झांसी के भूवैज्ञानिकों की खोज सुर्खियों में, पहाड़ी पर अपार सम्भावनाओं के साथ शोध जारी
झांसी। खनिज सम्पदा से भरपूर बुन्देलखण्ड के पन्ना की भूमि बेहतरीन हीरे उगलती हैं तो की खानें मिलती हैं तो केन, वेतवा व धसान जैसी नदियों की उमदा बालू इमारतों के निर्माण में अहम भूमिका है। एशिया की सबसे बड़ी गिट्टी की मंडी कही जाने वाले महोबा के कबरई का नाम भी जग जाहिर है। ललितपुर का पिंक ग्रेनाइट भी देश विदेश में प्रसिद्ध है। इन मिनिरल्स को लोग लाल सोना भी कह देते हैं। अब भूवैज्ञानिकों ने जनपद झांसी के मऊरानीपुर क्षेत्र में क्वार्ट्ज रीफ की चट्टानों में अमेथिस्ट (नीलम का उपरत्न) की खोज ने तहलका मचा दिया है। यह महत्वपूर्ण खोज झांसी में पदस्थ प्रदेश स्तरीय भू वैज्ञानिक, उनकी टीम व कुछ अन्य भू वैज्ञानिकों ने की है।

दरअसल, क्षेत्र में खनिज भवन झांसी व भूतत्व एवं खनिकर्म निदेशालय लखनऊ उत्तर प्रदेश के भूवैज्ञानिक डॉ. गौतम कुमार दिनकर, बुन्देलखण्ड व हिमालय में शोध कर रहे डॉ. सुमित मिश्र एवं संदीप उपाध्याय के द्वारा दो दिन पूर्व भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण के दौरान झांसी  मऊरानीपुर क्षेत्र में क्वार्ट्ज रीफ की चट्टानों में अमेथिस्ट को खोजा गया है। अमेथिस्ट क्वार्ट्ज की शानदार बैंगनी रंग की किस्म है।

गौरतलब है कि अमेथिस्ट मुख्य रूप से रंग में चमक और पारदर्शिता में पारभासी होने के कारण रत्न के रूप में प्रयोग किया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार अमेथिस्ट क्रिस्टल चिकित्सा तंत्रिका तंत्र की शारीरिक बीमारियों को ठीक करने, बुरे सपने और अनिद्रा के इलाज के लिए भी जानी जाती है। यह बैंगनी क़िस्म का स्फटिक है जिसका अक्सर गहनों में इस्तेमाल किया जाता है। अमेथिस्ट को कटेला, बिल्लौर, जामुनिया पत्थर या बैंगनी उपरत्न भी कहते है। यह नीलम रत्न का एक उपरत्न है। इसकी खोज के बाद क्षेत्र में इसके अपार भंडार होने के भी कयाश लगाए जा रहे हैं। फिलहाल शोध जारी है।