बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के शिक्षा संस्थान एवं आईसीएसएसआर के सहयोग से राष्ट्रीय संगोष्ठी प्रारंभ

झांसी। भारत वेदों की ऋचाओं से जन्मा है। सूर्य एवं ज्ञान की रश्मि से प्रकाशित है। भारतीय ज्ञान परंपरा में वह क्षमता है कि वह विश्व की समस्त समस्याओं का समाधान करने में सक्षम है। उक्त विचार महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर के कुलपति प्रोफेसर अनिल शुक्ला ने व्यक्त किए। वह मुख्य अतिथि के रूप में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के शिक्षा संस्थान एवं इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च के द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘सार्वभौमिक संस्कृति, सुख और शांति भारतीय वैचारिक लेय कर श्रेष्ठता के अंकुरण’ पर गांधी सभागार में शिक्षकों एवं छात्रों को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति वैश्विक मानव में चरित्र निर्माण पर केंद्रित है। भारतीय ज्ञान परंपरा दिव्य दृष्टि एवं प्राण विद्या पर आधारित है। जहां ज्ञानी व्यक्ति प्रत्यक्ष के साथ-साथ अप्रत्यक्ष दर्शन को भी जान सकता है। उन्होंने कहा कि भारतीय मनीषी वाल्मीकि, चरक, सुश्रुत, दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद,अरविंदो घोष, महात्मा गांधी ने भारतीय ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाया है। संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर के कुलपति प्रोफेसर अवनीश तिवारी ने कहा कि टीचिंग और लर्निंग अलग-अलग विधाएं हैं। टीचिंग पाठ्यक्रम आधारित है जिसका मूल्यांकन गुणात्मक आधार पर किया जाता है। वही लर्निंग सतत चलने वाली प्रक्रिया है जिसे हम गुणों के आधार पर मूल्यांकित कर सकते हैं। कौशल विकास इसी लर्निंग प्रक्रिया का भाग है। नई शिक्षा नीति में इसी कौशल विकास को प्राथमिकता दी गई है जो उद्यमिता निर्माण करने में सहायक है। नई शिक्षा नीति के अंतर्गत भारतीय शिक्षा प्रणाली पुनः गुरु एवं शिष्य परंपरा के आधार पर निर्मित की जा रही है। जहां शिक्षा व्यवस्था अर्थ के स्थान पर संस्कृति मूल्य और नीति पर आधारित हो। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर मुकेश पांडे ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित भारतीय शिक्षा प्रणाली प्राचीन काल से ही अद्वितीय रही है। हमारे वेदांत उपनिषद एवं भगवत गीता में अनेकों ऐसे संस्मरण मिल जाएंगे जहां गुरु और शिष्य के मध्य संबंधों को बेहतर तरीके से परिलक्षित किया गया है। उन्होंने कहा कि भारत अपने प्रारंभ से ही साहित्य, संस्कृति, संगीत, नृत्य, विज्ञान, कौशल आदि में श्रेष्ठ रहा है। महात्मा बुध, महावीर, गुरु नानक एवं कबीर आदि अनेकों वैचारिक पुंजों ने इस धरती को सींचा है।

बीज वक्तव्य सागर विश्वविद्यालय के पूर्व संकाय अध्यक्ष प्रोफेसर एके अवस्थी ने दिया। उन्होंने कहा कि भारत उच्च विचार प्रणाली का अंग है जिसमें संस्कृति, शांति, सुख ,सार्वभौमिकता के साथ ही एकरूपता-समरूपता समाहित है। भारत की वैदिक संस्कृति शताब्दी वर्ष पूर्व की है। आज हमें पुनः अपने स्वयं के ज्ञान पर विश्वास करना होगा। स्वागत उद्बोधन संयोजक डॉ काव्या दुबे एवं आभार आयोजन सचिव डॉक्टर सुनील त्रिवेदी ने दिया। संचालन डॉ अचला पांडे एवं डॉ गार्गी त्रिपाठी ने किया। इस अवसर पर प्रो एसपी सिंह, प्रो पूनम पुरी, डॉ श्रीदेवी जेटी, डॉक्टर बी बी त्रिपाठी, डॉ जितेंद्र सिंह, डॉ ऋषि सक्सेना, डॉ अतुल गोयल, डॉ शंभू नाथ सिंह, डॉ कौशल त्रिपाठी,डॉ भुवनेश्वर, डॉ दीप्ति, शिखा खरे, प्रतिभा खरे, अमिता कुशवाहा आदि उपस्थित रहे।