झांसी (बृजेन्द्र यादव)। मंगलवार को दुनिया के महानतम खिलाड़ी हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के जन्म दिन राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर उत्तर प्रदेश के कर्मयोगी मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ मैदान के कर्मयोगी मेजर ध्यानचंद की स्मृति मे बने संग्रहालय को राष्ट्र को समर्पित करेंगे। वास्तव मे भारतीय खेल इतिहास मे मंगलवार का दिन स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो जायगा जब यशस्वी मुख्य मंत्री मेजर ध्यानचंद की विशाल 25 फीट ऊंची मूर्ति से पर्दा उठाएंगे जो अपनें चाहने वालों के लिए सौम्यता, नैतिक जीवन मूल्यों को समर्पित अपनी मंद मंद मुस्कुराहट से अपने त्याग भरे अतीत की कहानी को बरबस ही हमारे मानस पटल पर अंकित कर देंगे किन्तु मेजर ध्यानचंद को चाहने वाले लाखों करोड़ो देश भक्त नागरीको को एक प्रश्न शूल की तरह चूभेगा की मेरे कर्मभूमि का मेरे प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने वाला मुखिया मेरे देश का खेल मैदान के कर्म योगी की धरती पर पधारे किंतु समाधि स्थल तक पहुंचाने का समय नहीं निकाल पाए ।

हाकी के जादूगर को यही लगेगा की वक्त बदल गया है , हवाएं बदल गईं हैं मैं तो अब केवल बडी बडी मूर्तियों के अनावरण कार्यक्रमो का हिस्सा बन वैभव की दुनिया मे कहीं खो सा गया हूं । जन्म दिन पर यह बात लिखने के लिए कदापि अनुमति नहीं देती है पर दुःखी मन लिखने पर मजबूर कर देता है और वह दृश्य आंखों के सामने तैर जाता हैं जब मेजर ध्यानचंद का पार्थिव शरीर को हैलिकाप्टर द्वारा दिल्ली से झांसी लाया गया और हीरोज मैदान पर आज के झांसी वर्तमान सांसद के पिता विश्वनाथ शर्मा के आंदोलनकारी तेवर के आगे प्रशासन ने घुटने टेक दिए थे की जादूगर का अंतिम संस्कार तो वहीं होगा जहां उसने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था और पंडित जी ने उस समय जो दलील दी थीं आज के संदर्भ सभी को सुनना चाहिए पंडित जी ने कहा था की बड़े बड़े नेताओ के अंतिम संस्कार मैदानों में किए जा सकते है तो मैदानों पर भारत को गौरव दिलवाने वाले हाकी के जादूगर महानतम खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का अंतिम संस्कार उसी मैदान पर होगा जिस मैदान पर उस खिलाड़ी ने नंगे पैर रात दिन के फर्क को समाप्त कर अपनी मातृ भूमि के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया । आज पंडित जी नही है , सांसद की आसंदी आज भी उन्हीं के परिवार के पास है किंतु हवाएं बदल गईं हैं । आज नेता हेलीकाप्टर से आते हैं जिसके नाम के कारण आते है जिसके लिए काम करने आते हैं पर उसकी समाधि स्थल पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने का समय नहीं निकाल पाते है। मन दुःख से भर जाता हैं कि हमने वैभव का प्रदर्शन तो ऐसा किया है की मानो लगता है की हम सब कर दे रहें हैं किंतु वास्तव मे भावना का जरा भी ध्यान नहीं रखा जा पा रहा है।

आज मेजर ध्यानचंद का हीरोज समाधि स्थल ये सारी वैभवशाली दुनिया को देख और महसूस कर रहा है की एक वक्त मेरे भी खिलाड़ी का था जब दुनिया का सबसे बड़ा तानाशाह हिटलर भी हाथ मिलाने के लिए और मुलाकात के लिए समय मांगता था और आज स्वंत्रत भारत मे नेताओ को मेरे महान खिलाड़ी से मिलने के लिए समय का अभाव हों गया है । हीरोज मैदान का इतिहास अपने 100 वर्ष के गौरवशाली अतीत को समेटे आज भी हाकी के जादूगर महानतम खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद की कहानी गर्व और गौरव से सुनाता है । काश!सारी दुनिया एक कर्म योगी की दूसरे कर्मयोगी से मुलाकात को देख पाती हैं किंतु ऐसा संभव होते दिख नहीं रहा।

बृजेन्द्र यादव
दुःखी और भारी मन से