– बुविवि में अंतर्राष्ट्रीय सृजनात्मक लेखन कार्यशाला शुरू

झांसी। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के पुस्तक मेला परिसर में हिंदुस्तान एकेडमी, प्रयागराज और हिंदी संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सृजनात्मक लेखन कार्यशाला सोमवार को शुरू हो गई। इसके मुख्य अतिथि बुविवि के पूर्व कुलपति साहित्य भूषण प्रो सुरेंद्र दुबे ने कहा कि मनुष्य, जीव, जंतु, वनस्पतियों का कल्याण ही साहित्य का परम लक्ष्य है। साहित्य रचने वाला सृजनकार ब्रह्मा जैसा है।
उन्होंने कहा कि मां ही अपने बच्चों को संस्कारवान बनाती है। मां के साथ परिवार के अन्य बड़े लोग भी विभिन्न संस्कारों के महत्व से हमें अवगत करते हैं। हमारा विश्वास ही हमें और विस्तार देता है। विश्वास के बल पर ही हम आगे बढ़ते हैं। उन्होंने कहा कि हम सर्वे भवन्तु सुखिन: मंत्र गाते हैं। हम राग द्वेष से ऊपर उठकर ही श्रेष्ठ रचनाकार हो सकते हैं। अच्छी रचना तभी संभव जब हम राग या द्वेष से मुक्त हो जाएं। अज्ञेय जी का उल्लेख करते हूं उन्होंने कहा कि प्रेम कविता वह है जिसे पढ़कर हर व्यक्ति को यह लगे कि उसमें उसका अपना स्वर शामिल हो। ऐसा होने पर ही वह लोक प्रचलित होगी। उन्होंने कहा कि शब्द ब्रह्म है। इसलिए इसका सदा सदुपयोग किया जाना चाहिए। ब्रह्म का प्रयोग बहुत सोच समझकर ही किया जाना चाहिए। आपने जो कह दिया वो शब्द श्रोता पर निर्भर। उन्होंने शब्द चयन और विन्यास में साहित्यकार को विशेष संजीदगी बरतने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि रचनाकार व्याकरण के बांध को तोड़ देता है। कोई रचना यदि मंगलकारक है तो वह श्रीरामचरित मानस जैसी कालजयी बन जाएगी। तो वह रचना जो लंबे समय तक पाठकों के मन में बनी रहेगी।
उन्होंने बताया कि सिद्धार्थ विश्वविद्यालय की सीमा नेपाल से सटी है। उन्होंने कहा कि भारत और नेपाल का रोटी बेटी का संबंध है। इन दोनों देशों की संस्कृति एक जैसी है। जीवन और रहन सहन भी एक जैसा है। साहित्य कार दोनों देशों के बीच बेहतर तालमेल के लिए काम करते हैं।
उन्होंने कहा कि राम पाण्डेय ने भारत और नेपाल के साहित्यकारों के बीच सेतु के रूप में काम किया।
उन्होंने बताया कि डा बिल्ली राम शर्मा ने नेपाल के एक कार्यक्रम में एक गीत गाकर समा बांध दिया था।
बुविवि के कुलपति प्रो मुकेश पाण्डेय ने इस कार्यशाला में आए सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि इस आयोजन से विद्यार्थियों को नई दिशा मिलेगी। उन्होंने इस कार्यक्रम में आए त्रिभुवन विश्वविद्यालय,नेपाल के सभी शिक्षकों का भी स्वागत किया। उन्होंने कहा कि इस आयोजन से भारत नेपाल के परस्पर संबंधों को मजबूती मिलेगी। उन्होंने कहा कि लेखन में नवाचार और रचनात्मकता नहीं है तो वह दीर्घजीवी न होगी। उन्होंने कहा कि ज्ञान के इस युग में नवोन्मेष की मांग बढ़ गई है। अब लेखन के लिए सीमा की कोई बाधा नहीं है। उन्होंने कहा कि आधुनिक तकनीक के कारण अब पूरे विश्व का लेखन विद्यार्थियों को पढ़ने को मिल रहा है। हिंदी की स्वीकार्यता पूरे देश में बढ़ी है। आज आईटी क्षेत्र भी हिंदी की मांग अधिक है। हर क्षेत्र में इसके ऐप उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि आगामी नवंबर में हम त्रिभुवन विश्वविद्यालय,नेपाल के साथ साझा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन करने का प्रयास करेंगे। उन्होंने कार्यक्रम की सफलता की कामना की। त्रिभुवन विश्वविद्यालय की टीम ने कुलपति प्रो पाण्डेय को विशेष उपहार भेंट किया। कुलपति प्रो पाण्डेय ने टीम को धन्यवाद ज्ञापित किया।

