• समायोजन में फिर फंसेगा पेंच, सरप्लस शिक्षकों की बढ़ी धड़कनें
    झांसी। बेसिक शिक्षकों के लिए जनपद के भीतर समायोजन/स्थानांतरण हेतु शासन द्वारा नीति जारी कर दी गई है। इससे शिक्षकों में उल्लास है लेकिन नीति निर्धारकों ने एक ऐसा पेंच फंसा दिया है जिससे समायोजन प्रक्रिया का न्यायालय में जाना लगभग तय है। समायोजन में सरप्लस शिक्षकों में से किसे समायोजित किया जाएगा इसका कहीं भी कोई उल्लेख नहीं है। इससे सरप्लस विद्यालय केशिक्षकों की धड़कनें बढ़ गई हैं। किसी को नहीं पता है कि समायोजन की गाज किस पर गिरेगी।
    गौरतलब है कि इस मुद्दे को लेकर पूर्व में भी न्यायालय में कई वाद दायर किए गए थे और समायोजन धरे के धरे रह गए थे। इससे विगत कुछ वर्षों से जनपद के भीतर समायोजन/स्थानांतरण लगभग ना के बराबर ही हो सके थे। सत्र 2019-20 में शिक्षकों को समायोजन एवं स्थानांतरण का इंतजार था। शासन ने काफी मंथन के बाद समायोजन की नीति जारी की। नीति के अनुसार समायोजन एवं पारस्परिक स्थानांतरण के लिए जिले स्तर पर जिलाधिकारी की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया जाएगा। कमेटी में अपर जिलाधिकारी, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, डाइट प्राचार्य द्वारा नामित सदस्य एवं जिला मुख्यालय पर पदस्थ खंड शिक्षा अधिकारी सदस्य के रूप में रहेंगे। समायोजन व स्थानांतरण प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने एवं किसी भी प्रकार की गड़बड़ी रोकने के उद्देश्य से उक्त कमेटी का गठन किया गया है।
    शासन द्वारा जारी नीति के अनुसार शिक्षकों-छात्र अनुपात के आधार पर शिक्षकों की तैनाती की जाएगी। जहां आवश्यकता से अधिक शिक्षक होंगे वहां से उन्हें ऐसे विद्यालयों में समायोजित किया जाएगा जहां शिक्षकों की संख्या कम होगी। पर सरप्लस शिक्षकों में से किस शिक्षक को समायोजित किया जाएगा, इस बारे में समायोजन नीति में कोई स्पष्ट निर्देश नहीं है जबकि यही बिंदु सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि कोई भी शिक्षक अपनी कुर्सी छोडऩे को तैयार नहीं है। झांसी जिले में ही नगर की सीमा से सटे ब्लॉक बबीना एवं बड़ागांव में अनेक विद्यालयों में मानक से कहीं अधिक शिक्षक कार्यरत हैं। वहीं जिले के दूरस्थ ब्लॉक बामौर, गुरसरांय, मोंठ आदि में शिक्षकों का टोटा है। नगर के समीप वर्षों से जमे शिक्षक दूर जाना ही नहीं चाहते। बबीना और बड़ागांव ब्लॉक के अनेक शिक्षकों की स्थिति तो यह है कि उन्होंने विद्यालय परिवर्तन से बचने के लिए प्रमोशन तक छोड़ दिए। विगत वर्षों में जारी समायोजन नीति में स्पष्ट निर्देश थे कि लास्ट कम, फस्र्ट गो अर्थात जो शिक्षक विद्यालय में सबसे जूनियर होगा उसे ही सबसे पहले समायोजित किया जाएगा। इस नीति का विरोध भी हुआ और अनेक शिक्षकों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वाद दायर किया। जिस पर न्यायालय ने स्थगनादेश पारित कर प्रक्रिया को रोक दिया था। फिर पूरा सत्र व्यतीत हो गया और समायोजन नहीं हो सका। इसके बाद नई बहस शुरू हुई। अनेक शिक्षकों का कहना था कि फस्र्ट कम, फस्र्ट गो अर्थात जो शिक्षक सबसे पहले विद्यालय में आया है उसे ही समायोजन में पहले हटाया जाना चाहिए। माना जा रहा था कि शासन द्वारा इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर कुछ दिशा निर्देश अवश्य जारी किए जाएंगे लेकिन शासन ने जो नीति जारी की है उसमें इस विषय को अनछुआ कर दिया है। ऐसे में समायोजन का आधार क्या होगा, जूनियर शिक्षक की कुर्सी जाएगी या फिर सीनियर को अपना विद्यालय छोडऩा होगा के सवाल ने सरप्लस विद्यालय के सभी शिक्षकों की धड़कनें बढ़ा दी हैं। इन सवालों के जवाब अधिकारियों को तलाशने होंगे। जो भी मानक तय होगा वह पूरे प्रदेश में लागू होगा। अगर विभिन्न जनपदों में अलग-अलग मानकों पर समायोजन हुआ तो मामला न्यायालय में जा सकता है। इधर, राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद उत्तर प्रदेश के मंडलीय मंत्री झांसी मंडल के डॉ अचल सिंह ने समायोजन एवं स्थानांतरण नीति का स्वागत किया है।