मजदूर विरोधी नीतियों के विरोध को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रही है योगी सरकार

झांसी 24 मई । पूंजीपति घरानों के इशारों पर मोदी सरकार द्वारा श्रम कानूनों में बदलाव, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण, गरीब मेहनतकश जनता पर असहनीय जुल्म, कर्मचारियों के महंगाई भत्ते को रोकने के खिलाफ व अन्य मांगों को लेकर देश की दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर 22 मई को पूरे देश में विरोध दिवस पर कर्मचारी संगठनों द्वारा नारेबाजी की गई। इस दौरान धरना में लॉकडाउन का पूर्णतया पालन करते हुए ऐक्टू सहित एटक, इंटक, aiutuc, सीटू, ठेका मजदूर, सफाई कर्मी, राज्य कर्मचारी, केंद्रीय कर्मचारियों ने श्रम आयुक्त कार्यालय पर ज्ञापन दिया। लेकिन योगी सरकार द्वारा तानाशाही तरीके से बेवजह मजदूर नेताओं जिसमें ऐक्टू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व इंडियन रेलवे इम्प्लॉइज फेडरेशन (IREF) के राष्ट्रीय अध्यक्ष कॉमरेड मनोज कुमार पाण्डेय व ऐक्टू के राष्ट्रीय सचिव व आई.आर.ई.एफ. राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ कमल उसरी सहित तेरह अन्य मज़दूर नेताओं पर एफआईआर दर्ज की गई है।
इसका विरोध करते हुए नार्थ सेंट्रल रेलवे वर्कर्स यूनियन के केन्द्रीय अध्यक्ष कॉमरेड सुरेन्द्र पाल सिंह यादव ने कहा कि मज़दूर विरोधी नीतियों की खिलाफत कर रहे मज़दूर नेताओं पर बेवजह एफआईआर दर्ज कर योगी सरकार राजनीति कर रही है। जिसकी वर्कर्स यूनियन कड़े शब्दों में निंदा करता है। उन्होंने कहा कि देश भर में कर्फ्यू व लॉक डाउन के चलते करोड़ों मज़दूरों का जीवन नर्क बन गया है, सैकड़ो अप्रवासी मज़दूर अपने घरों को जाते हुए जान गवा चुके हैं, सैकड़ो भूखमरी की भेंट चढ़ चुके हैं, कुल मिलाकर हालात यह हैं कि देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मेहनतकश मज़दूर अंग्रेजों के शासन से भी ज्यादा बदहाली में हैं। ऐसे में होना तो यह चाहिए था कि केंद्र व राज्य सरकारें मज़दूरों की बाह पकड़ती व हर संभव कोशिश कर उनकी मदद करती, लेकिन राज्य सरकारें केंद्र व पूंजीपतियों के इशारों पर करोना की आड़ में मज़दूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए बने श्रम कानूनों को खत्म कर रहीं हैं और जब कोई मज़दूर संगठन इन नीतियों के विरोध में आवाज़ बुलंद करे तो उन्हें डराने/धमकाने के लिए उन पर एफआईआर आदि दर्ज कर उनकी आवाज दबाने की कोशिश कर रही है।
वर्कर्स यूनियन के केन्द्रीय पदाधिकारी कॉमरेड डी.बी.सिंह, संजय तिवारी, गिलबर्ट रॉबर्ट, बी.के. उपाध्याय, सैय्यद इरफात अली, जे.के.चौधरी, विनय तिवारी, दिलीप यादव, सैय्यद वकार हुसैन ने संयुक्त रूप से सवाल किया कि क्या श्रम कानूनों को समाप्त करने का विरोध करना, प्रवासी मजदूरों को सम्मान सहित घर तक पहुंचाने की मांग करना, मनरेगा में 200 दिन काम देने की मांग करना, भुखमरी से मर रहे गरीब मजदूरों के लिए भोजन की मांग करना, बेरोजगार हो चुके मेहनतकशों को तत्काल दस हजार रुपए नगद देने की मांग करना गलत है? उन्होंने कहा कि यक़ीनन हम मजदूरों की एकता के बल पर इसकी मांग करते रहेंगे, सरकार के दमन के सामने नहीं झुकेंगे, वैसे हम यह भी स्प्ष्ट करना चाहते है कि इलाहाबाद सहित पूरे देश में हुए यह कार्यक्रम पूरी तरह से मजदूरों/कर्मचारियों द्वारा किए गए थे। इसलिए इसे राजीनीतिक दृष्टि से देख कर कार्यवाही करना पूरी तरह से गलत है। इण्डियन रेलवे इम्प्लाइज फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष कॉमरेड मनोज पाण्डेय, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉक्टर कमल उसरी, नार्थ सेन्ट्रल रेलवे ठेका वर्कर्स यूनियन की उपाध्यक्ष कॉमरेड बबली, सुनीता सभी मजदूरों नेताओं पर हुई कार्यवाही गलत है, इसलिए हम उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से मांग करते हैं कि एफआईआर तत्काल वापस लिया जाए नही तो सभी श्रमिक संगठन आन्दोलन करने के लिए बाध्य होंगे ।