कचरा मुक्त भविष्य की परिकल्पना को दिया साकार रूप, ज़ीरो वेस्ट आयोजन बना उदाहरण

प्लास्टिकासुर और धुआं-सुर के प्रतीक पात्रों ने दिया कचरा और प्रदूषण के विरुद्ध सशक्त संदेश

झांसी । जल, जंगल,जमीन संरक्षित करने के उद्देश्य से झांसी की पावन धरती एक नई क्रांति की साक्षी बनी, जहां श्रद्धा और पर्यावरण का ऐसा मिलन देखने को मिला जो आज के दौर में विरला है। सड़कें केवल यातायात की राह नहीं थीं, वे बन गईं थीं सामाजिक चेतना की धड़कन। न हाथों में गंगाजल था, न सिर पर कलश – इस बार श्रद्धालुओं की कांवड़ में सज रहे थे जीवनदायिनी पौधे, हरियाली के प्रतीक, और भविष्य की सांसों के रक्षक। यह था दृश्य उस ऐतिहासिक “वृक्ष कांवड़ यात्रा” और कचरा मुक्त भविष्य – चेतना रथ का, जिसका आयोजन जिला जनकल्याण महासमिति, झांसी एवं रानी झांसी फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। यात्रा का उद्देश्य था – कचरा मुक्त भविष्य, स्वच्छ पर्यावरण और जन-सहभागिता से प्रकृति की रक्षा और वन्यजीवों की सुरक्षा। धार्मिक स्वरूप और सामाजिक उत्तरदायित्व का यह संगम न केवल लोगों के मन को छू गया, बल्कि उनकी सोच में भी हरित परिवर्तन का बीज बो गया।

कार्यक्रम संयोजक डॉ. जितेन्द्र कुमार तिवारी ने कहा कि
“यह यात्रा केवल एक शोभायात्रा नहीं थी, यह समाज की सोच में स्थायी परिवर्तन लाने का प्रयास है। हमने आस्था को माध्यम बनाया, लेकिन उद्देश्य केवल धार्मिक नहीं है – यह एक हरित आंदोलन का बीजारोपण है। पर्यावरण संरक्षण केवल भाषणों या अभियानों से नहीं होगा, जब तक हम इसे अपने जीवन, अपनी परंपराओं और अपनी भावनाओं से नहीं जोड़ेंगे। यह कांवड़ यात्रा दरअसल हमारे भविष्य की सांसों की रक्षा यात्रा है।झांसी ने आज एक संकेत दिया है पूरे प्रदेश को – कि प्रकृति की पूजा केवल जंगलों में नहीं, बल्कि हर घर के आंगन में होनी चाहिए। हर पौधा, हर तिनका, हर बूंद – ईश्वर का प्रसाद है। हमने इस यात्रा में प्लास्टिक मुक्त जीवन, कचरा प्रबंधन, वृक्षारोपण, और जन-जागरूकता को ऐसे जोड़ा कि श्रद्धा भी बनी रही और संवेदना भी जागृत हुई। यही वह सामाजिक परिवर्तन है जिसकी आज आवश्यकता है। “हमारा प्रयास रहेगा कि यह यात्रा एक परंपरा बने – हर साल, हर सावन में झांसी से एक संदेश निकले: प्रकृति बचाओ, भविष्य बचाओ!”

सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय रंगों से सजी यात्रा

इस यात्रा में जन-जागरूकता को रोचकता और प्रतीकों के साथ जन-मन तक पहुँचाने का प्रयास किया गया। प्लास्टिक प्रदूषण के प्रतीक “प्लास्टिकासुर” और “धुआं-सुर”, ई-कचरे के राक्षस स्वरूप, तो दूसरी ओर “धरती माता”, “जल देवी”, “वृक्ष देवता” और “स्वच्छता नायिकाएँ” – इन सभी ने यात्रा को एक चलता-फिरता इको-थियेटर बना दिया। बालिकाओं की झांकियां, पौधों से सजी कांवड़, पारंपरिक वेशभूषा और नारों की गूंज ने पूरे शहर में एक अनुपम वातावरण निर्मित किया।
इस आयोजन में खास बात यह रही कि इसमें ज़ीरो वेस्ट सिद्धांत को बताते हुए लोगों को प्रेरित किया गया कि वे घर से पानी लाएं, पत्तों की थालियों में प्रसाद लें और आयोजन के बाद कचरे को अलग-अलग सेग्रिगेट करें। इस प्रयास ने यह साबित कर दिया कि साफ-सुथरा आयोजन न केवल संभव है, बल्कि प्रेरक भी हो सकता है।

