आर्थिक तंगी से परेशान प्रवासी मजदूर ने दी जान
झांसी। कोरोनां महामारी के चलते मजदूरी नहीं मिलने पर फरीदाबाद से बड़़ी उम्मीद से वह पैदल ही गांव लौट आया था, किंतु यहां पर। प्रवासी श्रमिक परिवार को न ही काम मिला और न उनको किसी तरह की आर्थिक सहायता मिली। कहीं पर कोई काम भी न मिलने से परिवार आर्थिक तंगी से जूझने लगा। परिवार की परेशानी गृहस्वामी को देखी नहीं गई और उसने आत्महत्या कर ली।

जनपद के टहरौली थाना क्षेत्र के ग्राम बेरबई निवासी प्रवासी मजदूर प्रेमनारायण रायकवार (45) फरीदाबाद में मजदूरी करता था। दो महीने पहले काम मिलना बंद हो जाने से वह परेशान हो गया। लॉकडाउन में कोई साधन न मिलने पर पैदल ही अपने गांव आया था, किंतु उसे उम्मीद के विपरीत न काम मिला और न ही आर्थिक सहायता। उस पर बैंक का 50 हजार रुपए और साहूकारों और रिश्तेदारों का भी कर्ज था। आर्थिक तंगी से जूझते हुए वह कर्ज की वजह से काफी परेशान रहने लगा था। इतना ही नहीं उसका मंझला बेटा भी दिल्ली से परिवार के साथ गांव आ गया था।
मृतक प्रेमनारायण के साले राम सिंह ने बताया कि उसने कहा कि वह बहन के साथ आकर उसे देख जाएं, नहीं तो वह उन्हें फिर कभी नहीं मिलेगा। इसके बाद राम सिंह ने प्रेमनारायण के बेटे जुगेंद्र को जानकारी दी। इस पर वह खेत पर पहुंचा तो वहां उसने अपने पिता के शरीर को पेड़ पर फांसी के फंदे से लटकते देख कर शोर मचा दिया। इस पर आसपास के लोग भी वहां पर पहुंच गए। घटना की सूचना मिलने पर थानाध्यक्ष डॉ. आशीष मिश्रा ने शव को पेड़ से उतरवा कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।
पिता की मौत ने झकझोरा
प्रेमनारायण के तीन बेटे हैं। बड़ा बेटा खंडवा में परिवार के साथ रहकर मजदूरी करता है। उससे छोटा बेटा अपनी पत्नी के साथ दिल्ली में रहकर मजदूरी करता था लेकिन प्रेमनारायण फरीदाबाद में रहकर मजदूरी कर रहा था। लॉकडाउन से पहले उसका काम अच्छी तरह से चल रहा था। वह पैसे भी घर भेज रहा था। लॉकडाउन लगने पर वह वहीं रुका रहा। इसके बाद अपने गांव आ गया। यहां पर आने के बाद उसका मंझला बेटा भी परिवार के साथ आ गया। यहां पर उनको किसी तरह की आर्थिक सहायता नहीं मिली। कहीं पर कोई काम भी न मिलने से परिवार आर्थिक तंगी से जूझने लगा। परिवार की परेशानी उससे देखी नहीं गई और उसने आत्महत्या कर ली।

सिर्फ ढाई बीघा है जमीन
मृतक प्रेमनारायण के पास सिर्फ पुुुुुुश्तैनी ढाई बीघा जमीन है, किंतु उस जमीन पर फसल भी इतनी नहीं होती है कि परिवार के लिए साल भर का गल्ला हो जाए। वह अपने तीन बेटों की वजह से जमीन भी नहीं बेचना चाहता था। उसे लगता था कि अगर जमीन बेच कर कर्ज चुका दिया तो परिवार का भरण पोषण और मुश्किल होगा।