जीएम उमरे द्वारा सिथौली स्प्रिंग कारखाने का निरीक्षण

झांसी/ग्वालियर। महा प्रबंधक उत्तर मध्य रेलवे एवं उत्तर पूर्व रेलवे विनय कुमार त्रिपाठी ने प्रमुख अधिकारियों के साथ सिथौली स्प्रिंग कारखाने का निरीक्षण व अधिकारियों के साथ बैठक की गयी, जिसमें कारखाना से सम्बन्धित विभिन्न विषयों पर चर्चा हुई। इस दौरान मण्डल रेल प्रबन्धक श्री संदीप माथुर व अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे।

स्प्रिग कारखाना निरीक्षण के दौरान महाप्रबन्धक ने कॉइल स्प्रिंग का प्रोसेस चार्ट देखा व कारखाने में होने वाली विभिन्न प्रक्रियाओं का बारीकी से निरीक्षण किया, जिसमें रॉ मटीरियल ऐण्ड टेपरिंग, वायर हीटिंग, क्वॉलिंग क्वीपिंग, टेम्परिंग ऐण्ड ग्राइण्डिंग, शॉट पीनिंग, कॉइल क्रैक टेस्टिंग, फॉस्फेटिंग प्राइमर पेण्टिंग, स्क्रेगिंग, लोड टेस्टिंग, ब्लैक पेण्टिंग व पैकिंग की प्रक्रिया को देखा और आवश्यक निर्देश दिए तथा पौधरोपण किया। महाप्रबन्धक ने निरीक्षण के दौरान कारखाना से सम्बन्धित आवश्यकताओं को तुरन्त मुहैया कराने के आदेश दिये।

इस अवसर पर प्रमुख मुख्य यान्त्रिक अभियन्ता कुन्दन कुमार, प्रमुख मुख्य इंजीनियर एस.के.मिश्रा, प्रमुख मुख्य विद्युत इंजीनियर सतीश कोठारी, प्रमुख मुख्य सामग्री प्रबंधक कमलेश शुक्ल मुख्य कारखाना प्रबन्धक सिथौली मनोज कुमार, मुख्य जनसंपर्क अधिकारी अजीत कुमार सिंह, वरिष्ठ उप महाप्रबंधक एन के सिन्हा, उप महाप्रबंधक मन्नू प्रकाश दुबे आदि उपस्थित रहे।

उल्लेखनीय है की इस कारखाने की स्थापना वर्ष 1989 में हुई थी तथा स्प्रिंग बनाने में यह कारखाना विशेष महारत रखता है I महामारी कोविड-19 के प्रसार की अवधि के दौरान लॉक डाउन अवधि में सिथौली कारखाना द्वारा एक अभिनव पहल के तेहत चितरंजन लोकोमोटिव कारखाने द्वारा बनाए जा रहे इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव डब्ल्यूएजी-9 के सस्पेंशन प्रणाली में उपयोग में आने वाली 4 विशेष प्रकार के स्प्रिंग्स के निर्माण की पहल की है। सभी सावधानियों के साथ और कोविड-19 के लिए अपेक्षित प्रोटोकॉल के बाद, विनिर्माण गतिविधि शुरू की गई थी। लॉक डाउन अवधि के दौरान इन 4 प्रकारों के कुल 1010 स्प्रिंग सफलतापूर्वक निर्मित किये गए तथा चितरंजन लोकोमोटिव कारखाने भेजे गए डब्ल्यूएजी-9 में उपयोग में आने वाले इन विशेष प्रकार के स्प्रिंग में से सबसे बड़ा स्प्रिंग 53 मिमी के तार व्यास का है और सबसे छोटा 16.5 मिमी के तार व्यास का है। इन स्प्रिंग्स के निर्माण के लिए आवश्यक विभिन्न सामान आसानी से उपलब्ध नहीं थे । इस प्रकार इसे “मेक इन इंडिया पहल” के रूप में भी माना जा सकता है।