भक्त शिरोमणि मां कर्मा की जयंती पर विशेष 

(रामकुमार साहू वरिष्ठ पत्रकार झांसी) 

झांसी। साहू तेली समाज की आराध्य भक्त शिरोमणि मां कर्मा देवी की जीवन गाथा संघर्ष व भक्ति भाव से भरी हुई है। देवी मां कर्मा की जानकारी समाज के अधिकांश बंधुओं को नहीं है। भक्त शिरोमणि मां कर्मा देवी के जीवन की संक्षिप्त गाथा प्रेरणादायक है।

जगन्नाथ पुरी का मंदिर चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था मंदिर से भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति गायब हो गई थी। चारों दिशाओं में लोग मूर्ति की खोज में भागने लगे। सभी को आश्चर्य था कि आखिर मूर्ति कैसे गायब हो गई । सभी एक दूसरे से पूछ रहे थे आखिर क्या हुआ क्यों । मंदिरों के पुजारी, भक्तगण सभी मूर्ति की खोज में निकल पड़े । तभी मंदिर में एक भक्त ने बताया कि कुछ देर पहले एक बुढ़िया मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करने आई थी उसे पुजारी ने धक्का देकर मंदिर की सीढ़ियों से नीचे गिरा दिया था । वह रो-रोकर भगवान को याद कर रही थी तथा कह रही थी । प्रभु दर्शन ही नहीं देना था तो मुझे यहां बुलाया ही क्यों । यह कहते हुए वह बढ़िया बेहोश हो गई तथा पुजारी ने उसे समुद्र किनारे टिकवा दिया। हो ना हो उसके बाद मूर्ति गायब हुई है।

इतना सुनना था कि सारे लोग समुद्र किनारे जाने लगे। समुद्र तट पर पहले से ही भारी भीड़ जमा थी तथा भगवान श्री कृष्ण साक्षात रूप में मां कर्मा को दर्शन दे रहे थे तथा उनकी पोटली से मां कर्मा द्वारा लाई गई खिचड़ी बड़े चाव के साथ लेकर खा रहे थे । मंदिर के पुजारी समुद्र किनारे पहुंचे। उन्होंने मां कर्मा को भगवान की मूर्ति से अलग करने की कोशिश की तो भविष्यवाणी हुई खबरदार किसी ने हाथ भी लगाया। यह मेरी भक्त कर्मा है जो जगन्नाथ पुरी दर्शन करने आई थी लेकिन तुम लोगों ने धक्के देकर मंदिर से भगा दिया । इसी कारण मुझे इसे दर्शन देने यहां समुद्र तट पर आना पड़ा । उपस्थित जनसमुदाय मां कर्मा कि भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति केवल भगवान का ओम परम आदरणीय देखकर नतमस्तक हो गए और क्षमा प्रार्थना कर मां कर्मा व भक्त वात्सल्य भगवान श्री कृष्ण को मंदिर लेकर पहुंचे। पुजारी ने भगवान को भक्त शिरोमणि मां कर्मा की खिचड़ी का भोग लगाया। तभी से आज भी जगन्नाथपुरी में मां कर्मा की खिचड़ी का भोग सबसे पहले भगवान को लगाया जाता है। मां कर्मा देवी जी के नाम पर साहू समाज नतमस्तक हो जाता है एक ऐसी महिला थी जिन्होंने भगवान श्री कृष्ण के साक्षात दर्शन किए ।

साहू तेली समाज को मां कर्मा ने अभिमान पूर्वक जीना सिखाया

साहू तेली समाज को मां कर्मा ने अभिमान पूर्वक जीना सिखाया। बुंदेलखंड के नरवर राज्य में जहां मां कर्मा की ससुराल थी वहां के राजा ने साहू समाज पर वहां के कर्मियों के षड्यंत्र के तहत बहुत अत्याचार किये । षड्यंत्र के तहत राज्य के हाथी को खुजली का रोग बताया गया तथा राजा को सलाह दी गई कि यदि तेल से भरे एक कुंड में हाथी को स्नान कराया जाए तो उसका रोग दूर हो सकता है । कुंड को तेल से भरने के लिए तेली समाज को आदेश जारी कर दिया गया। यह काम ऐसा था जिसका पूर्ण होना संभव ही नहीं था । यह तो बस कर्मा देवी की कृष्ण भक्ति से द्वेष रखने वाले पाखंडियों के षडयंत्र का हिस्सा था तथा मां कर्मा के साथ-साथ पूरी समाज को प्रताड़ित करने की योजना थी ।

जब मां कर्मा देवी को इस बात का पता चला उन्होंने उस राजा के अत्याचार के विरुद्ध साहू तेली समाज को संगठित किया तथा अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई। राजा के आदेश से समाज को परिवार सहित भूखों मरने की नौबत आ गई, लेकिन मां कर्मा ने उस विपत्ति के समय भगवान श्री कृष्ण को याद किया और कहा प्रभु आज मेरी कारण मेरे समाज के इन भोले भाले नागरिकों को यह दिन देखना पड़ रहा है । प्रभु इनकी मदद करो आज आपकी भक्त पहली बार अपने समाज के लिए कुछ मांग रही है ।