यात्रा के समापन पर महानगर धर्माचार्य पं. हरिओम पाठक की उपस्थिति में सामूहिक पौधारोपण कार्यक्रम हुआ जिसमें बड़ी संख्या में विद्यार्थी, महिलाएं, सामाजिक कार्यकर्ता एवं नागरिक इस पुण्य कार्य में शामिल हुए और पौधों के संरक्षण का संकल्प लिया – “एक पेड़ माँ के नाम”।

झांसी की पहल – अब प्रदेश की प्रेरणा
“वृक्ष कांवड़ यात्रा” और कचरा मुक्त भविष्य – चेतना रथ,केवल एक शहर का प्रयास नहीं, यह पूरे समाज की चेतना की प्रतिनिधि बन गई है। यह एक ऐसी परंपरा का श्रीगणेश है जिसमें भावनाएं भी हैं, समाधान भी। झांसी ने जो किया, वह एक नवाचार है, जो आने वाले वर्षों में प्रदेश के हर कोने से प्रकृति के पक्ष में उठती आवाज़ बन सकता है।इस यात्रा ने न केवल यह बताया कि पर्यावरण संरक्षण कैसे सांस्कृतिक आस्था से जोड़ा जा सकता है, बल्कि यह भी दिखाया कि आस्था जब सक्रिय होती है, तो आंदोलन बन जाती है। झांसी का यह प्रयास आने वाले वर्षों में हरित भारत की नींव को और मजबूत करने वाला सिद्ध होगा।

यात्रा में लैफ्टिनेंट डा शारदा सिंह के नेतृत्व में आर्य कन्या महाविद्यालय की एन सी सी की छात्राओं की विशेष भूमिका रही।प्रतिमा ओझा,आर एन शर्मा,आर एन उपाध्याय,मंजु शर्मा,डा संगीता राय, भावना चंदेल, ओमप्रकाश सिंह,सेंट कोलंबस स्कूल से मेघा दीक्षित, पैरामेडिकल कॉलेज से डा लवीन मसीह, योगेश पांचाल, बबीता ओझा, सीमा चौबे, सुनीता सोनी, मोतीलाल दुबे,संजय दुबे, जगमोहन बडोने, आचार्य राजीव पाठक, ड्रीम इंडिया प्रिया शर्मा, अनिरुद्ध शर्मा,डा शारदा सिंह,शिल्पी गुप्ता,दुष्यंत चतुर्वेदी, निधी वर्मा,राजेश ठकुरानी, राहुल सैनी,नोशी खान,पूजा गुप्ता,बी पी नायक,अजय तिवारी, अनुपम गुप्ता, सभासद लखन कुशवाहा, पंकज झा, शिरोमणि शर्मा, रवीश त्रिपाठी, आशुतोष द्विवेदी, सूर्या निषाद, रजनी झा,आशा राय,सीमा रजक,भावना कुशवाहा , अभिषेक आनंद, कबीर साहू, धीरज वर्मा ,आदर्श सूर्यवंशी,आरती साहू, ज्योति यादव, वंदना, गिरजा शंकर मालवीय,निधि वर्मा, आदि मौजूद रहे। अंत में सभी का आभार व्यक्त सतेंद्र कुमार तिवारी ने व्यक्त किया।

यात्रा में ये रहे आकर्षण का केंद्र:

वन्य प्राणियों के जीवंत प्रतीक स्वरूप:
जब ‘बाघ’, ‘हाथी’, ‘हिरण’ और ‘पक्षियों’ के रूप में सजे हुए छात्र-छात्राएं गगनभेदी नारों के साथ आगे बढ़े, तो राह चलते लोग ठिठक गए। बच्चों ने सेल्फी लेने के लिए भीड़ लगा दी।
कचरा राक्षस, प्लास्टिक दैत्य और धुआं राज:
इन प्रतीक राक्षसों की झांकी इतनी प्रभावशाली थी कि लोग गाड़ियाँ रोक-रोककर वीडियो बनाने लगे। विशेष रूप से ‘प्लास्टिक राक्षस’ की विशालकाय पोशाक आकर्षण का मुख्य केंद्र रही।
प्रकृति की सेना’ झांकी
धरती माता की पीड़ा को दर्शाती यह झांकी इतनी भावुक कर देने वाली थी कि कई लोग इसे देखकर भाव-विभोर हो उठे। विद्यार्थियों ने ‘धरती बचाओ’, ‘पानी बचाओ’, ‘पेड़ लगाओ’ जैसे नारे लगाकर वातावरण को ऊर्जावान बना दिया।
सेल्फी प्वाइंट बना पूरा काफिला
पूरे यात्रा मार्ग में जहाँ-जहाँ यात्रा पहुंची, वहाँ लोग मोबाइल लेकर वीडियो और सेल्फी खींचते नजर आए। लोग अपने परिवार के साथ बच्चों को यह यात्रा दिखाने विशेष रूप से पहुंचे।