– बुंदेलखंड में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सृजनात्मक लेखन कार्यशाला में जुटे विद्वतजन

झांसी। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सृजनात्मक लेखन कार्यशाला में प्रख्यात लेखक तरुण भटनागर ने कहा कि हर कहानी की भी कहानी होती है। अपनी बेहतर अभिव्यक्ति की आकांक्षा से ही कोई व्यक्ति लेखक बनता है। वे यहां लेखक से मिलिए कार्यक्रम में बोल रहे थे।

उन्होंने लेखक के विभिन्न द्वंद्वों और विविध आयामों पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि लिंग के आधार पर अनेक प्रकार के अन्याय होते रहे हैं। उन्होंने लिंग भेद के आधार पर निर्णय लेने की समाज की प्रकृति का भी विवरण दिया। लिंग भेद बड़ा संकट है। इसे मिटाने के लिए युवाओं को सक्रिय भूमिका निभानी है। लेखकों ने विद्यार्थियों के प्रश्नों का भी उत्तर दिया।

एक सवाल पर लेखिका सुजाता ने बताया कि लेखन की शुरुआत कविता लेखन से ही हुआ। बाद में कहानी और आलोचना लिखने लगी। मूल्यांकन के महत्व को समझते हुए ही आलोचना लेखन को चुना। आज का समाज पितृ सत्तात्मक है। लंबे समय से यह लग रहा था कि स्त्री लेखन को सही ढंग से समझा ही नहीं गया। उन्होंने विविध उदाहरणों से अपनी बात की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि प्रेम के नाम पर तमाम राजनीति की जाती है। उन्होंने कहा कि पितृ सत्तात्मक समाज में आलोचना ने ही उन्हें चुन लिया। यदि स्त्री को वस्तु के रूप में पूजेंगे तो यह उसके साथ न्याय न होगा। सबसे बड़ी समस्या यह है कि समाज को देखते और समझने के बाद मापन का पैमाना पुरुष ही तय कर रहा है। बाजार का नजरिया भी पितृ सत्तात्मक सोच का है। एक सवाल पर उन्होंने समाज की संकुचित सोच और बंदिशों का भी जिक्र किया। सिद्धार्थ शंकर और अनमोल दुबे ने भी विचार रखे।
एक अन्य सत्र में जलगांव से आए प्रो सुनील कुलकर्णी ने कहा कि रोजगार की सबसे अधिक संभावना सृजनात्मक लेखन में है। सूचना प्रौद्योगिकी की क्रांति के बाद सृजनात्मक लेखन में ही सर्वाधिक उपलब्ध हैं। इसके लिए तीन प्रतिमाएं आवश्यक हैं। पहली सहज प्रतिभा। इसका जीवंत उदाहरण हैं संत तुकाराम और संत कबीरदास। दूसरी प्रतिभा अभ्यास की है। तीसरी उपदेशिका। नाटक को पूर्णत्व तब तक प्राप्त नहीं होता जब तक उसे खेला नहीं जाता है। तमाम आक्रमणों के बाद भी भारतीय संस्कृति अपने कुटुम्ब व्यवस्था के नाते विशिष्ट बनी हुई है। भारतीय संस्कृति को नष्ट और भ्रष्ट करने के लिए विदेशी कंपनियां फंडिंग कर रही हैं। नाटक ऐसी विधा है जो युवाओं को बेहतर रोजगार देने में सक्षम है।

प्रो गोपेश्वर दत्त पाण्डेय ने पंचायत वेब सीरीज का उल्लेख कर समाज की पीड़ाओं को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि नाटक और रंगमंच में संप्रेषण से समझौता नहीं किया जाना चाहिए। डा मंचला झा ने कहा कि जब कोई व्यक्ति कल्पना के आधार में ही सृजन करता है। सृजनात्मकता हर मानव में निहित है। कोई मूर्त रूप दे देता है। कोई वैसा नहीं कर पाता है। सुख और दुख दोनों में गान यानी सृजन होता है। सृजन नौ रसों में होती है। नाटक एक ऐसी विधा है जो दृश्य साहित्य है। यह सबसे उत्कृष्ट विधा है। इसे अनपढ़ भी समझ लेता है। नाटक में समय, शब्द चयन, भाषा, कथ्य, रंग मंच और वेशभूषा का भी विरोध ध्यान रखना होता है। संचालन डा सुनीता वर्मा ने किया।

इस सत्र में संयोजक प्रो मुन्ना तिवारी, डा त्रिभुवन नाथ शुक्ल, डा डिल्लीराम शर्मा, डा पुनीत बिसारिया, डा श्रीहरि त्रिपाठी, डा नवीन पटेल, उमेश शुक्ल, डा प्रेमलता श्रीवास्तव, डा सुनीता वर्मा, डा शैलेन्द्र तिवारी समेत अनेक लोग उपस्थित रहे।