झांसी। देश में कोरोना वायरस महामारी से लॉकडाउन में कोटा में फंसे यूपी के छात्रों के जत्थे जैसे ही झांसी पहुंचे खुशी से झूम उठे। अधिकारियों ने झांसी की सीमा पर जत्थों की आगवानी की और स्क्रीनिंग करवा कर सोशल डिस्सटेंशिंग का पालन करते हुए सभी को उनके गृहनगर पहुंचाने की व्यवस्था की गयी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इस व्यवस्था का छात्रों व उनके परिजनों ने तहे दिल से स्वागत अभिनन्दन किया। गौरतलब है कि कोटा से उप्र के छात्रों को वापस लाने के लिए शुक्रवार को 100 बसें झांसी व 150 बसें आगरा से भेजी गई थीं। आज सुबह से यह बसें छात्रों को लेकर झांसी पहुंचना शुरू हो गई थीं। बसों में सवार छात्रों की झांसी की सीमा पर अधिकारियों ने आगवानी की। छात्रों को जिले के बॉर्डर पर पर तीन कॉलेजों को बनाए ग्रे स्क्रीनिंग सेंटर पर ले जाकर जांच की गयी। बताया गया है कि कोटा से आने वाली एक बस में औसतन 30 विद्यार्थी बिठाए गए थे। इन बसों में विद्यार्थी प्रयागराज, कौशाम्बी, वाराणसी, बांदा, चित्रकूट सहित उत्तर प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों के शामिल थे। झांसी आने पर जो बच्चे झांसी के थे उन्हें यहीं उतार लिया गया और बकाया बच्चों को उनके गृहनगर पहुंचाने के लिए इन्हीं बसों से रवाना किया गया। इन स्टूडेंट्स की यहां स्क्रीनिंग के बाद उन्हें नाश्ता उपलब्ध कराया गया। स्टूडेंट्स को यहां बस से बाहर न निकालकर भीतर ही स्क्रीनिंग की गई। दरअसल, सुबह से ही बार्डर पर सुरक्षा के काफी प्रबन्ध किये गए थे। झांसी के कमिश्नर सुभाष चन्द्र शर्मा, आईजी सुभाष सिंह बघेल, डीएम आंद्रा वामसी, एसएसपी डी प्रदीप कुमार सहित अन्य अफसरों ने मौके पर पहुंचकर व्यवस्थाओं का जायजा लिया और बच्चों को सुरक्षित पहुंचाने के लिए दिशानिर्देश देते रहे। कोटा में फंसे हुए छोटे-छोटे बच्चों को घर पहुंचाने की व्यवस्था की सभी लोगों द्वारा सराहना की जा रही है वहीं कतिपय नेताओं द्वारा इस पर राजनीति करना शुरू कर दी है। बच्चों को बचा कर घर पहुंचाना कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि कहीं उनके बच्चे इस तरह की मुसीबत में फंसे हुए होते तो क्या वह विरोध करते।