झांसी । बुंदेलखण्ड प्राचीन काल से भगवान शिव की आराधना का प्रमुख केन्द्र है। यहां अनेक स्थानों प्राचीन शिव मंदिरों के अवशेष देखने को मिल जाते है। यहां हम बात कर रहे झांसी से कुछ मील की दूरी पर बसे डिमरौनी गांव में स्थित प्राचीन शिवालय के अवशेष की।

इतिहासकार डा चित्रगुप्त बताते हैं कि डिमरौनी गांव में प्राप्त प्राचीन शिवालय के अवशेष आकर्षित करते हैं। यह शिव मंदिर तकरीबन 6 वीं से 9वीं सदी के बीच निर्मित हुआ प्रतीत होता है। यह मंदिर देवगढ स्थित दशावतार मंदिर की तरह पंचायतन शैली में बना हुआ प्रतीत होता है । उंचे चबूतरे पर मुख्य मंदिर के चारों कोनों पर चार छोटे मंदिर यहां बने थे। पत्थरों के बङे-छोटे खंडों से इस मंदिर का निर्माण किया गया है। मंदिर निर्माण में चूने और लकङी आदि का इस्तेमाल नहीं किया गया है। चारों किनारों पर बने मंदिरों में केवल एक ही मंदिर बचा है, शेष तीनों ढह गये हैं। जिसका मलवा आसपास बिखरा हुआ है। मंदिर में शिवलिंग आज भी मौजूद है जो अपनी ऐतिहासिकता आज भी प्रमाणित कर रहा है। मुख्य मंदिर की उंचाई सामान्य है। शिखर भी ढह गया है। मंदिर के गर्भगृह की छत पर पुष्प की आकृतियां उकेरीं गयीं है जो आज भी ज्यों के त्यों है। मंदिर के बाहर पत्थर के शहतीर पङे हैं, जिन पर गंगा और यमुना की प्रतिमाऐं उकेरी गयीं है । संभवतः ये शहतीर मुख्य मंदिर के द्वारों पर लगे होंगे। इतिहासकार डा चित्रगुप्त बताते हैं कि प्राचीन बुंदेलखण्ड में नाग वंशी राजाओं का राज्य रहा है। जो भगवान शिव के उपासक थे , उनके समय के प्राचीन शिव मंदिर बुंदेलखण्ड में प्राप्त होते हैं। इसके अलावा प्रतिहारवंशी शासक भी शिवोपासना में लीन रहते है। उन्होने भी यहां अनेक मंदिरों की स्थापना की थी। डिमरौनी गांव में ही एक और शिवमंदिर है जो हजारिया शिव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। जिसके प्राचीन मंदिर ढह जाने पर उसकी जगह नवीन मंदिर स्थानीय निवासियों द्वारा कुछ वर्षों पूर्व करवा दिया गया । आपको बताते चले कि डिमरौनी एक ऐतिहासिक गांव है, यहां कि पहाङियों पर तीन गढ़ियां बनी है। जो अपने अंदर मध्यकालीन बुंदेली स्थापत्य को समेटे हैं।