बुविवि में लेखक सम्मिलन का दूसरा दिन

झांसी। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में आयोजित लेखक सम्मिलन के समापन सत्र के मुख्य अतिथि और पूर्व शिक्षा मंत्री डा रवीन्द्र शुक्ल ने कहा कि अब हिंदी बेचारी भाषा नहीं है। हिंदी दुनिया में सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा है। यह डा जयंती प्रसाद नौटियाल ने शोध से सिद्ध किया है कि हिंदी दुनिया की नंबर एक भाषा है।

उन्होंने कहा कि अब हमें यह धारणा बदलनी होगी कि हिंदी दुनिया की दूसरी भाषाओं से काफी आगे है। उन्होंने कहा कि देश सदैव हारा है जयचंदों की जमात से। उन्होंने बताया कि हिंदी अब किसी की कृपा पर निर्भर नहीं है। संयुक्त राष्ट्र संघ को भी अपने साफ्टवेयर बदलना पड़ा है। डा शुक्ल ने दावा कि दुनिया में हिंदी की स्वीकार्यता बढ़ी है। उन्होंने कहा कि ऐसा विश्वास है यह लेखक सम्मिलन मील का पत्थर साबित होगी। समय आ गया है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बना लें। उन्होंने अपनी एक रचना तुम आशुतोष अवढरदानी सुनाई। कोई चलता पदचिह्नों पर रचना भी पेश की। पूर्व मंत्री डा शुक्ल ने नाटकों के प्रति अपने झुकाव का उल्लेख किया। हिंदी साहित्य भारती के कार्यों का भी ब्यौरा दिया।

पूर्व कुलपति प्रो सुरेंद्र दुबे ने कहा कि विद्यार्थियों की जिज्ञासा और अनुशासन की प्रवृत्तियां सराहनीय है। लेखक सम्मिलन के आयोजन की रूपरेखा व औचित्य के बारे में बताया। उन्होंने साहित्य अकादमी के क्रियाकलापों का भी ब्यौरा दिया। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड की धरती तुलसीदास,महावीर प्रसाद द्विवेदी और राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और डा वृंदावन लाल वर्मा की धरती है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो मुकेश पाण्डेय ने कहा कि आजादी के सेनानियों और आम जनता का हौसला बढ़ाने में साहित्यकारों की अहम भूमिका रही है। उन्होंने नई शिक्षा नीति और उसमें युवाओं में चरित्र निर्माण के लिए उठाए गए कदमों का भी जिक्र किया। उन्होंने विद्यार्थियों को रचनात्मक गतिविधियों में प्रभावी भूमिका निभाने का आह्वान किया। विद्यार्थियों से उनकी प्रतिक्रिया भी जानी।

मनुष्य को स्वाधीनता का बोध कराता है साहित्य: प्रो चितरंजन मिश्र

संयुक्त सत्र में दीनदयाल उपाध्याय विवि, गोरखपुर के प्रो चितरंजन मिश्र ने कहा कि साहित्य मनुष्य को स्वाधीनता का बोध कराता है। साहित्य कभी पुराना नहीं पड़ता है। वे बुविवि में आयोजित लेखक सम्मिलन के दूसरे दिन के संयुक्त सत्र में जुटे शिक्षकों विद्यार्थियों को संबोधित कर रहे थे। प्रो मिश्रा ने कहा कि हर समय की असली बात अलग अलग होती। यही भेद ही अलग अलग विधाओं को जन्म देता है। आधुनिक साहित्य का विकास पत्रकारिता के साथ ही हुआ है। अपने पाठक को समझकर करीब लाता है। भारतेन्दु और द्विवेदी युग के निबंध ऐसे लगते हैं कि आज मेरे लिए ही लिखे गए हैं। ऐसा लगेगा कि वे मेरे लिए ही लिखे गए हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य कभी पुराना नहीं पड़ता है। रामायण, श्रीरामचरित मानस समेत विभिन्न कृतियों की उपयता का उदाहरण दिया। शकुन्तला का सौंदर्य कभी पुराना न होगा। विश्व सुंदरियां पुरानी पड़ जाती हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य के साथ विश्वसनीयता का सवाल सदैव से रहा है। यदि कोई कल्पना न करेगा तो कोई रचना न लिख सकेगा। लेखक को कल्पना की छूट मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि नए मीडिया ने सत्य का अंतहीन झूठ पेश किया है। आज झूठ ही सत्य लगने लगा है। उन्होंने वागीश शुक्ल का उल्लेख कर विद्यार्थियों से उनकी रचना को पढ़ने का आह्वान किया।

