• बीयू कृषि विज्ञान संस्थान में तीन दिवसीय कार्यशाला का समापन
    झांसी। बीयू के कृषि विज्ञान संस्थान के द्वारा गांधी सभागार में आयोजित एग्रीकल्चर डाईवरसिफि केशन फ ॉर डबलिंग फ ारमर्स इनकम एण्ड फूड सिक्योरिटी विषयक तीन दिवसीय कार्यशाला का आज समापन हो गया है। अध्यक्षता करते हुए संयोजक कृषि विज्ञान संस्थान केनिदेशक प्रो. बी.गंगवार ने कार्यशाला में दिये गये व्याख्यानों के आधार पर वैज्ञानिकों के द्वारा स्वयं के साथ-साथ किसानेां को को भी प्रशिक्षित करने का आव्हान किया। उन्होंने फ सल विविध्किरण परियोजना के आधार पर किसानों की आय दुगुनी करने व किस तरह से खाद्यान्न की गुणवत्ता मेंं सुधार किया जा सकता है के उपाये बताये। उन्होंने बताया कि जैविक खेती के महत्व पर पर प्रकाश डालते हुए गुणवत्ता पूर्ण उत्पादन, स्वस्थ मृदा एवं स्वस्थ्य वातावरण के परिपेक्ष में प्रक्षेत्र उत्पादकता को बडाया जा सकता है।
    मृदा एवं जल संरक्षण अनुसंधान केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डा. आर.एस.यादव ने बुन्देलखण्ड क्षेत्र में मृदा एवं जल संरक्षण मॉडल के अनुरूप खेती की विधि को अपना कर आया दुगुनी करने के बारे में चर्चा की। सहायक निदेशक रेशम आर.एल. मौर्य ने रेशम उत्पादन-एक अतिरिक्त आया श्रोत विषय पर व्यायख्यान दिया व रेशम कीट की प्रजातियों व उनके जीवन चक्र तथा उनकी गुणवत्तायुक्त उत्पादन बढाने के तरीक सुझाये। डा.अवनीश कुमार द्वारा पोषक तत्व प्रबन्धन, उत्पादन में उनका महत्व के साथ-साथ मृदा एवं वातावरण शुद्धिकरण विषाय पर विस्तार से जानकारी दी। डा. राठौड ने कहा कि बढती जनसंख्या को भोजन उपलब्ध करवाने हेतु हमने हरित क्रान्ति के माध्यम से कृषि पैदावार में तो अभूतपूर्व बृद्धि अवश्य की परन्तु संसाधनों के अंधाधुन्ध दोहन, रासायनिक खादों के प्रयोग के कारण भूमि की उर्वरकता तथा कृषि पैदावार की गुणवत्ता निरन्तर घटती चली गई। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम पैदावार बढाने के साथ-साथ गुणवत्ता पूर्ण फसलों का उत्पादन करें। उन्होंने कहा कि यह हमारे देश का दुर्भाण्य है कि यहां का किसान कर्ज में ही जन्म लेता है, कर्ज में ही जीवन व्यतीत करता है तथा कर्जे में ही उसकी मृत्यु भी हो जाती है। उन्होंने कहा कि यह भी इस देश का दुर्भाण्य है कि 81 प्रतिशत मार्जिनल किसानों के पास मात्र एक तिहाई एकड के लगभग खेती है यही कारण है कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश में 20 प्रतिशत किसान जीविका हेतु कृषि कार्य पसन्द नही करते है, 62 प्रतिशत किसान आजीविका का अन्य साधन उदपलब्ध होने पर कृषि कार्य छोड देना चाहते है। 37 प्रतिशत किसान नहीं चाहते कि उनकी आने वाली सन्तानें इस क्षेत्र में रहे। डा.राठौड ने कहा कि खेती से किसानों को जोडना वास्तव में एक चुनौती है। खेती की उर्वरकता के साथ साथ हमारे भूमि तथा जल संसाधन निरन्तर कम होते जा रहे है, जबकि जनसंख्या निरन्तर बढती ही जा रही है। डा.राठौड ने कहा कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक विविधताओं से पूर्ण क्षेत्र है। अत: हम इस क्षेत्र में स्थानीय संसाधनों के आधार पर आधुनिक तकनीकी का सहयोग लेकर आर्गेनिक खेती करने का प्रयास करेगें तो निश्चित ही सफलता प्राप्त होगी।
    उदघाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.जे.वी.वैशम्पायन के कहा कि अभी तक भारत में सभी सरकारों तथा राजनैतिक दलों के द्वारा किसानों की समस्याओं को हल करने के प्रयास किये जाते रहे है, वास्तविक रूप से यहां किसानों की नही वरन कृषि की समस्याओं के समाधान खोजने की आवश्यकता है। कुलपति ने कहा कि कृषि की समस्याओं का समाधान होते ही किसानों की समस्याओं का समाधान अपने आप हो जायेगा।
    इस अवसर पर अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो.देवेश निगम ने कहा कि किसानों की आय बढाने में परम्परागत खेती के अतिरिक्त संगन्ध पौधों की खेती कारगर हो सकती है। उन्होंने कहा कि हमारी वर्तमान जीवन शैली में इत्र डियोड्रेण्ट तथा इसी प्रकार के अन्य पदार्थो का उपयोग निरन्तर बढता ही जा रहा है, अत: हम समाज के इस चलन का उपयेाग किसानों की आय बढाने में कर सकते हैं। प्रारम्भ में बी.यू. में कृषि विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो.बी.गंगवार ने अतिथियेां का स्वागत करते हुए कार्यशाला की रूपरेखा प्रस्तुत की। संचालन डा.शाईमा परवीन ने किया जबकि कार्यशाला के आयोजन सचिव डा.सत्यवीर सिंह सोलंकी ने आमंत्रित अतिथियों का आभार व्यक्त किया।
    कुलपति प्रो.वैशम्पायन के द्वारा मुख्य अतिथि डा.राठौड को शॉल, श्रीफल तथा स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित भी किया गया।
    इस अवसर पर अधिष्ठाता अकादमिक प्रो.एस.पी.ंिसंह, डा.विनीत कुमार, डा.सन्दीप आर्य, डा.अभिमन्यु सिंह, डा.शिशिर कुमार सिंह, डा.पी.के.सिंह, डा.सन्तोष पाण्डेय, डा.राजीव बबेले, डा.अशोक कुमार, डा.अरविन्द भारती, डा.ए.के.दुबे, डा.शहनसी हासमी, डा.आस्था गुप्ता, डा.महीपत सिंह, डा.हरपाल सिंह सहित विभिन्न विभागों के शिक्षक-शिक्षिकाएं तथा छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
    उदघाटन सत्र के पश्चात प्रथम तकनीकी सत्र में बी.यू. में कृषि विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो.बी.गंगवार ने अपना सारगर्भित व्याख्यान दिया।