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झांसी । न्यायालय अपर सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो ऐक्ट) मोहम्मद नेयाज अहमद अंसारी के न्यायालय में दुष्कर्म का दोष सिद्ध होने पर अभियुक्त को 20 वर्ष की सजा व 1 लाख रुपए जुर्माना से दण्डित किया गया। इस मामले में न्यायालय ने वादी व पीडिता के बयान से पलटने के बाद भी अभियुक्त की डीएनए रिपोर्ट में स्पर्म मैच होने पर सजा सुनायी।

अभियोजन पक्ष की पैरवी करते हुए विशेष लोक अभियोजक विजय सिंह कुशवाहा ने बताया कि वादी ने चिरगाँव पुलिस को 13 सितम्बर 2020 को तहरीर देते हुए बताया कि उसकी 15 वर्षीय नाबालिग पुत्री (पीड़िता) 12 सितम्बर 2020 की सुबह लगभग 9 बजे घर से बाहर जा रही थी। रास्ते में रामनगर रोड पर गाँव के ही फुस्सी राजपूत का भाँजा लालू उर्फ उमाशंकर राजपूत ने एक अन्य लड़के के साथ मिलकर उसे जबरदस्ती मोटर साइकिल पर बैठा लिया और उसकी मारपीट कर दुपट्टे से आँख बाँध कर दी तथा खेत में ले जाकर दोनों ने बारी-बारी से बलात्कार किया। इसके बाद दोनों ने लड़की को धमकी दी कि अगर घटना किसी को बतायी या पुलिस में शिकायत, की, तो परिवार वालों को मार डालेंगे। लड़की को डरा-धमका कर छोड़ दिया। किसी तरह उसकी पुत्री घर आयी और सारी बात बतायी। पुलिस ने धारा 363, 376 डीए, 323, 506 आइपीसी, धारा 5/6 पॉक्सो ऐक्ट व धारा 3(2) (वी) एसटी/ एसटी ऐक्ट के तहत लालू राजपूत समेत दो आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया।

पुलिस ने आरोप-पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया। एक आरोपी के बाल अपचारी पाए जाने पर उसकी पत्रावली किशोर बोर्ड को भेज दी गई। न्यायालय में वादी मुकदमा व पीड़िता ने बयान बदल लिए, लेकिन डीएनए टेस्ट रिपोर्ट में दुष्कर्म के आरोपी का स्पर्म मैच होने पर आरोप सिद्ध हो गया। इस पर न्यायालय ने अभियुक्त को दुष्कर्म का दोषी पाते हुए धारा 5/6 पॉक्सो एक्ट में 20 वर्ष कठोर कारावास की सजा सुनायी। जेल में बितायी गयी अवधि सजा में समायोजित की जाएगी। इस मामले में विवेचक क्षेत्राधिकारी डॉ. प्रदीप कुमार, कोर्ट मुहर्रिर हेड कॉस्टबल अरविन्द कुमार, विशेष कोर्ट मुहर्रिर महिला कौस्टबल गुंजन तोमर, पैरोकार कौस्टबल बिपिन कुमार ने प्रभावी पैरोकारी की।

पिता के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के आदेश

न्यायालय ने इस मामले में लिखा वादी मुकदमा निवासी करगुवाँ द्वारा मुख्य परीक्षा व जिरह में प्रथम सूचना रिपोर्ट के विपरीत बयान किए गए हैं। इससे स्पष्ट है कि वादी मुकदमा द्वारा न्यायालय के समक्ष झूठे कथन किए गए हैं। इस स्थिति में वादी मुकदमा के खिलाफ मिथ्या साक्ष्य देने के लिए धारा 383 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अपराध के तहत संज्ञान लिया जाता है। उसके विरुद्ध प्रकीर्ण वाद की कार्यवाही आरम्भ की जाए और नोटिस जारी किया जाए। साथ ही वादी व पीड़िता द्वारा अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत यदि कोई धनराशि प्राप्त की गयीं है, तो जिलाधिकारी को निर्देशित किया जाता है कि वह इसे सम्बन्ध में आख्या प्राप्त कर पीड़िता व वादी मुकदमा को दी गयी धनराशि को बकाया भू-राजस्व कर की तरह वसूली कर राजकोष में नियमानुसार जमा कराएं।