कर्मा देवी की करुण पुकार सुनकर भगवान ने रातोंरात ऐसी महिमा फैलाई कि उस समस्या से समाज को मुक्ति मिल गई । रातो रात कुंड तेल से भर गया पूरे नगर में इस चमत्कार की चर्चा होने लगी । इसके बाद कर्मा देवी ने समाज सहित उस राज्य को छोड़ दिया तथा झांसी आकर रहने लगे ।

भगवान की अगाध भक्ति का प्रसाद थीं देवी कर्मा

मां कर्मा के पिता राम साह झांसी जनपद के एक सम्मानित व्यक्ति थे। ईश्वर की कृपा से उनके पास सुख समृद्धि की कमी नहीं थी बस कमी थी तो एक संतान की । वहीं इस कामना में अपनी दिनचर्या के साथ साथ ईश्वर भक्ति में लीन रहते थे तथा दिनों के प्रति दयावान थे । भगवान की अगाध भक्ति तथा धर्म कर्म का फल उन्हें मिला तथा क्षेत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी सावंत 1073 को एक कन्या का जन्म उनके यहां हुआ । क्योंकि कन्या उनके कर्मों के कारण हुई थी इसीलिए उनके पिता ने उनका नाम कर्मा रखा । विरासत में उन्हें भगवान भक्ति मिली तथा कुछ ही दिनों में कर्मा देवी की कृष्ण भक्ति की चर्चा आसपास के क्षेत्र में भी होने लगी समय के साथ उम्र भी बढ़ने लगी उनके पिता को विवाह की चिंता होने लगी उन्होंने नरवर राज्य के प्रसिद्ध तैलकार के यहां अपनी पुत्री का विवाह कर दिया ।

विवाह के बाद भी मां कर्मा देवी की दिनचर्या नहीं बदली वह नित्य कर्म के साथ-साथ कृष्ण भक्ति में लीन रही थी कि जबकि उनके पति आमोद प्रमोद में अपना जीवन व्यतीत करते थे तथा कर्मा देवी को उनकी भक्ति पर ताने देते थे कि तुम इतनी भगवान की भक्ती करती हो कभी भगवान ने तुम्हें दर्शन भी दिए हैं कर्मा देवी बड़े ही सहज भाव से कहती की एक ना एक दिन भगवान मुझे दर्शन अवश्य देंगे । इसे श्रद्धा के साथ भक्ति में लीन रहती थी ।

एक बार उनके पति ने उनके सामने से भगवान की मूर्ति हटा दी तब वह पूजा में लीन थी उनकी आंखें खोलने पर जब उन्हें सामने से मूर्ति गायब दिखी तो मूर्छित होकर गिर पड़ी कर्मा देवी के पति को अपने कृत्य पर बड़ी ग्लानि हुई कर्मा देवी की अगाध कृष्ण भक्ति से अभिभूत होकर उस दिन से वह कर्मा देवी की भागवत भक्ति के प्रति नतमस्तक हो गए तथा उनकी भी जीवन शैली में भारी बदलाव आ गया वह सारे आमोद प्रमोद चक ईश्वर भक्ति में समय व्यतीत करने लगे ।

भगवान भी अपने भक्तों की कैसी कैसी परीक्षा लेते हैं कुछ ही समय बाद उनके पति का निधन हो गया तथा कर्मा देवी पर दुख का पहाड़ टूट गया । पति के वियोग में मां कर्मा टूट सी गई । कुछ ही दिनों के बाद भगवान को याद करते करते नींद लग गई । सपने में भगवान ने कर्मा देवी से कहा भक्त मां कर्मा तुम जगन्नाथपुरी में जाओ मैं तुम्हें वही दर्शन दूंगा। इसके बाद श्री कृष्ण के दर्शन में मत वाली मां कर्मा दिन रात की चिंता किए बगैर जगन्नाथ पूरी की ओर चल पड़ी भूखी प्यासी मां कर्मा जब वहां पहुंचे तो उन्हें यह व्‍यथा भी सहनी पड़ी ।

मां कर्मा ने समाज को सत कर्मो पर चलने की राह बताए किसी भी अत्याचार को सहन ना करते हुए उसका डटकर मुकाबला करने की प्रेरणा दी । मां कर्मा का जीवन पूर्ण संघर्ष से गुजरा तथा उसके बाद भी उन्होंने प्रभु की आराधना में कमी नहीं कि भगवान श्री कृष्ण के साक्षात दर्शन कर जगन्नाथपुरी में भगवान को खोजने का भोग लगाकर स्वर्ग धाम को सिधार गई ।

मां कर्मा जी की जयंती पर साहू समाज उनको पूर्ण श्रद्धा के साथ नमन करते हुए उनके बताए मार्ग पर चलने की शपथ लेता है । आज भी जगन्नाथपुरी में मां कर्मा देवी की खिचड़ी का सर्वप्रथम भोग भगवान श्री कृष्ण को लगाया जाता है । (teliinda.in)