चार वर्ष से अधिक समय बीतने के बाद भी पूरी नहीं हुई विवेचना

झांसी। कीमती भूमि पर कब्जा कर गैर कानूनी तरीके से कूटरचित दस्तावेजों के सहारे क्रय-विक्रय करने और किराया वसूल करने का विरोध करने पर गाली गलौज एवं जान से मारने की धमकी देते हुये अवैध रूप से पचास लाख रूपये की मांग के मामले में दर्ज मुकदमे में चार वर्ष से अधिक समय बीतने के बाद भी आख्या प्रस्तुत नहीं की जा रही है। उक्त मामले में थाना प्रभारी चिरगांव को दो माह में अग्रिम विवेचना पूरी कर न्यायालय में आख्या प्रस्तुत करने का आदेश विशेष न्यायाधीश (द०प्र०क्षे०), सुयश प्रकाश श्रीवास्तव के न्यायालय द्वारा दिया गया है।
ज्ञात हो कि मातनपुरा चिरगांव निवासी मधुसूदन शर्मा की शिकायत पर अभियुक्तगण बसन्त कुमार आदि के खिलाफ धारा 419, 420, 467, 468, 471, 387, 504, 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। वादी ने आरोप लगाया था कि उसके मालिकाना हक वाली कीमती भूमि पर कब्जा कर गैर कानूनी तरीके से बगैर किसी बिधिक अधिकार के कूटरचित दस्तावेज के सहारे क्रय-विक्रय कर किराया वसूला जा रहा है। विरोध करने पर गाली गलौज एवं जान से मारने की धमकी देते हुये पचास लाख रूपये की अवैध माँग की जा रही है। न्यायालय के आदेश के अनुपालन में थाना चिरगांव द्वारा अग्रिम विवेचना कराई गई । विवेचक ने ३० सितंबर २०२१ को आरोप पत्र प्रेषित कर विवेचना समाप्त कर दी। जिस पर प्रकरण के अभियुक्त नीरज जैन द्वारा एस०एस०पी० को प्रार्थनापत्र देते हुये पुनः विवेचना कराये जाने की मांग पर एस०एस०पी० ने आरोपपत्र रोकते हुये मुकदमे की विवेचना पुनः कराये जाने हेतु प्रभारी निरीक्षक को आदेशित किया था ।
वादी मधुसूदन शर्मा द्वारा प्रार्थना पत्र इस आशय का प्रस्तुत किया गया था कि धारा  419, 420, 467, 468, 471, 387, 504, 506 भा०द०स० के तहत थाना चिरगांव पर वर्ष २०१६ में पंजीकृत कराया गया था। २२ नवम्बर २०१६ को विवेचक द्वारा अन्तिम आख्या
प्रस्तुत की गई। वादी द्वारा न्यायालय में प्रोटेस्ट पिटीशन
प्रस्तुत किया। न्यायालय द्वारा १५ मार्च २०१८ द्वारा थाना चिरगांव को निर्देशित किया कि किसी सक्षम एस०आई० से अग्रिम विवेचना कराये तथा रिपोर्ट न्यायालय में पेश करें।” न्यायालय द्वारा यह भी आदेशित किया गया कि ” आदेश की प्रति के साथ प्रोटेस्ट पिटीशन की प्रति एसएसपी झांसी व डीआईजी यूपी लखनऊ को प्रेषित हो। आदेश को स्कैन करा कर कम्प्यूटर बेबसाइड पर अपलोड करा दिया जाये ।प्रकरण दर्ष २०१६ का होने के बावजूद चार वर्ष हो जाने पर भी अभियुक्तगण की गिरफ्तारी व आरोपपत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है और अभियुक्तों के प्रार्थनापत्र पर प्रकरण में आरोपपत्र प्रस्तुत न कर, आरोपपत्र रोक कर समाप्त हो चुकी विवेचना को पुनः विवेचना किये जाने हेतु उच्च अधिकारीगण द्वारा आदेशित किया जा रहा है जो एक गैर विधिक आदेश है।
दौरान विवेचना वादी द्वारा जो भी साक्ष्य एवं तथ्यों से विवेचक को अवगत कराया जाता है उन्हें विवेचना का भाग नहीं बनाया जाता है और अभियुक्तगण को उनकी झूठी व गैर तथ्यात्मक साक्ष्यों को संकलित कर वादी पर दबाव बनाने का प्रयास किया जाता है, जबकि एफआईआर में अंकित तथ्यों की पुष्टि के संदर्भ में ठोस दस्तोवजी साक्ष्य व गवाह हैं जिसके आधार पर अभियुक्तगण के विरूद्ध धारा ४१९, ४२०, ४६७, ४६८, ४७१३८७, ५०४, ५०६ भा०द०स० का अपराध सिद्ध होता है परन्तु थाना चिरगाँव की पुलिस द्वारा कोई सहयोग नहीं किया जा रहा है। अग्रिम विवेचना हेतु १५ मार्च २०१८ को थाना चिरगांव को निर्देशित किया गया और निर्गत आदेश से लगभग साढ़े चार वर्ष व्यतीत होने व एफआईआर से लगभग ६ वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। अभियुक्तगण अपने कूटरचित व धोखाधड़ी के कार्यों को कर रहे हैं अनैतिक माँग की जा रही है। वादी एवं उसके परिवार को खतरा है।पुलिस अधिकारियों को प्रकरण में शीघ्रता करने व विपक्षीगण द्वारा दी जा रही धमकियों, अवैध कब्जे के संदर्भ में अवगत कराया जा रहा है परन्तु वह झूठा आश्वासन देकर टाल रहे है । वादी द्वारा न्यायालय के आदेश १५ मार्च २०१८ की अवेहलना किये जाने व दोषपूर्ण/ गैर विधिक तरीके से सम्पादित कराई जा रही विवेचना के सन्दर्भ में कारण बताओ नोटिस जारी कर प्रकरण में शीघ्र न्यायिक प्रक्रिया हेतु यथा उचित आदेश पारित करने की याचना की गई ।
तत्कालीन क्षेत्राधकारी मोंठ द्वारा २ जून २०२२ को इस अभियोग के शीघ्र निस्तारण हेतु विवेचक को निर्देशित करने के सम्बन्ध में आख्या प्रेषित की गयी थी परंतु इस सम्बन्ध में अपेक्षित कार्यवाही नहीं हुयी। जिस पर न्यायालय द्वारा थाना प्रभारी चिरगांव को आदेशित किया गया है कि इस आदेश की तिथि से दो माह में अग्रिम विवेचना सम्पन्न कर न्यायालय को आख्या प्रस्तुत करना सुनिश्चित करें समुचित कार्यवाही न होने की स्थिति में उनके विरूद्ध यथोचित विधिक कार्यवाही करने के अतिरिक्त न्यायालय के समक्ष अन्य कोई विकल्प नहीं होगा।