साहित्य अकादमी, नई दिल्ली और बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के हिंदी संस्थान के तत्वावधान में आयोजित लेखक सम्मिलन के दूसरे दिन के दूसरे संयुक्त सत्र की अध्यक्षता प्रो चितरंजन मिश्र ने की। शुरुआत में प्रो मुन्ना तिवारी ने श्री मिश्र, मुख्य अतिथि प्रो श्रीराम परिहार, प्रो आनंद प्रकाश त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार संजय तिवारी,प्रो पवन अग्रवाल का स्वागत किया।

मुख्य अतिथि प्रो श्रीराम परिहार ने कहा कि खंडवा से नर्मदा का जल लेकर बेतवा का अभिषेक करने आया हूं। आचार्य वामन और रामचंद्र शुक्ल के विचारों का उल्लेख कर बताया कि निबंध क्या है। उन्होंने कहा कि भाषा पूर्ण विकास निबंध से ही होता है। निबंध का आशय ग्रंथ रचना से लिया गया है। सब चीजों को देखने की शक्ति ईश्वर ने दी है उसका सदुपयोग किया जाना चाहिए। मोबाइल जानकारी दे सकती है लेकिन ज्ञान पुस्तकें ही दे सकती हैं। उन्होंने विभिन्न उदाहरणों से यह समझाया कि गद्य लेखकों ने राष्ट्रगौरव का भान भारतीयों को कराया। मनुष्य का जुड़ाव जब तक प्रकृति से नहीं होगा तो उसका कल्याण नहीं होगा। प्रो आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने निबंध विधा की विशेषताओं का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि अब तक मोबाइल पर अनेक रचनाएं लिख चुके हैं। अब सारा लेखन कार्य मोबाइल पर ही करते हैं। उन्होंने गुलमोहर के एक वृक्ष पर निबंध लिखा है। उसका पाठ उन्होंने किया। इसमें उन्होंने कहा कि लाख झंझावातों के बाद भी प्रकृति अपने मूल स्वभाव से विचलित नहीं होती है।

वरिष्ठ पत्रकार संजय तिवारी ने कहा कि देश और साहित्य ने तमाम तरह के उतार चढ़ाव देखे हैं। निबंध, पत्रकारिता और समालोचना सभी साहित्य से गुंथे हुए हैं। वर्तमान में आप स्वाधीन भारत में जी रहे हैं। पढ़ रहे हैं। साहित्य ही सबमें मानवता का भाव भरती है। समाज विविध दर्शनों, विचारों और संवादों से संचालित हो रहा है। एक परिपक्व साहित्यकार पूरी दुनिया को सही दिशा देता है। प्रो पवन अग्रवाल ने इक्कीसवीं सदी में कथेतर गद्य साहित्य की विधाएं विस्तृत फलक लिए हुए हैं। उन्होंने कहा कि इक्कीसवीं सदी में जन जन का मनोविज्ञान बदल गया है। इस दौर में आत्मकथाएं महत्वपूर्ण विधा के रूप में उभरी हैं। नई विधाओं का स्वरूप ही देश का भविष्य तय करेगा।

प्रो आरपी सिंह ने आभार व्यक्त किया। इस कार्यक्रम में सभी अतिथियों को स्मृति चिह्न भेंट किए गए। कार्यक्रम में प्रो रामदेव शुक्ल, डा अचला पाण्डेय, डा श्रीहरि त्रिपाठी, प्रेमलता श्रीवास्तव, डा नवेंद्र सिंह, डा पुनीत बिसारिया, उमेश शुक्ल, डा जय सिंह, अभिषेक कुमार, डा विनम्र सेन सिंह समेत अनेक विद्वत जनों ने हिस्सा लिया। संचालन डा नवीन पटेल ने किया।