– पर्यटन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद, चौड़ा होगा पहुंच मार्ग, आसपास के क्षेत्र के विकास की योजना
झांसी। वर्ल्ड हेरिटेज इरीगेशन श्रेणी में विश्वस्तरीय संगठन इंटरनेशनल कमीशन ऑन इरीगेशन एंड ड्रेनेज (आईसीआईडी) ने “बुन्देलखण्ड का नियाग्रा फॉल्स” के रूप में चर्चित “सुकुवां-ढुकुवां बांध” को देश की सबसे पुरानी एवं बेहतरीन इंजीनियरिंग वाली सिंचाई परियोजना के तौर पर चयनित किया गया है। आईसीआईडी ने गत वर्ष ऐसे जलाशयों का चिन्हिकरण किया था, जो 100 साल के बाद भी सुरक्षित काम कर रहे हैं। झांसी के बबीना ब्लाक में बेतवा नदी पर स्थित यह बांध 1909 में बनाया गया। इसकी संरचना में आज तक कोई बदलाव नहीं हुआ। इसी आधार पर इसे सबसे बेहतरीन संरचना के तौर पर चुना गया।
गौरतलब है कि लगभग 112 वर्ष पुराना सुकुवां-ढुकुवां बांध आज भी जहां अपनी खूबसूरती और बेहतरीन इंजीनियरिंग के चलते देश के चुनिंदा सुरक्षित जलाशयों में शुमार है। बरसात में जब बांध पूरी तरह से पानी से भर जाता है और ओवर फ्लो होकर पानी बांध के ऊपर से गिरता है तो खूबसूरत झरने की तरह लगता है। इसकी खूबसूरती देख कर लोग बरवस ही नियाग्रा फॉल्स कह उठते हैं। हर साल इसे देखने हजारों लोग यहां पहुंचते हैं। मानसून के दौरान जब यहां से तीन लाख क्यूसेक से अधिक पानी छोड़ा जाता है, तब इसका नजारा देखने लायक होता है। उस दौरान रोजाना हजारों लोग यहां पहुंचते हैं। इसके अंदर बनी सुरंग से करीब पचास फीट ऊंचाई से गिरता पानी अलग ही रोमांच पैदा करता है। इतनी पुरानी संरचना होने के बावजूद यह जलाशय जस का तस है। यहां अभी भी अंग्रेजों के जमाने में लगे फाटक एवं अन्य उपकरण काम कर रहे हैं।
गत वर्ष इंटरनेशनल कमीशन ऑन इरीगेशन एंड ड्रेनेज (आईसीआईडी) ने पूरे दुनिया के सबसे पुरानी बेहतरीन सिंचाई परियोजनाओं को चिन्हित करने की कवायद शुरू की थी। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) ने उप्र से सुकुवां ढुकुवां का नाम भेजा था।
बताया गया है कि बांध के पुरातन सिंचाई स्थल की सूची में शामिल होने के बाद बांध तक का पहुंच मार्ग चौड़ा होगा। उसकी कनेक्टिवटी बेहतरीन की जाएगी। सुरक्षा के लिए अलग से गार्ड तैनात होंगे। देश-विदेश के पर्यटकों की आवाजाही भी बढ़ेगी। यह महत्वपूर्ण उपलब्धि है। प्रदेश की यह इकलौती सिंचाई संरचना है जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अद्भुत इंजीनियरिंग के लिए मान्यता मिली। अब आगे भी इसे इसी रुप में संरक्षित रखा जाएगा। आसपास की जगह को विकसित किया जाएगा।
इसके इतिहास पर प्रकाश डालते हैं तो बताया जाता है कि पारीछा बांध से पानी कम मिलने पर सबसे पहले 1881-82 में तत्कालीन अधिशासी अभियंता थार्नहिल ने पारीछा से करीब 112 मील ऊपर बेतवा नदी का सर्वे किया। इस रिपोर्ट के आधार पर अधिशासी अभियंता एटकिंसन ने वर्ष 1901 में बेतवा नदी के कमांड एरिया में सुकुवां-ढुकुवां बांध का प्रस्ताव बनाया। इसकी मदद से रबी की फसल को भी पानी देना तय हुआ। इसके बाद वर्ष 1905 में इसका निर्माण आरंभ हुआ। चार साल बाद 1909 में इसका निर्माण पूरा हुआ। इसकी कुल लागत 23.98 लाख रुपये आई। अभियंताओं का कहना है कि उस वक्त के लिहाज से यह रकम अधिक थी, लेकिन सिंचाई की जरुरत को देखते हुए सरकार ने बजट में कटौती नहीं की। निर्माण के दौरान इसका कैचमेंट करीब 82440 मील था। निर्माण यहां पानी संग्रहित होता है। अभी इसे 273.71 मीटर तक भरा जाता है। पूरा भरा होने पर यहां अभी भी 57.77 मीट्रिक घन मीटर पानी स्टोर किया जाता है।










