• तिलहन व वृक्षजनित तेल उत्पादन की जरूरत पर बल
    झांसी। क्राफ्ट मेला मैदान में बुन्देलखण्ड साहित्य मेला में नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन योजना अन्तर्गत तिलहन एवं वृक्षजनित तेल कार्यक्रम संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि मण्डलायुक्त सुभाष चन्द्र शर्मा ने कहा कि धरती हमारी माता है, जब मां स्वस्थ होगी तभी किसान खुशहाल और क्षेत्र का विकास होगा। खेती कार्य में विविधीकरण अपनाना होगा, एक समान खेती से लाभ नहीं होगा। खेत पर मेड़ों, तालाब किनारे नीम, महुआ व अंडी का पेड़ लगाने को लाभकारी निरूपित करते हुए उन्होंने बताया कि इससे जल संचय के साथ तेल भी प्राप्त होगा। उन्होंने उत्पादन व उत्पादकता में बढ़ोत्तरी हेतु अन्नदाता से वैज्ञानिकों द्वारा दिए गए सुझावों व खेत की मिट्टी की जांच करा कर उसी के अनुसार खेती करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से मृदा का स्वास्थ्य बिगड़ गया इसे सुधारा जाना जरूरी है। खेत में गोबर खाद का इस्तेमाल हो, खेत में केंचुआ डालें क्योंकि यह बेहद उपयोगी है। उन्होंने जैविक खेती करने का भी सुझाव दिया।
    मण्डलायुक्त ने बुंदेलखंड की जलवायु के अनुरूप सूरजमुखी की खेती करने के अलावा पशु, मुर्गी, मस्त्य पालन करने का भी सुझाव देते हुए बताया कि संगठित होकर यदि किसान क्षेत्र में कार्य करें तो लाभ की संभावनाएं अधिक होगीं। उन्होंने क्षेत्र में एक समान खेती करने के नुकसान पर अलग-अलग प्रकार की खेती करने का सुझाव दिया। खेत में गेहूं चावल की खेती से लाभ कम है। इसके स्थान पर वैज्ञानिकों द्वारा सुझाई गई फसलों की बुवाई करें। इस दौरान अधिष्ठाता डा. एसके चतुर्वेदी रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय ने बताया कि भारत में 79 करोड़ का तेल विदेशों से आयात होता है। भारत में क्षमता है कि एक हजार करोड़ रुपए हम देश में ही तेल उत्पादन कर बचा सकते हैं। वृक्ष जनित तेल के लिए करजंय, महुआ व नीम के पेड़ लाभदायक है। उन्होंने बताया कि विगत 2 वर्षों में विश्वविद्यालय ने बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए दलहन व तिलहन के उन्नतशील बीज की किस्म तैयार की है। किसान दलहन /तिलहन के लिए ऐसी किस्मों के बीज का उपयोग करें। उन्होंने कहा कि किसान खेत पर मेड़ व तालाब के किनारे वृक्षारोपण करें, जिसमें नीम, महुआ व करजंय के पेड़ लगाएं इससे आमदानी बढ़ेगी। उन्होंने पानी को बचाने पर बल देते हुए बताया कि क्षेत्र में 700/750 मिमी वर्षा होती है, परंतु संचय नहीं कर पाते है, पानी बर्बाद हो रहा है। यदि नहर को पक्का करें तो वर्षा जल की बर्बादी नहीं होगी। किसान सिंचाई में स्प्रिकंलर का उपयोग करें, इससे भी जल की बर्बादी रोकी जा सकती है।
    मऊरानीपुर शोध केंद्र के डॉ पीके सोनी ने बताया कि बुंदेलखंड में दलहन व तिलहन बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने मऊरानीपुर शोध केंद्र में तैयार की तिल की उन्नतशील प्रजाति जिसमें एमटी 75, टाइप 78, शेखर तथा आर टी 351 की जानकारी दी और इसका उपयोग करते हुए करने की सलाह दी। संयुक्त विकास आयुक्त चंद्रशेखर शुक्ला ने किसानों से कहा कि ऐसी फसलों का चयन हो जो लाभदायक हो। उन्होंने जौ की खेती करने का सुझाव देते हुए कहा कि आजकल इसकी बहुत मांग है। स्वस्थ रहने के लिए आज सभी इसका उपयोग कर रहे हैं। संयुक्त कृषि निदेशक ओपी पांडे ने सुझाव दिया कि खेत में फसल के अवशेषों में आग न लगाएं, इससे मृदा के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उन्होंने किसानों को वृक्षजनित तेल की जानकारी दी। संचालन करते हुए उप निदेशक कृषि केके कटियार ने बताया कि किसान जिप्सम योग करें इससे उत्पादन बढ़ेगा उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि संगठित होकर खेती करें तो लाभ अधिक होगा। इस मौके पर डीडीपीपी उमेश कटियार, टीपीओ विवेक कमार, वीएसए सुधीर कुमार, दीपक कुशवाहा, अनिक कुमार सहित बड़ी संख्या मे किसान उपस्थित रहे।