- अंग्रेजी माध्यम विद्यालय के शिक्षकों की नियुक्ति की सम्पूर्ण प्रक्रिया पर विवाद
झांसी। जिले में अंग्रेजी माध्यम के लिए चयनित प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों की तैनाती में नियमों को ताक पर रखकर प्रक्रिया को अंजाम दिया जा रहा है। प्रक्रिया के पहले चरण से शुरू हुआ विवाद अंतिम चरण तक और गहरा गया है। अंतिम चरण में बीएसए ने ऐसा दांव चला कि लिखित परीक्षा व साक्षात्कार के बाद बनी मेरिट लिस्ट के टॉपर भी मन पसंद स्कूल के लिए तरस जाएंगे। वहीं मेरिट सूची के अंतिम पायदान पर आने वाले शिक्षक अपनी पसंदीदा कुर्सी बचाने में सफल हो सकते हैं। इससे शिक्षकों में रोष व्याप्त है।
गौरतलब है कि बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा संचालित परिषदीय प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक विद्यालयों को अंग्रेजी माध्यम से संचालित करने की प्रक्रिया प्रगति पर है। वर्तमान शैक्षिक सत्र में प्रत्येक ब्लाक के पांच प्राथमिक एवं एक पूर्व माध्यमिक विद्यालय का चयन अंग्रेजी माध्यम हेतु किया गया। विद्यालयों के चयन पर ही विवाद ही गया। आरोप लगाया गया कि सड़कों के किनारे के विद्यालयों को अंग्रेजी माध्यम हेतु चयनित किया गया। जबकि अनेक अ’छे विद्यालयों को इससे वंचित रखा गया। इसके पश्चात विभाग द्वारा अंग्रेजी माध्यम से अध्यापन हेतु इ’छुक शिक्षकों से आवेदन पत्र आमंत्रित करने संबंधी विज्ञप्ति जारी की गई लेकिन इस विज्ञप्ति में भी शब्दों की बाजीगरी दिखाई गई। विज्ञप्ति में कहा गया कि लिखित परीक्षा में अहर्ता पाए जाने पर ही साक्षात्कार के लिए बुलाया जाएगा पर अहर्ता कितने अंकों अथवा प्रतिशत की होगी यह स्पष्ट नहीं किया गया। अर्थात अधिकारियों ने मनमर्जी से उत्तीर्ण अंक का निर्धारण करने का विकल्प अपने पास रख लिया।
परीक्षा हेतु लगभग साढ़े आठ सौ शिक्षकों ने आवेदन किया। 29 जून को राजकीय इंटर कॉलेज झांसी एवं लक्ष्मी व्यायाम मंदिर इंटर कॉलेज में लिखित परीक्षा का आयोजन किया गया। 50 अंकों के पेपर में अंग्रेजी की आत्मा को कुचलने का आरोप लगा। 25 प्रश्नों में गणित के सवालों की भरमार रही। विज्ञान, सामान्य ज्ञान के प्रश्नों से शिक्षकों के होश उड़ गए। अंग्रेजी की दक्षता मापने के लिए ली गई परीक्षा में अनेक विषयों के प्रश्न पूछे जाने से पेपर पर विवाद हो गया। पेपर इतना कठिन था कि शिक्षकों के उत्तीर्ण होने के लाले पड़ गए। सूत्रों का कहना है कि आउट ऑफ सिलेबस पेपर आने से लगभग 40 शिक्षकों का अंकों का खाता ही नहीं खुल सका। दस अंक अर्जित करने वाले शिक्षकों को उत्तीर्ण मानकर उन्हें 30 जून को राजकीय इंटर कॉलेज में साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। कुछ शिक्षकों ने आरोप लगाया कि अपने चहेतों को शामिल करने के लिए अधिकारियों ने लिखित परीक्षा का पासिंग मार्क कम कर दिया। वहीं लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर इंटर कॉलेज में दो परीक्षा कक्षों में अप्रत्याशित रूप से अधिकांश शिक्षकों का उत्तीर्ण होना भी चर्चा का विषय बना रहा। पांच सदस्यीय समिति ने शिक्षकों का साक्षात्कार लिया लेकिन यहां भी खूब हंगामा हुआ। कई शिक्षकों को उनके निर्धारित वर्ग से हटा कर अन्य वर्ग में शामिल कर दिया गया। बाद में अधिकारियों ने इसे टाइपिंग की त्रुटि बताकर मामला शांत कराया।
इसके पूर्व भी विभाग ने शिक्षकों के वर्ग निर्धारण में मनमानी की। पूर्व माध्यमिक विद्यालय के सहायक अध्यापक ने समान रैंक के पद प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक के पद के लिए आवेदन किया तो उसे भी विभाग ने पूर्व माध्यमिक विद्यालयों के सहायक अध्यापक संवर्ग में ही शामिल कर दिया। जबकि विज्ञप्ति में ऐसा कोई उल्लेख नहीं किया गया था की जो जिस पद पर कार्यरत है उसी पद के लिए आवेदन करेगा। इस प्रकार की शिकायतें जब अधिकारियों के समक्ष पहुंची तो उन्होंने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि मामला समिति के सामने रख दिया जाएगा। साक्षात्कार के लगभग एक सप्ताह बाद 9 जून को काउंसलिंग की विज्ञप्ति जारी होते ही उन शिक्षकों के अरमानों पर पानी फिर गया जिन्होंने क ड़ी मेहनत कर लिखित परीक्षा और साक्षात्कार में अ’छे अंक हासिल कर मेरिट सूची में अव्वल स्थान प्राप्त मनपसंद के स्कूल में तैनाती का ख्वाब देखा था। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने साफ कर दिया है कि अंग्रेजी माध्यम के लिए चयनित स्कूलों के शिक्षक जिन्होंने लिखित परीक्षा उत्तीर्ण की है उन्हें काउंसलिंग की आवश्यकता नहीं होगी। यानी मेरिट सूची में फिसड्डी शिक्षक को भी अपना स्कूल मिल जाएगा बशर्ते उसका स्कूल अंग्रेजी माध्यम हेतु चयनित किया गया हो। यहां काबिलियत नहीं बल्कि तैनाती मायने रखती है।
सूत्रों का कहना है कि नगर की सीमा से सटे बबीना और बड़ागांव ब्लाक के स्कूल ही शिक्षकों की पहली पसंद हैं। वहीं इन ब्लाकों के चयनित स्कूलों के शिक्षक केवल लिखित परीक्षा उत्तीर्ण करके ही अपनी कुर्सी बचाने में सफल हो जाएंगे। अनेक शिक्षकों का आरोप है कि जब ऐसे ही शिक्षकों की नियुक्ति करनी थी तो इतनी सारी कवायद का क्या मतलब। वहीं कुछ शिक्षक सम्पूर्ण प्रक्रिया को दोषपूर्ण बताते हुए मामला न्यायालय में ले जाने की बात कह रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि शासनादेश में चयनित विद्यालय के शिक्षकों को काउंसलिंग से छूट देने अथवा उन्हें किसी प्रकार की वरीयता देने का कोई प्रावधान नहीं है। स्थानीय अधिकारी मनमाफिक नियमों का सृजन कर रहे हैं।