झांसी। अंतरराष्ट्रीय संस्था “हिन्दी साहित्य भारती” के तत्वावधान में “वैश्विक परिदृश्य में हिन्दी” विषय पर अंतरराष्ट्रीय तरंग संगोष्ठी (वेबिनार) का संयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न देशों के हिन्दी के विद्वान प्रतिनिधियों ने सहभागिता करते हुए, संबंधित विषय पर विचार व्यक्त कर, अत्यंत प्रेरक संदेश देकर रोमांचित कर दिया।
तरंग-संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में झांसी से डॉ रवींद्र शुक्ल, केंद्रीय अध्यक्ष “हिं. सा. भा.” पूर्व कृषि एवं शिक्षामंत्री, रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय, महामंत्री अंतरराष्ट्रीय समिति हिं. सा. भा. द्वारा की गई। कार्यक्रम का संचालन केंद्रीय मीडिया प्रभारी. डॉ रमा सिंह ने किया ।
गोष्ठी में केंद्रीय अध्यक्ष डॉ.रवीन्द्र शुक्ल ने हर्ष गद्गद स्वर में कार्यक्रम की सराहना करते हुए वक्ताओं के उद्बोधन पर साधुवाद व्यक्त किया तथा हिंदी के प्रति समर्पण एवं ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ तथा ‘विश्वबंधुत्व’ के भावों से समृद्ध भारतीय सांस्कृतिक चेतना को रेखांकित करते हुए समष्टि के लिए व्यष्टि के बलिदान की हिंद तथा हिंदी की विशिष्ट परंपरा पर प्रकाश डाला। आपने हिन्दी के उन्नयन हेतु सतत् संकल्पित रहने का भी आह्वान किया।
अध्यक्ष के रूप में अंतरराष्ट्रीय महामंत्री डॉ करुणा शंकर ने हिंदी सेवा के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा, “राष्ट्र के महापुरुषों को साहित्यिक पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए, साथ ही हमें भारतीय दर्शन एवं आध्यात्मिक- सांस्कृतिक महत्व के विशिष्ट साहित्य को महत्व देते हुए राष्ट्रीय मानक तैयार करने होगें। समस्त पाठ्यक्रम नेट एवं पोर्टल पर उपलब्ध कराए जाने की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि विश्वभर के 200 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। देश से बाहर भी अनेक समाचार चैनल हिंदी का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं एवं अनेक टीवी चैनल हिंदी में ही आध्यात्मिक-सांस्कृतिक विषयों पर कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं। इससे भारत के प्रति विश्व की रुचि एवं रुझान बढ़ रहे है।
संगोष्ठी में अमेरिका, जापान, इजरायल तथा उज्वेकिस्तान के विद्वानों ने अत्यंत प्रेरणास्पद विचार प्रस्तुत किए। सभी ने यह बताया कि भारतीय साहित्य, संस्कृति, दर्शन और धर्म में उनके देश के लोगों की गहरी रुचि और जिज्ञासा है।
हिन्दी /जापानी लेखिका तोमोको किकुचि ने राष्ट्रभाषा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारे राष्ट्र में राष्ट्रभाषा जापानी में ही सभी कार्य किए जाते हैं लेकिन हिंदी में भी लोगों की विशेष रुचि है। एक संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने बताया कि जब वे भारत में हिंदी में बात कर रही थीं तो भारतीय लोगों ने उन्हें अंग्रेजी में उत्तर दिया, जो उन्हें बहुत ही अटपटा तथा खेदजनक लगा।
उज़्बेकिस्तान से डॉ. नीलोफर ने बताया कि विदेशी भाषा के रूप में हिंदी को मान्यता प्राप्त है तथा प्राथमिक स्तर से उच्च शिक्षा तक हिंदी शिक्षण की व्यवस्था है।
अमेरिकी विद्वान डॉ. ग्रेबियल निक इलेवा, विभागाध्यक्ष हिन्दी, न्यूयॉर्क ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि उनके देश में हिंदी की शिक्षा प्रदान की जाती है।अधिकांश शिक्षा केंद्र इसकी विशेष सुविधा प्रदान करते हैं एवं हिंदी दर्शन को समझाने हेतु भारतीय विद्वानों को भी आमंत्रित किया जाता है। उन्होंने कहा कि श्री नरेंद्र मोदी के आने के बाद भारत के साथ-साथ हिंदी का महत्व भी बहुत बढ़ गया है, क्योंकि ‘यह नया भारत है’।
इजरायली विद्वान गेनादि श्लोम्पर ने अपने विचार साझा करते हुए कहा इजराइल में निरंतर हिंदी शिक्षा प्रदान की जा रही है, बड़ी संख्या में छात्र विदेशी भाषा के रूप में हिंदी ले रहे हैं। हिंदी और संस्कृत में लोगों बहुत रुचि है।
सभी विदेशी विद्वानों ने अपने सांस्कृतिक केंद्रों द्वारा निरंतर हिंदी साहित्य के अपनी भाषा में अनुवाद की जानकारी दी।
स्मरणीय है कि इन सभी विद्वानों ने अपने लंबे वक्तव्य शुद्ध हिंदी में दिए तथा हिंदी के प्रख्यात साहित्यकारों एवं उनकी कृतियों से भी वे सुपरिचित थे। उन्होंने कहा कि ऐसी साहित्य-संस्कृति समृद्ध भाषा का विश्व स्तर पर प्रचार-प्रसार सांस्कृतिक समृद्धि का कारक होगा। इससे प्रेरित होकर संगोष्ठी में सहभागिता कर रहे विविध प्रदेशों के विद्वानों ने भी अपनी चर्चा में हिंदी के प्रचार-प्रसार एवं उन्नयन को बल देने का संकल्प लेते हुए हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता दिलाने का सुनिश्चित लक्ष्य दोहराया।

सभी सहभागी साहित्यकारों ने भी अपनी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त कर हिंदी की सेवा एवं उन्नयन हेतु अपना दृढ़ विश्वास जताया। कार्यक्रम बहुत ही गरिमामय रहा। केंद्रीय अध्यक्ष महोदय आदरणीय रवीन्द्र शुक्ल ने उपस्थित सभी प्रतिभागियों का उत्साहवर्धन एवं शुभकामनाएँ प्रेषित कर प्रोत्साहित किया। अंत में अनिल शर्मा ने कल्याण मंत्र के पाठ के साथ आभार प्रदर्शन भी किया ।