झांसी। उमरे झांसी मंडल मुख्यालय में मंडल रेल प्रबंधक के कार्मिक विभाग कार्यालय में 25 नवंबर को प्रयागराज मुख्यालय से आई रेलवे विजिलेंस ने छापा मारा। इस कार्रवाई में विजिलेंस ने दयाधार पर नियुक्त हुई प्रीति निरंजन की सर्विस फाइल की जांच पड़ताल की और उसे कब्जे में ले लिया।
दरअसल, प्रीति द्वारा दयाधार पर नौकरी के लिए प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों की जब जांच पड़ताल की गई थी तो उसे अपात्र घोषित कर दिया गया था। इसके बाद वह पात्र हो गई और नौकरी बरकरार रही। सवाल यह उठाया गया था कि जब वह पहले अपात्र घोषित कर दी गई थी तब फिर कैसे हो गई पात्र ?
सूत्रों की मानें तो अधिकांश दयाधार पर नियुक्त व ट्रांसफर जैसे केस में खुलकर लेनदेन होता है। इस मामले में भी गड़बड़ी के आरोप लगे। जीएस निरंजन की मृत्यु के बाद उनकी विवाहित बेटी प्रीति को नौकरी के लिये पात्रता नहीं होने पर उसका प्रार्थना पत्र निरस्त कर दिया गया था परन्तु कार्मिक विभाग के चर्चित पूर्व अधिकारी के द्वारा उसे नौकरी के लिये पात्र करवा दिया। इसके पीछे लेनदेन के साथ उच्च स्तरीय दबाव चर्चा में है। फिलहाल विजिलेंस द्वारा इस फ़ाइल को कब्जे में लेकर जांच पड़ताल की जा रही है। विजिलेंस के रडार पर कार्मिक विभाग में पदस्थ कुछ पूर्व व वर्तमान अधिकारी भी हैं।
कतिपय पूर्व व वर्तमान अधिकारियों की अनैतिक कार्यप्रणाली से सवालों के घेरे में : कार्मिक विभाग के कतिपय पूर्व व वर्तमान अधिकारियों की अनैतिक कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। यह अधिकारी झांसी का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। हालत यह है कि एक सीनियर अधिकारी तो मुख्यालय स्थानांतरित हो गये, किंतु बाद में जुगाड़ लगा कर झांसी लौट आए। एक अधिकारी झांसी में तब से कार्यरत हैं जब वह कार्मिक निरीक्षक थे और प्रोमोशन पर यहीं सहायक कार्मिक अधिकारी बने और दोबारा मंडल कार्मिक अधिकारी बने। दोनों मामलों में झांसी आने के लिये पारिवारिक समस्या रही। हालांकि सच्चाई कुछ और ही है।
विविध पैनल में लेनदेन का लोभ : झांसी में वर्ष 2018 निकले एल.आई पैनल में एक कर्मचारी की मध्यस्था से झांसी में तैनात एक अधिकारी के द्वारा लाखों रूपए लेकर पैनल में आने वाली गड़बड़ियों को अनदेखा कर पैनल में अपनी भूमिका निभाई। अब उसी पैनल को दोबारा करने के लिये फिर से उसी व्यक्ति का सहारा लिया जाने का पूरा प्लान बनाया गया है जिससे दोबारा पैनल आने पर असको पूरा रूप दिया जा सके इसलिये उस और ऐसे अनुभागों को अपने पास रखवाया गया है। इस अधिकारी के पूर्व में जूनियर क्लर्क से सीनियर क्लर्क के पैनल में पेपर आउट करने की शिकायत प्रशासन को की गई थी लेकिन कुछ नही होने पर उसके द्वारा फिर से ओ.एस के पैनल और सीनियर क्लर्क के पैनल में लेन देन किया जा रहा है ।
अधिकारी की कृपा से फर्जी मार्कशीट से नौकरी : लार्जेस स्कीम में एक कर्मचारी की लड़की की पोस्टिंग के दौरान मार्कशीट फर्जी होने की पूर्व जानकारी होने के बाद भी कार्मिक विभाग के संबंधित अधिकारी द्वारा उससे लेनदेन कर बिना सत्यापन कराये नियुक्ति दे दी। जब बाद में शिकायत पर जांच की गई तो मार्कशीट फर्जी पाई जाने पर उस लड़की को नौकरी से हटा दिया गया। यह मामला काफी चर्चित रहा था। हालांकि उसी आदेश में अन्य पांच कर्मचारी भी थे जिनको उसी कारण से अपात्र घोषित किया गया था लेकिन केवल इसी को दोबारा में पात्र दिखाया गया है जो प्रश्न चिन्ह लगाते हैं।
टी ए के लाभ का चक्कर : पूर्व अधिकारी के द्वारा कार्मिक विभाग में कार्यरत एक लिपिक अवधेश को झांसी से उरई ट्रांसफर कर दिया लेकिन रिलीव नही किया और आदेश निकलने के बाद उसी स्टेशन पर भेजकर उसको हर महिने 12000/- टी.ए का लाभ दिलवाया लेकिन जब इस टी.ए पर अकाउंट ने अपनी आपत्ति दिखाई तो अवधेश को रिलीव कर दिया गया। सोचने वाली बात तो यह है कि अगर उरई पर अवधेश की जरूरत नही थी तो आदेश क्यों निकाला और उसी स्टेशन पर भेजकर टी.ए पास क्यों किया ? और अभी भी अवधेश को झांसी बुलाया जाता है । इसी प्रकार ग्वालियर में तैनात कर्मचारी को इसी प्रकार से टी.ए का फायदा दिलवाया जा रहा है।
लेनदेन के लिए गुर्गों का गैंग वर्षों से जमे सीट पर : अधिकारी के द्वारा अपने मनपंसद अनुभागों में अपने गुर्गो को रखा गया है जिससे वह अपने मुताबिक पैसे का लेनेदेन इनके द्वारा कर सके और उसमें सफल भी रहा। इसलिये अपने पसंदीदा गुर्गों को नही हटाकर दूसरे लोगो को हटाकर अपना वर्चस्व रखने की कोशिश कर रहा है। जबकि एक पिछले 12 साल से दूसरा 10 साल से, तीसरी 5 साल से एह ही सीट पर कार्य कर विजिलेंस के दिशा निर्देशो का खुला मजाक बनाया जा रहा है । अभी हाल ही में एक का ट्रांसफर किया गया लेकिन उसको भी एक ऐसे पद पर भेजा जो कि कार्मिक विभाग में है ही नही। यह सभी अनुभाग से सम्पर्क में भी रहेगा मतलब इसको दलाली की कमान फिर दे दी परन्तु अन्य लोग अभी भी उसी सीट पर उसके दलाल बनकर कार्य कर रहे हैं।