पत्रकारों के शपथ-पत्र वाला मामला अभी सलटा नहीं था, और प्रेस रूम का माहौल फिर गरम हो गया था। सरकार का बुजुर्ग पत्रकारों को पेंशन देना पत्रकार नेताओं के टेंशन का सबब बन गया। सब मान रहे थे कि यह काम उन्होंने ही कराया है। यहां तक कि मांगेराम भी मान रहा था कि यह काम उसी ने कराया है। हालांकि उसे इस मामले का एबीसीडी नहीं पता था, लेकिन उसका मानना था कि जब सब मान रहे हैं तो फिर उसके मानने में क्या जाता है? मानने में वह पत्रकार नेताओं के लेबल का था। वह कुछ भी मान लेता था। एक बार उसने पड़ोस की भाभीजी को ही अपना मान लिया था। खैर, उसके मानने से बेपरवाह पत्रकारों के नेता जोनाथन खानदानी, राबर्ट बापदानी, बेंजामिन टैंकची, पीटर तोपची, एलबर्ट मिसाइल, असलम फिदायिन आदि सरकार से पेंशन पक्का कराने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले रहे थे। ठीक वैसे, जैसे अलकायदा, आईएसआईएस और लिबरेशन फ्रंट वाले आतंकी किसी घटना को अंजाम देने के बाद लेते हैं।
जिम्मेदारी और श्रेय लेने में पत्रकार नेताओं कभी कोताही नहीं की। बड़ी बड़ी जिम्मेदारी अपने सिर पर ले लेते थे। जोनाथन खानदानी ने तो यूक्रेन पर हुए हमले तक की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी, लेकिन उनके अनन्य मित्र छबीले ने उन्हें समझाया कि यूक्रेन बहुत दूर है, और आपकी उम्र भी अधिक है, तब उन्होंने आफगानिस्तान पर तालिबानी हमले की जिम्मेदारी ली। बेंजामिन टैंकची भी कम जिम्मेदार नहीं थे। फूंके-मारे गये पत्रकारों के घर वालों से सेटल करने की जिम्मेदारी तो लेते ही थे, सरकार द्वारा शुरू की गई विधवा पेंशन तक की जिम्मेदारी ले बैठे थे। उन्होंने पत्रकारों को बताया कि सरकार विधवा पेंशन देने को तैयार नहीं थी, लेकिन जब उनकी पत्नी विधवा हुई तो उन्होंने सरकार की ईंट से ईंट बजाकर विधवा पेंशन शुरू कराया। सब नेताओं को श्रेय और जिम्मेदारी लेते देख मांगे को भी ताव आ गया। उसने कहा, ”पत्रकारों द्वारा अधिकारियों के पांव छूकर अपना काम कराने का जिम्मेदार मैं हूं। मुझे इसका श्रेय मिलना चाहिए। मैं इसकी जिम्मेदारी लेता हूं।”
श्रेय लेने की होड़ में गाली-ग्लौज के बाद भाषणबाजी शुरू हो गई। इंटरनेशनल फ्रॉड विथ जर्नलिस्ट के आधे हिस्से के नेता जोनाथन खानदानी ने कहा, ”आज हमारे जिस प्रयास से सरकार ने पेंशन देने का निर्णय लिया है, उसके लिये मैं बधाई का पात्र हूं, लेकिन अगर मैं यह बधाई अकेले ले लिया तो यह नाइंसाफी होगी और इसके लिये मैं खुद को माफ नहीं कर पाऊंगा। इस महान कार्य में मेरे पुत्र की भी सराहना की जानी चाहिये। पिता-पुत्र की जोड़ी ने जिस तरह संघर्ष की राह पर चलकर पत्रकारों का पेंशन कराया है, उसको हम दोनों के अलावा कोई और महसूस नहीं कर सकता। मैं सरकार से दरख्वास्त करूंगा कि मेरे तीस वर्षीय पुत्र राबर्ट बापदानी के संघर्षों को देखते हुए उसे साठ साल का घोषित करने का शासनादेश लाया जाये ताकि वह पेंशन लेने का हकदार बन सके।” जोनाथन जी का भाषण सुनकर दस्तरख्वान से मुफ्त मुर्गा ले जाने वाले पत्रकारों में खुशी की लहर दौड़ गई। चार लोगों ने मिलकर तालियां बजाईं। पांच लोगों ने गाली-ग्लौज किया। इस तरह माहौल फिर खराब हो गया।
