– सुदामा चरित्र के मार्मिक प्रसंग के साथ कुंजबिहारी मंदिर में चल रही श्रीमद भागवत कथा का समापन

झांसी। श्री कुंज बिहारी मंदिर में 8 सितम्बर से चल रही श्रीमद भागवत कथा का गरुवार को श्रीकृष्ण सुदामा चरित्र के मार्मिक प्रसंग के साथ विधिवत समापन हो गया। कथा व्यास बुंदेलखण्ड धर्माचार्य महंत राधामोहन दास महाराज ने श्रीमद भागवत की पीयूष रस वर्षा करते हुए कहा कि मित्र और गुरु से कभी कपट नहींं करना चाहिए अन्यथा उसका प्रारब्ध कभी न कभी भोगना ही पडता है। उ

न्होंने कहा कि भगवान सुख देते हैं कि हम भगवान का भजन करें किंतु सुख पाकर मानव भगवान को भूलकर भोग विलास में रहकर भगवान को भूल जाते हैं।वे कहते हैं कि सुदामा दरिद्र नहीं गरीब व्राह्मण और प्रभु श्रीकृष्ण के परम भक्त एवं सच्चे बाल सखा थे किंतु उज्जैन में संदीपन गुरु के आश्रम में शिक्षा अध्ययन के दौरान यज्ञ के लिए समिधा लेने जाते समय गुरुमाता द्वारा दिये गये चने सुदामा ने अपने साथ साथ कन्हैया के हिस्से के भी खा लिये थे और कन्हैया के पूंछने पर उनसे झूठ बोल दिया। कथा व्यास ने भगवान श्री कृष्ण को प्राणी जगत का उद्धारक बताते हुए कहा कि प्रभु तो सभी की सुनते हैं पर हम उन्हें प्रेम और करुणा से बुलाते नहीं हैं। जब सुदामा द्वारिकाधीश के पास कुछ मांगने पहुंचे तो पता लगते भगवान सिंहासन से उतरकर दौड पडे और उन्हें गले से लगातार बिना मांगे ही दुनिया का सभी वैभव और महल प्रदान कर दिये।

महाराज श्री ने कहा कि हमें भगवान के सामने जाने पर सांसारिक वस्तुयें अथवा धन दौलत नहीं मांगना चाहिए, प्रभु से तो उनके चरणों की भक्ति मांगना चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान तो अंतर्यामी हैं वे दुनिया के लोगों की सभी जरुरते जानते हैं, यदि हम उनसे प्रभु चरणों की भक्ति मांगेगे तो स्वतः ही हमारी सांसारिक जरुरतें बिना मांगे ही पूरी हो जायेंगी। कथा प्रसंग के दौरान आपने सुंदर भजन “मुकुट धर सांवरे.रे, लाला दो बापन कौ जायौ ..”सुनाया जिसे सुन श्रोता मंत्रमुग्ध हो गये।

प्रारंभ में यजमान संगीता संजीव दुबे, शैली मृदुल खरे, रेशमा राजकुमार सिंह, शिल्पी सुजीत तिवारी पूर्व पार्षद,ममता रामप्रताप चंदेल, माला ओमप्रकाश अग्रवाल,मधु राकेश चंद्र सूरी एवं मालती सिंधपाल सिंह गौर ने महाराज श्री का माल्यार्पण कर श्रीमद् भागवत पुराण की आरती उतारी। इससे पूर्व पं राम लखन उपाध्याय ने विधि विधान से पुराण पूजन कराया। इस मौके पर पवनदास महाराज, बालकदास महाराज, मनमोहन दास महाराज एवं पं.अनिल तिवारी मौजूद रहे।