– बुविवि में तीन-दिवसीय बुंदेली साहित्य उत्सव शुरू

झांसी। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग, पं दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ और डा मनुजी स्मृति ट्रस्ट, झांसी के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय बुंदेली साहित्य उत्सव बुधवार को शुरू हो गया। इसमें बुंदेलखंड के साहित्यकारों ने बुंदेली साहित्य के विविध पहलुओं पर विचार विमर्श किया। इसमें साहित्यकारों ने बुंदेली को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग बुलंद की।

इस उत्सव के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्थान के उपाध्यक्ष हरगोविंद कुशवाहा ने एक रचना के माध्यम से बुंदेलखंड की सीमा को रेखांकित किया। उन्होंने छत्रसाल की एक रचना से कवियों की विशेषताओं का उल्लेख किए। “आवत देखि गुनी जन को छत्रसाल कहें उठि आदर दीजै, कीरत के बिरवा कवि हैं इनको कभी कुम्हालन न दीजै।” छत्रसाल की कविताएं सुनाकर माहौल बनाया और बताया कि मां के सान्निध्य में ही बखूबी सीखा।

मुख्य अतिथि पद्मश्री कैलाश मड़वैया ने वीरांगना की माटी और ओरछा के रामराजा सरकार को याद करते हुए बुंदेली में संवाद किया। इते जो आवै उसे सिद्ध करन पड़े कि यह बुंदेली जानत है, यही उसको उत्सव है। हिंदी भाषा विभाग को बुंदेली भाषा को प्रणाम करन चेहरे। पछाईं के सत्तर साल से बुंदेली ओढ़ औ बिछा रए‌ । अपन सब जानत हौ‌ कि बुंदेली सबसे पुरानी भाषा है। उनने आल्ह खंड की बात भी रखी। बुंदेली भाषा की उमर दो हजार साल है। अवध भगवान रामचंद्र और ब्रज भाषा श्रीकृष्ण के चलत आगे बढ़ गई। उनने बुंदेली भाषा के बड़े रचनाकारों कय नाम भी गिनावो। उन ने बुंदेली को आठवीं अनुसूची में रखन की मांग भी उठावो। उन्होंने कहा कि यदि बुंदेली को आठवीं अनुसूची में जगह न मिली तो इसे वह सहन नहीं करेंगे। उन्होंने सभी से इसके लिए आवाज बुलंद करने का आह्वान किया। उन्होंने एक रचना के जरिए रानी लक्ष्मीबाई को श्रद्धा सुमन अर्पित किया। उन्होंने बुंदेली की सृजन शक्ति का उदाहरण भी दिया। राजा मर्दन सिंह के राज्यारोहण का प्रसंग पेश किया। विनोद मिश्र ने ईशुरी की रचनाएं पेश कर उनकी काव्य गत विशेषताओं को उकेरा। कल्याण साहू ने कहा कि बुंदेली विश्व स्तर तक पहुंच गई है। उन्होंने एक रचना ‘हम जन्मे हैं ऊं माटी में’ सुनाई। रतिभान तिवारी कंज ने बुंदेली के विकास के सफर, उसके विविध पहलुओं के प्रचार में आकाशवाणी छतरपुर के प्रभावी योगदान की भी चर्चा की। हिंदी विभाग से बुंदेली साहित्यिक पत्रिका प्रकाशित करने की मांग की। उन्होंने दो रचनाएं भी पेश की।
उमाशंकर खरे ने बुंदेली साहित्य उत्सव के आयोजन पर खुशी जताई। उन्होंने कहा कि भले ही शासन ने बुंदेली को भाषा न माना हो लेकिन क्षेत्र के लोग इसे भाषा ही मानते हैं। उन्होंने कहा कि दो भागों में बंटा होने के कारण न बुंदेलखंड का विकास हुआ न ही बुंदेली का। इस क्षेत्र को स्कंध पुराण में विंध्य को देश कहा गया। सभ्यता का विकास विंध्य देश में ही हुआ। कविता की जननी बुंदेली बानी है। उन्होंने दो चौकड़ियां भी सुनाईं। प्रो त्रिभुवन नाथ शुक्ल ने भी विचार रखे।
संचालन शिव प्रकाश त्रिपाठी ने किया। इस सत्र में अभय कुमार दुबे की पुस्तक किराए की कोख का विमोचन किया गया। बुंदेली साहित्य मंच पर नर्मदा से बेतवा तक का प्रतिनिधित्व रहा। शुरुआत में उत्सव के संयोजक प्रो मुन्ना तिवारी और आयोजन समिति के सदस्यों ने सभी अतिथियों का बेहद गर्मजोशी से स्वागत किया। प्रो तिवारी ने उत्सव की रूपरेखा भी प्रस्तुत की।

इस कार्यक्रम में प्रो पुनीत बिसारिया, उमेश शुक्ल, डा अचला पाण्डेय, डा श्रीहरि त्रिपाठी, डा नवीन चंद्र पटेल, डा उमेश कुमार, डा श्वेता पाण्डेय, डा सुधा दीक्षित, डा सुनीता वर्मा, डा प्रेमलता श्रीवास्तव, डा नवेंद्र सिंह, डा पुनीत श्रीवास्तव, डा जय सिंह, अभिषेक कुमार, रामशंकर भारती, साकेत सुमन समेत अनेक विद्वत जन उपस्थित रहे।