वरिष्ठ पत्रकार कट्टा श्रीवास्तव ने जोरदार नारा लगाया, ”जोनाथन चच्चा-राबर्ट भइया अमर रहें अमर रहें। जो हमसे टकरायेगा चूर चूर हो जायेगा। पेंशन लेने आये हैं पेंशन लेकर जायेंगे, टेंशन देने आये हैं टेंशन देकर जायेंगे।” कट्टा की बात सुनकर इंटरनेशनल फ्रॉड विथ जर्नलिस्ट के कब्जे वाले हिस्से के नेता बेंजामिन टैंकची का पारा चढ़ गया। उन्होंने भी जोरदार आवाज में नारा लगाया, ”जोर जुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है।” बेंजामिन के चेले मांगे ने उनके नारे के समर्थन में अपना नारा जोड़कर ललकारा, ”बता नहीं सकते भइया को किसने किसने मारा है, जोर जुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा है।” नारे के जोश में मांगे ने कहा, ”पत्रकारों का पेंशन बेंजामिन भइया ने लागू करवाया है। कोई माई का लाल अगर इसमें अपना हाथ बताया तो उसका हाथ काट दिया जायेगा। मैं तो कहता हूं कि पत्रकार पेंशन ही क्यों भइया ने रेलवे पेंशन, बैंक पेंशन, रोडवेज पेंशन सब भइया ने लागू कराया है। इतना ही नहीं कुछ समय के लिये जब मेरी पत्नी विधवा हुई थीं तब विधवा पेंशन भी भइया ने ही लागू कराया।”
श्रेय लेने के माहौल से बेपरवाह राबर्ट ने भाषण शुरू करते हुए कहा, ”पिताजी का पत्रकारों के लिये संघर्ष याद कर आंख में आंसू आ जाते हैं। पिताजी के प्रयास से ही सरकार पेंशन लागू करने को मजबूर हुई। पिताजी के आंदोलन से अंग्रेज भी देश छोड़कर भागने को विवश हुए। स्वतंत्रता सेनानी पेंशन तक पिताजी ने लागू करवाया। पिताजी ने पत्रकारों के लिये संघर्ष करके ही हमलोगों के लिये फ्लैट खरीदा, सरकार से गरीब-कमजोर पत्रकारों की लड़ाई लड़कर ही पिताजी ने प्रिंटिंग प्रेस और सरकारी जमीन लिया। पिताजी के संघर्षों की लंबी लिस्ट है, लेकिन पिताजी अपने मुंह से यह बताकर अपनी तारीफ नहीं करना चाहते, इसलिये मुझे करनी पड़ रही है। पेंशन लागू कराकर पिताजी ने साबित कर दिया है कि पत्रकारों के असली नेता वही हैं।” राबर्ट की बातें सुनकर पिस्तौल सिंह को जोश आया। उन्होंने जोरदार नारा लगाया, ”जब तक सूरज चांद रहेगा, जोनाथन भइया तेरा नाम रहेगा।” नारा सुनकर जोनाथन की आंखों में आंसू आ गये। उन्हें पिस्तौल को आश्वस्त किया कि संगठन में अगला उपाध्यक्ष उसी को बनायेंगे।
पत्रकार नेता श्रेय लेने के होड़ में लगे हुए थे इसी बीच असलम फिदायिन ने पूरे मामले की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हुए पत्र जारी कर दिया। पत्र के हिसाब से अब तक जो भी पेंशन लागू हुआ, यहां तक देश-प्रदेश के बाहर तक, उनके ही प्रयास से हुआ है। पत्र जारी होते ही पत्रकारों के संगठन नॉन जर्नलिस्ट यूनियन के नेता तोप सिंह को भयानक गुस्सा आ गया। ट्रांसफर-पोस्टिंग कराने का चार पत्र अधिकारी की टेबल पर फेंककर प्रेस रूम पहुंचे और ऐलान किया, ”पत्रकारों का पेंशन उन्होंने और बेंजामिन ने मिलकर लागू कराया है। इसकी जिम्मेदारी मैं लेता हूं। हम विद्या कसम खाने को तैयार हैं। बेंजामिन मतारी कसम खा सकते हैं। धरती हमारी माई है, पेंशन हमने लागू करवाई है।” फिर मांगे को जोश आया। उसने कहा, ”तोप भइया सही कह रहे हैं, वह हर काम के जिम्मेदार हैं। ट्वीन टॉवर भी उन्होंने ही जमींदोज करवाया है।” मांगे की बात सुनकर गेंदामल शर्मा को गुस्सा आ गया, उन्होंने कहा, ”खबर छापकर चीन को हिला देता हूं और दावे के साथ कहता हूं कि पत्रकारों का पेंशन अकिलेश भइया ने लागू कराया है।” कमरे में तेज शोर उठा, जब भीड़ छंटी तो गेंदामल अपने तोंद के बल जमीन पर पड़े हुए थे, फिर भी तय नहीं हो पाया था कि पेंशन किसने लागू करवाया है।
साभार व्यंग्य : वरिष्ठ पत्रकार अनिल कुमार 9140191419