झांसी। मोंठ स्टेशन पर 11109 झांसी-लखनऊ इंटरसिटी ट्रेन रुकी और दिव्या के कदमों को पर लग गए क्योंकि यह गाड़ी उसके सपनों की मंजिल पर ले जाने वाली थी, किंतु उसकी उम्मीदों पर उन्हीं वर्दीधारियों जिनके कंधों पर व्यवस्था की जिम्मेदारी है व लड़की को बराबरी का दर्जा देने की खोखली वकालत करने वालों ने ही पानी फेर दिया। दिव्या प्लेटफार्म पर हिरनी की तरह कोच का गेट खुलवाने भाग भाग कर चिरोरी करती रही पर किसी के कानों पर जूं नहीं रेंगी। देखते ही देखते ट्रेन दिव्या के सपनों को रौंदते हुए आंखों से ओझल हो गई। इस घटनाक्रम ने रेल प्रशासन की उस (अ) व्यवस्था पर भारी भरकम प्रश्न चिन्ह लगा दिया है जिससे हर रोज न जाने कितनी दिव्या को दो-चार होना पड़ता है। कोई सुधार करेगा भी…या यूं ही दिव्या की शिकायत का पन्ना इस टेबिल से उस टेबिल फड़ फड़ाते हुए डस्टबिन की शोभा बन जाएगा।

जिला झांसी के समथर निवासी विजय छत्री ने रेल अफसरों को शिकायत करते हुए बताया कि उनकी भतीजी दिव्या नौकरी का प्रमोशन टेस्ट देने लखनऊ जा रही थी। उसका रिजर्वेशन 11109 झांसी-लखनऊ इंटरसिटी ट्रेन में कोच नंबर B2 में सीट नंबर 5 पर था। समय से ट्रेन पकड़ कर लखनऊ पहुंच कर नौकरी ज्वाइन करने के लिए वह सुबह से ही मोंठ स्टेशन पहुंच गई। जब ट्रेन सामने आ गई तो वह भागते हुए अपने कोच B-2 के पास पहुंची, लेकिन कोच का दरवाजा बंद था।

यह देख कर परेशान दिव्या ने दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया लेकिन किसी ने नहीं खोला। इस पर फिर भाग कर आगे की तरफ पहुंची वहां बैठे पुलिस कर्मी से गुहार लगाती रही लेकिन उन्होंने भी दरवाजे को नहीं खोला और मुस्कुराते हुए अपनी वर्दी का रौब गालिब करते हुए दूसरे कोच में जाने का कहा। बेचारी दिव्या ने अन्य कोच में भी प्रवेश का प्रयास किया पर किसी का गेट नहीं खुला।

देखते ही देखते ट्रेन दिव्या के सामने से सपनों को रौंदते वर्दीधारियों की कर्तव्य परायणता पर विशालकाय प्रश्न चिन्ह लगाते हुए आंखों से गुम हो गई। प्लेटफार्म पर बेचारी दिव्या असहाय सी मायूस होकर थके कदमों से रेल की (अ) व्यवस्था को कोसते स्टेशन मास्टर कक्ष में प्रवेश कर गई। वर्दीधारियों की गैर जिम्मेदाराना हरकत से वह प्रमोशन टेस्ट देने से वंचित रह गई।

इस मामले में मायूस दिव्या ने आपा नहीं खोया और बड़ी ही शालीनता से अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए स्टेशन की शिकायत पुस्तिका में अपनी शिकायत दर्ज करते हुए लिखा – “प्रभावी कार्रवाई करने की कृपा करें”। इस लाइन ने रेल प्रशासन के पाले में गेंद उछाल दी है। देखना है कि रेल प्रशासन क्या कार्रवाई करता है ताकि स्टेशन पर कोच के बंद दरवाजों से दिव्या जैसी पीड़ा की शिकार हो चुकी को न्याय मिल सके और भविष्य में इस प्रकार की प्रवृत्ति पर अंकुश लगे ताकि फिर कोई दिव्या जैसी पीड़ा से दो-चार न हो।