– डिप्टी एसएस की संवेदनशीलता : पिता की तरह बेटी को खाना खिलाया, कम्बल उड़ा कर रूम हीटर लगा कर सुलाया 

झांसी। वीरांगना लक्ष्मीबाई Jhansi स्टेशन पर गुरुवार /शुक्रवार की रात उस समय अजीब सा प्रश्न खड़ा हो गया जब सर्दी में ठिठुर रही मां बाप से बिछुड़ी किशोरी को अपनी सुरक्षा में ले जाने से जीआरपी व आरपीएफ ने यह कहते हुए हाथ खड़े कर दिए कि उनके पास रात्रि ड्यूटी में महिला स्टाफ नहीं है इसलिए वह नहीं ले जा सकते। यह सुनकर सभी अवाक थे और सवाल खड़े हो गए कि क्या इस बेचारी को अपने हाल पर यूं ही छोड़ दिया जाए?, इससे कहीं बेचारी किसी भेड़िए का शिकार न बन जाए? ऐसे हालात आन ड्यूटी डिप्टी एसएस एस के नरवरिया किशोरी के लिए भगवान बन गये और उन्होंने संवेदनशीलता दिखाते हुए भयभीत भूखी-प्यासी लड़की की अपने कक्ष में पनाह दी और उसे पिता के रूप में दिलासा देते हुए खाना खिलाया व कम्बल उड़ा कर रूम हीटर लगा दिया। बेचारी नन्ही जान कम्बल में दुबक कर सो गई। सुबह होने पर उसे सुरक्षित मां बाप तक पहुंचाने चाइल्ड लाइन के प्रतिनिधियों को सौंप दिया।

यह किसी उपन्यास के अंश नहीं हैं, वह हकीकत है जिसने उस (अ) व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है जिस पर कार्रवाई होना जरूरी है ताकि भविष्य में रात में कोई बेटी किसी भेड़िए का शिकार न बन जाए। यह हकीकत शुरू होती है वीरांगना लक्ष्मीबाई झांसी स्टेशन के मुख्य प्रवेश द्वार के निकट से गुरुवार /शुक्रवार की रात से। यहां लगभग 13-14 वर्षीय बालिका भयभीत हिरणी की तरह मनुष्यों के जंगल में ठिठुरती सर्दी में हर आने-जाने वाले को मदद के लिए निहार रही थी। एक वेंडर की नजर उस पर पड़ी और उसने खतरा भांप कर लड़की की सूचना आन ड्यूटी डिप्टी एसएस एस के नरवरिया को देकर मदद करने को कहा।

यह सुनकर श्री नरवरिया तुरंत अपने कक्ष से निकल कर बालिका के पास पहुंचे और ढांढस बंधाते हुए जानकारी की। आंखों में छलछलाते आंसू और कंपकंपाते होंठ बेचारी बालिका को बोलने नहीं दे रहे थे। डिप्टी एसएस ने संवेदना दिखाई और उसे अपने कक्ष में ले जाकर कुर्सी पर बैठा दिया। सुरक्षा का एहसास होने पर बालिका ने बताया कि वह अपने माता-पिता के साथ यात्रा कर रही थी। इस दौरान वह कुरुक्षेत्र स्टेशन पर बिछुड़ गई। वहां से एक महिला उसे लेकर आई और उसने उसे झांसी स्टेशन पर छोड़ दिया। उसे माता-पिता के पास जाना है।

पूछताछ में उसने अपना व अपने पिता का नाम बताया। उसका कहना था कि वह मसोड़ी मलिक पुर जिला नालंदा पटना बिहार की है। वह माता-पिता के साथ दिल्ली जा रही थी। इसके बाद डिप्टी एसएस ने अपने कर्तव्य का परिचय देते हुए तुरंत जीआरपी व आरपीएफ पोस्ट एवं कंट्रोल रूम आदि को लड़की के बारे में जानकारी देकर मदद करने को कहा।

इस सूचना पर कुछ ही समय में जीआरपी व आरपीएफ की टीम डिप्टी एसएस कक्ष में पहुंच गई और फिर शुरू हुआ बालिका से पूछताछ का सिलसिला। यहां तक तो ठीक था, किंतु इसके बाद ऐसा सवाल खड़ा हो गया जिसने व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया। दोनों सुरक्षा बलों ने यह कहते हुए बालिका को अपने साथ ले जाने से हाथ खड़े कर दिए कि उनके पास रात में लेडीज स्टाफ नहीं है। डिप्टी एसएस किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए। उन्होंने सवाल किया अब बालिका कहां जाएं? इसका किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया और सभी डिप्टी एसएस कक्ष से ऐसे निकल गये जैसे लावारिस बालिका कोई महत्व नहीं रखती।

सुरक्षा बल की गैर जिम्मेदाराना गतिविधि ने आश्चर्य चकित कर दिया। इसके बाद डिप्टी एस एस ने कर्तव्य निभाया और उन्होंने अपने कक्ष में रूम हीटर लगा कर बालिका को कम्बल देकर बैठाया और खाना खिला कर प्यार से सुला दिया। बालिका भी सुरक्षा का एहसास होने पर कुछ ही देर में सो गई। सुबह होने पर डिप्टी एसएस ने रेलवे चाइल्ड लाइन को सूचना दी। इसके बाद चाइल्ड लाइन से एक महिला वहां पहुंची और उन्होंने बालिका को अपनी सुरक्षा में ले लिया। उन्होंने बताया कि चाइल्ड लाइन इस बालिका को सुरक्षित उसके माता-पिता के पास पहुंचाने का प्रयास करेगी।

बालिका के सुरक्षित हाथों में पहुंचने के बाद डिप्टी एस एस नरवरिया ने राहत की सांस ली और वह भगवान का शुक्रिया अदा करते हुए घर चले गए, किंतु अपने पीछे कई सवाल खड़े कर गये जिनका उत्तर रेल प्रशासन व सुरक्षा का दायित्व निभाने वाली सुरक्षा एजेंसियों के मुखियाओं पर है। देखना है इस (अ) व्यवस्था में सुधार होता है या नहीं…..

रामकुमार साहू