संयोजक प्रो मुन्ना तिवारी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि बातचीत के सिलसिले को जारी रखने के लिए यह कार्यक्रम आयोजित किया गया है। उन्होंने कहा कि हिंदी नाटक उठो अहल्या के मंचन को सिर्फ एक दिन में लोगों ने देखा है। यह हिंदी के वैश्विक स्वीकार्यता का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि कैसे लेखक और पाठक के बीच बेहतर संवाद हो। उन्होंने कहा कि समाज का कोई अंग लड़खड़ाता है तो उसे साहित्य ही संभाल सकता है।

इस कार्यक्रम में काठमांडू की डा मंचला जा ने कहा कि उनके लिए रानी लक्ष्मीबाई की धरती पर आकर गौरव का भान हो रहा है। उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई के लिए लिखी रचना खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी भी सुनाई। उन्होंने कहा कि भारत और नेपाल का संबंध सदियों से है। इन दोनों देशों में अनुपम संबंध है।
डा श्वेता दीप्ति ने कहा कि मैं वीरभूमि का नमन करती हूं। कविता लेखन करती हूं। अब तक आठ कविताएं लिख चुकी हूं। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति अपने अनुभवों को समाज से बांटने के लिए लिखता है। यह बात भी है कि उसे खुद को भी सुख मिलता है।

डा संजीता वर्मा ने कहा कि आज रानी लक्ष्मीबाई की धरती पर उनको नमन करती हूं। हम परिवार में अपनी विविध भूमिकाओं का निर्वहन करते हुए रचना का कार्य करते हैं। सृजन से सुख मिलता है। डा डिल्ली राम शर्मा ने कहा कि बचपन से हिंदी के प्रति लगाव था। मेरी मातृभाषा नेपाली है। भारत आने पर मुझे लगता है कि अपने देश में हूं। कारण यह कि हम सांस्कृतिक रूप से एक हैं। कलमकारों और लक्ष्मीबाई की भूमि पर आकर गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। हिंदी सेवा का अवसर मिलने से मैं खुद को धन्य मान रहा हूं। उन्होंने कहा कि जब पीड़ा में होते हैं तब कलम उड़ती है।

इस सत्र में डा अचला पाण्डेय, डा नवीन पटेल, डा प्रेमलता श्रीवास्तव, डा सुनीता वर्मा, जबलपुर से आए डा त्रिभुवन नाथ शुक्ल, डा राम पाण्डेय, जलगांव से प्रो सुनील कुलकर्णी, डा विनम्र सेन सिंह, उमेश शुक्ल, डा जय सिंह, डा शुभांगी निगम, डा द्युति मालिनी, डा सुधा दीक्षित, डा पुनीत श्रीवास्तव समेत अनेक लोग उपस्थित रहे। संचालन डा श्रीहरि त्रिपाठी ने किया। डा पुनीत बिसारिया ने आभार व्यक्त किया।
बाद में एक अन्य सत्र में प्रो जितेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि कोई कवि कैसे होता है यह बता पाना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि आसपास के परिवेश का असर और प्रसिद्धि की आकांक्षा भी कविता फूटने का कारण बनीं। याद रखें कोई भी एक कारण से कवि नहीं बनता है। उन्होंने एक प्रेम कविता चुटकीभर भी सुनाई। उन्होंने एक प्रेम कविता विदा भी सुनाई। गद्य जीवन का हिसाब किताब और कविता जीव द्रव्य है। कविता आदिम कंठ की पुकार है। डा विनम्र सेन सिंह ने कहा कि आज कविता विचारधारा के पोषक के रूप में लिखी जा रही है। यही पतन का कारण बन गई है। उन्होंने एक गीत भी सुनवाया। कविता में संप्रेषणीयता होना चाहिए। इस सत्र चितरंजन, सुजीत ने भी अपनी रचनाएं सुनाईं। इसका संचालन डा प्रेमलता श्रीवास्तव ने किया।