णव ने आलोचना का जवाब ‘कार्रवाई’ से दिया हो। संसद में विपक्ष के रेल हादसों पर सवालों पर वे भड़क उठे थे—”चुप बैठो… एकदम!” अब सोशल मीडिया पर भी यही तेवर।
पत्रकारिता, जो लोकतंत्र का चौथा खंभा मानी जाती है, आज सत्ता के दबाव में सिकुड़ रही है। मोदी सरकार के दौर में मीडिया पर मुकदमों और ट्रोलिंग की बाढ़ आ गई है। रेल मंत्री का यह रुख न सिर्फ प्रेस फ्रीडम पर सवाल उठाता है, बल्कि रेलवे की जमीनी हकीकत से मुंह मोड़ने जैसा लगता है। यात्रियों और पत्रकार संगठनों ने इसकी निंदा की है।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने कहा, “सच्ची खबरों को फर्जी ठहराकर चुप कराना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है।” क्या रेल मंत्री इन शिकायतों का समाधान करेंगे, या ‘सख्त कार्रवाई’ की धमकी से ही सब ठीक हो जाएगा? देश के करोड़ों रेल यात्रियों को इंतजार है—कि उनकी आवाज़ दबी न रहे, और ट्रेनें सिर्फ ‘वंदे भारत’ की चमक तक सीमित न रहें। इंद्र यादव












