– देवउठनी व प्रबोधिनी एकादशी पर घर-घर हुई पूजा, बाजार में जमकर हुई गन्नों की बिक्री
झांसी। हिंदू धर्म परंपराओं के अनुसार देवउठनी व प्रबोधिनी एकादशी पर रविवार को गन्ने के मंडप के नीचे भगवान विष्णु की घर-घर हुई पूजा हुई। इस दौरान भगवान को स्नान कराया गया। उसके बाद उन्हें नए वस्त्र आदि पहनाए गए और घर में बनाए गए विशेष पकवानों का भोग लगाया गया। परिवार के पुरुष सदस्यों ने उठो देव, गुड़-गाड़े (गन्ना) खाओ, कुआरिन के ब्याह कराओ, ब्याहन के दूसरते (गोने) कराओ, गोनों के रोने कराओ, उठो देव….की प्रार्थना को गुनगुनाते शंख व झालर बजाते हुए परिक्रमा लगा कर देवों को जगाया गया। इसके साथ ही गन्ने के मंडप में भगवान शालिगराम और माता तुलसी के विवाह उत्सव की परंपरा का निर्वहन किया गया।

गौरतलब है कि देवशयनी एकादशी के बाद से विवाह आदि मांगलिक कार्यक्रमों का दौर थम जाता है। लेकिन दीपावली के बाद कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन को देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। देवउठनी व प्रबोधिनी एकादशी पर देव जागते ही एक बार फिर से शादी विवाह का दौर शुरू होता है। जैसे ही रविवार को देवउठनी एकादशी के अवसर पर पूजा अर्चना की वैसे ही कई वैवाहिक मांगलिक कार्यक्रम शुरू हो गए। वहीं देवउठनी एकादशी के अवसर पर मंदिरों में भी विशेष पूजा अर्चना की गई। इस दौरान बच्चों ने दीपावली की बची आतिशबाजी का भी लुत्फ उठाया।

देवउठनी एकादशी के अवसर पर गन्नों की पूजा का विशेष महत्व होने के कारण जगह-जगह फुटपाथों पर गन्ने की दुकानें सजी जहां से लोगों ने 50 से 75 रुपये में पांच गन्ने खरीदे। गन्ने की जमकर विक्री हुई। वहीं पूजा सामग्री के लिए लोगों ने शकरकंद, सिंघाड़ा, बेर, चना की भाजी, मटर ,नया आलू, टमाटर, गोभी, मेथी ,पालक, गाजर, सेम और अमरूद आदि नई फसल की नई सब्जियों को भगवान के स्वागत में पूजा के साथ रखा गया साथ ही सभी इसी प्रकार की सब्जियों को मिलाकर रामभाजा बनाया गया जिसका भी भोग भगवान को अर्पित किया गया।