– राजकीय संग्रहालय खोलने प्रतिदिन धरना-प्रदर्शन, नाटक व कवि सम्मेलन, जनप्रतिनिधियों व स्वयंसेवी भी जुड़ेंगे

झांसी। स्टाफ की कमी से बंद हुए राजकीय संग्रहालय से सदमे में आए झांसी सहित बुन्देलखण्ड के साहित्यकार, कलाकार व रंगकर्मी ने ऐसे अनूठे आंदोलन को छेड़ने का ऐलान कर दिया है जो शायद झांसी के इतिहास में पहली बार होगा। संग्रहालय खुलने तक प्रतिदिन धरना-प्रदर्शन, नाटक व कवि सम्मेलन किया जाएगा। इस आंदोलन में जनप्रतिनिधियों व स्वयंसेवियों को भी जोड़ा जाएगा। पहले दिन साहित्यकार, रंगकर्मियों ने कांग्रेसियों के साथ मार्च निकालकर जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंप कर अपने मंसूबों से अवगत करा दिया।

आंदोलनकारियों का कहना है कि देश-विदेश से बुन्देलखण्ड में आने वाले पर्यटकों के लिये राजकीय संग्रहालय व इसकी वीथिकायें सदैव से आकर्षण का केन्द्र रही हैं। कोरोना कर्फ्यू के बाद गत दिवस संग्रहालय खोलने के आदेश तो दिए गए, किंतु उसका अनुपालन नहीं हो सका। इसके पीछे वांछित स्टाफ की कमी थी। संग्रहालय के मुख्य द्वार पर सूचना चस्पा कर दी गई कि संग्रहालय बंद है। बन्द किये जाने से पर्यटक क्या देखने झाँसी आयेंगे। इसका दूरगामी परिणाम यह होगा कि जब पर्यटक ही नहीं आयेंगे तो बुन्देलखण्ड के अन्य पर्यटक स्थलों एवं विरासत को कौन देखने जायेगा। इससे शासन के बुन्देलखण्ड को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने के निर्णय को भी पलीता लगना तय है। संग्रहालय को बन्द करने के फैसले से सदमे में आये कलाकारों एवं साहित्यकारों ने आज संग्रहालय में पहुँचकर धरना-प्रदर्शन किया। इसका नेतृत्व पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्यमन्त्री एवं कवि प्रदीप जैन ‘आदित्य’ ने किया।
गौरतलब है कि संग्रहालय में 16 वीथिकाओं को स्थापित किया गया था, जिनमें से स्टाफ के अभाव में 10 वीथिकायें पिछले कुछ वर्षों से पर्यटकों एवं दर्शनार्थियों के लिये सुप्तप्राय अवस्था में आ गयी थीं। अब तो पूरे संग्रहालय में ही ताला डाल दिया गया है। आज यहाँ के रंगकर्मी व साहित्यकार संग्रहालय को बन्द किये जाने के विरोध में जब धरना दे रहे थे, तब भी देश-विदेश के कई पर्यटक संग्रहालय का दीदार करने पहुँचे, लेकिन सुरक्षा कर्मियों ने दरवाज़े पर पड़ा ताला दिखाकर उन्हें चलता कर दिया। धरना स्थल पर प्रदीप जैन आदित्य, पत्रकार मोहन नेपाली, राजकुमार अंजुम, बी.एल.भास्कर, रंगकर्मी आरिफ शहडौली, साहित्यकार लोक भूषण पन्नालाल ‘असर’, कवि उस्मान ‘अश्क’, जनसेवी एवं पूर्व बैंक प्रबन्धक रजनीश श्रीवास्तव आदि ने संग्रहालय के महत्व को निरूपित करते हुये इसे बन्द किये जाने के निर्णय को बुन्देलखण्ड की कला एवं पर्यटन के लिये अभिशाप बताया। उन्होंने कहा कि संग्रहालय की कला एवं विरासत को सहेजे हुये वीथिकायें जहाँ पर्यटकों का बुन्देली विरासत से साक्षात्कार कराती हैं, वहीं इसका ऑडिटोरियम कला, साहित्य एवं संगीत समेत विभिन्न ललित कलाओं के प्रचार-प्रसार एवं सभाओं के माध्यम से जन-जन की आवाज़ बना हुआ था। तय किया गया कि जब तक संग्रहालय को बन्द किये जाने का निर्णय वापस नहीं लिया जाता, प्रतिदिन 12 बजे से इसके प्रवेश द्वार पर नाटक, कवि सम्मेलन एवं रंग कर्म के विभिन्न माध्यमों से अलख जगाने का कार्य किया जायेगा। सभा का संचालन साहित्यकार मज़हर अली ने किया।
यह भी तय किया गया कि सभी राजनैतिक दलों के जन प्रतिनिधियों एवं जनसेवी संस्थाओं को संग्रहालय के धरना प्रदर्शन व कार्यक्रमों से जोड़ा जाएगा और उनके माध्यम से भी यह आवाज़ बुलंद की जाएगी। इसके बाद में धरना स्थल से कलाकारों एवं साहित्यकारों का काफिला कलेक्ट्रेट पहुँचा तथा जि़लाधिकारी आन्द्रा वामसी को मुख्यमन्त्री उ.प्र. के नाम सम्बोधित ज्ञापन सौंपा और संग्रहालय को स्थायी नियुक्तियाँ होने तक सम्विदा कर्मियों के माध्यम से संचालित किये जाने की माँग की। बताया गया कि संग्रहालय के एक-एक कर सभी कर्मी सेवानिवृत्त होते चले गये, लेकिन उनके स्थान पर कोई नियुक्ति नहीं की गयी। अगले माह संग्रहालय की उप निदेशक आशा पाण्डेय भी सेवानिवृत्त होने वाली हैं। जि़लाधिकारी ने पूरे मामले का संज्ञान लेते हुये इस पर शासन स्तरीय उच्च स्तरीय पत्राचार किये जाने व संस्कृति मन्त्रालय के उच्चाधिकारियों से टेलीफोनिक सम्पर्क कर समस्या के निराकरण का आश्वासन प्रतिनिधि मण्डल को दिया।