Oplus_16908288

झांसी। उमरे महाप्रबंधक नरेश पाल सिंह की झांसी में इलैक्ट्रोनिक व प्रिंट मीडिया से वार्ता नहीं कर उपेक्षात्मक रवैया ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। आखिरकार महा प्रबंधक मीडिया से क्यों बचना चाहते थे ? जबकि रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव रेल विकास व यात्री सुविधाओं के प्रचार-प्रसार को प्रमुखता देते हैं ताकि आम जन को मीडिया के माध्यम से अधिक से अधिक जानकारी मिले और उससे लाभान्वित हों।

दरअसल, 1 सितंबर को उमरे महाप्रबंधक का कार्यभार ग्रहण करने के बाद नरेश पाल सिंह 3 सितंबर को ही झांसी दौरे पर पहुंच गए। वह 2 सितंबर को प्रयागराज जंक्शन – मानिकपुर जंक्शन खंड का 11108 ट्रेन से पिछली खिड़की निरीक्षण करते हुए आए और 3 सितंबर को झांसी में रेल कोच नवीनीकरण कारखाना, एम.एल.आर. कारखाना, वैगन रिपेयर कारखाना, डीजल शेड एवं इलेक्ट्रिक शेड का निरीक्षण किया। इसके बाद मंडल रेल प्रबंधक सभागार में झांसी मंडल के रेल अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक में भाग लेकर कर्मचारी संगठनों के प्रतिनिधियों से मिले, किंतु उम्मीद के विपरीत मीडिया के सवालों से कन्नी काटते हुए चले गए जबकि पूर्व में महाप्रबंधकों द्वारा मीडिया से चर्चा की जाती रही थी। नवागंतुक महाप्रबंधक का मीडिया से उपेक्षात्मक रवैया सवाल खड़े कर गया।

महाप्रबंधक से रुबरु होकर झांसी के इलैक्ट्रोनिक, प्रिंट मीडिया व न्यूज़ एजेंसी के प्रतिनिधि झांसी मंडल में रेल के विकास व योजनाएं आदि सहित कर्मचारियों व जनता से जुड़ी समस्याओं, (अ) व्यवस्थाओं, नियमों के विपरीत किए जा रहे कार्यों के बारे में चर्चा करना चाहते थे। मुद्दों का पिटारा लिए पत्रकार मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय में महाप्रबंधक से मिलने दोपहर 12 बजे पहुंचे और उनके आगमन का इंतजार करते रहे। महाप्रबंधक आए और सीधे सभागार में बैठक करने पहुंच गए। उन्होंने मीडिया से रू-ब-रू होने की जरूरत ही महसूस नहीं की।

इसके बाद सायं फिर से पत्रकारों की टीम डीआरएम कार्यालय पहुंच गयी ताकि मीटिंग के बाद उनसे भेंट वार्ता की जा सके। काफी इंतजार के बाद जीएम मीटिंग कर सभागार से निकले और मीडिया से बचते हुए डीआरएम के चैम्बर में प्रवेश कर गये। इसके बाद उन्हें पीआरओ के माध्यम से खबर पहुंचाई गई की मीडिया मिलना चाहती है। पीआरओ ने बाहर निकल कर बताया कि “साहब मिलना नहीं चाहते” क्यों का जवाब था कि”फिर आएंगे तब मिलेंगे”।

इस पर पत्रकारों ने कहा सिर्फ दो मिनट की चर्चा है, आश्चर्य है जीएम पर मीडिया से मुखातिब होने का दो मिनट का समय नहीं है ! इसी दौरान जीएम आरपीएफ के घेरे में निकले तो पत्रकारों ने सवालों की झड़ी लगा दी, किंतु वह अनसुनी करते हुए कार में सवार होकर रवाना हो गए और सवाल अनुत्तरित रह गए। आखिरकार क्या मजबूरी थी कि उन्होंने पत्रकारों से बातचीत नहीं की और बचते रहे ? उनका रवैया सवालों की फेहरिस्त छोड़ गया है।