रानी लक्ष्मीबाई मंदिर में नियमित रूप से करती थीं पूजा-अर्चना

झांसी। वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की नगरी झांसी में इकलौता प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर है। 18 वीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर को उत्तर प्रदेश सरकार के पुरातत्व विभाग ने संरक्षित किया गया है। इस मंदिर में दीपावली पर्व के मौके पर झांसी के निवासी श्रद्धालुओं और दर्शनार्थियों की खासी भीड़ उमड़ती है।

धार्मिक पर्यटन के लिहाज से यह स्थान बुंदेलखंड के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है और दूर-दराज से लोग इस मंदिर के दर्शन करने आते हैं। चंदेल कालीन लक्ष्मी तालाब के निकट स्थित इस मंदिर में भले ही आम दिनों में लोग पूजा-अर्चना के लिए कम ही आते हैं, किंतु दीपावली के पर्व पर इस मंदिर में लोग सुबह से रात तक दर्शन करने के लिए दिखाई देते हैं। दीपावली पर मंदिर की सजावट करने के साथ ही देवी लक्ष्मी की परम्परागत तरीके से आराधना की जाती है।

रानी लक्ष्मीबाई नियमित करती थीं दर्शन
बताया जाता है कि अठारहवीं सदी में महालक्ष्मी मंदिर का निर्माण कराया गया था। रानी लक्ष्मीबाई जब विवाह के बाद झांसी आईं तो वे नियमित रूप से इस मंदिर में दर्शन करने आती थीं। इस कारण इस मंदिर को रानी लक्ष्मीबाई का मंदिर भी कहा जाने लगा। प्राचीन समय से ही इस मंदिर में लक्ष्मी पूजन की परम्परा रही है। पुरातात्विक महत्व के कारण इसे संरक्षित करने के साथ ही इसके आसपास मूलभूत सुविधाओं को विकसित किया गया है। दीपावली के दिन परम्परा के मुताबिक यहां धार्मिक आयोजन किये जाते हैं। इसके बावजूद यहां उम्मीद के मुताबिक श्रृद्धालुओं की भीड़ नहीं उमड़ती।

प्रभारी क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. मनोज कुमार यादव के मुताबिक महालक्ष्मी मंदिर प्राचीन मंदिर है। यहां विभिन्न क्षेत्रों से लोग दर्शन करने आते हैं, जिससे इस मंदिर की महत्ता का पता चलता है। मंदिर में प्रतिवर्ष दीपावली पर क्षेत्र एवं परिक्षेत्र से बहुत सारे लोग दर्शन-पूजन के लिए आते हैं। साज-सज्जा और अलंकरण समस्त क्षेत्रवासियों द्वारा किया जाता है। क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी कीर्ति बताती हैं कि महालक्ष्मी मंदिर धार्मिक पर्यटन के लिहाज से एक महत्वपूर्ण स्थान है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था की गयी है। दीपावली के मौके पर यहां परम्परागत तरीके से महालक्ष्मी के पूजन-अर्चन का कार्यक्रम लोग आयोजित करते हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस सबके बावजूद यह महालक्ष्मी का इकलौता प्राचीन मंदिर उपेक्षा का दंश झेल रहा है।