बुविवि में घरेलू हिंसा समाज और मीडिया विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

झांसी। “परिवार समाज की पहली इकाई है। परिवार के वातावरण का प्रभाव परिवार के सभी सदस्यों पर पड़ता हैं। घरेलू हिंसा से ग्रस्त परिवार में बच्चों का विकास प्रभावित होता और समाज के विकास में बाधक बन जाता है। इसलिए यह जरूरी है कि घर के माहौल को खुशमय और सुखमय रखा जाए।” यह विचार बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी के कुलपति प्रो मुकेश पाण्डेय ने भास्कर जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान तथा पं. दीन दयाल उपाध्याय शोध पीठ बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी द्वारा राष्ट्रीय महिला आयोग नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में घरेलू हिंसा समाज और मीडिया विषयक संगोष्ठी में प्रतिभागियों को अध्यक्ष के रूप में संबोधित कर रहे थे। प्रो. पांडेय ने कहा कि सरकार महिलाओं के सम्मान और संरक्षा के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। आज महिला आयोग में कोई भी पीड़ित महिला अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है जिसका निराकरण बहुत ही प्रभावी तरीके से किया जाता है।

संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की मुख्य अतिथि डॉ कंचन जायसवाल ने कहा कि महिलाओं को अब डरने की जरूरत नहीं है। वह हर क्षेत्र में अपना नाम रोशन कर रही हैं। उन्होंने कहा कि महिला देश के विकास को धुरी है। उसके सहयोग के बिना देश विकास नहीं कर सकता है। डॉ मुन्ना तिवारी ने बताया कि महिला अब केवल श्रद्धा की पात्र नहीं है। वह संघर्ष और आगे बढ़ने के लिए तत्पर शक्ति है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को संरक्षण नहीं, ताकत दिए जाने की जरूरत है।

समापन सत्र के अध्यक्ष अधिष्ठाता कला संकाय प्रो सी बी सिंह ने कहा कि यह जागरूकता का ही परिणाम है कि कन्या भ्रूण हत्या जैसे मामले बहुत कम हो गए हैं और लगातार लिंगानुपात में सुधार हो रहा है। डॉ प्रीति भास्कर जिला एवं सत्र न्यायालय झांसी ने कहा है कानूनों का उपयोग केवल सुरक्षा और अपने अधिकारों को प्रात करने के लिए करना चाहिए न कि किसी को परेशान करने के लिए। कानूनों को जानना बहुत जरूरी है और उनका उचित उपयोग भी करना चाहिए। डॉ नीति शास्त्री ने कहा कि झांसी तो कभी हिंसा को स्वीकार नहीं करता है। यह जनपद तो महिलाओं के लिए ही जाना है। अपनी रानी के लिए जाना जाता है।

संयुक्त विकास आयुक्त मिथलेश सचान ने कहा कि कानून को क्रियान्वित करने की जरूरत है। कभी कभी न्याय में देरी हो जाती है लेकिन इसका यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है कि अपने अधिकारों के लिए नहीं लड़े। लड़कियों को अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों को समझना जरूरी है। कार्यक्रम के संयोजक डॉ उमेश कुमार ने बताया कि राष्ट्रीय महिला आयोग के सहयोग से आधारित इस संगोष्ठी में 27 शोध पत्रों को प्रस्तुत किया गया जिसके आधार पर निष्कर्ष निकाल कर आयोग को घरेलू हिंसा के रोकथाम के लिए सुझाव दिया जाएगा।

संगोष्ठी की आयोजन सचिव डॉ श्वेता ने बताया कि सबसे ज्यादा घरेलू हिंसा के मामले उत्तर प्रदेश से आते हैं। इसमें सबसे ज्यादा मामले आत्मसम्मान के साथ जीने का अधिकार जैसे मामलों के होते हैं।

यह शोध पत्र हुए प्रस्तुत – इस संगोष्ठी में घरेलू हिंसा का परिवार एवं बच्चों पर प्रभाव का अध्ययन, घरेलू हिंसा का परिवार एवं बच्चों पर प्रभाव एक समाजशास्त्रीय अध्ययन, शिक्षा और घरेलू हिंसा के बीच संबंध, फिल्म और घरेलू हिंसा, मीडिया और घरेलू जैसे विषयों पर शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। इस अवसर पर प्रो अपर्णा राज, डॉ यतींद्र मिश्र, डॉ साधना श्रीवास्तव, डॉ अनिल पांडेय, डॉ दीपक चौरसिया, डॉ नेहा खान, गजेंद्र सिंह, माधुरी निराला, ब्रजेश पाल, शाश्वत सिंग, विजया एवं अन्य ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किया।