• खाना-पानी की व्यवस्था नहीं, चेकिंग स्टाफ खरीद कर पीता है पानी
    झांसी। उमरे के कानपुर रेस्ट हाउस में टिकट चैकिंग स्टाफ खुद के प्रयास से पानी का कैम्पर मंगाने को मजबूर हैं। रेस्ट हाउस मे पानी को ठंडा करने की व्यवस्था तो है परंतु ओवरहेड टैंक से आने वाले पानी को पीने लायक बनाने की व्यवस्था नहीं है। टिकट चैकिंग स्टाफ ट्रनों में ड्यूटी करते हुए झांसी से कानपुर तक आता है। इसके बाद जब वह विश्राम के लिए जाता है तो उसे रेस्ट हाउस मे भोजन की व्यवस्था तो दूर पीने योग्य पानी भी नहीं मिलता। रेलवे बोर्ड के नियमानुसार हर रेस्ट हाउस मेें टिकट चैकिंग स्टाफ को नाश्ता, खाना, चाय आदि उपलब्ध कराने की व्यवस्था होनी चाहिए परंतु कानपुर टीटी रेस्ट हाउस और भोपाल टीटी रेस्ट हाउस मे भोजन की व्यवस्था अब तक नहीं किया गया है।
    बताया गया है कि गंदा पानी पीने के वजह से कई टीटी लीवर, किडनी, हार्ट से संबंधित बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। एक जानकारी के अनुसार जलजनित रोग के वजह से पूरे जोन मे हजारो रेलकर्मचारियो की कार्य क्षमता और स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। वाई0डी0 शुक्ला कंडक्टर व उनके टीम के साथी टीटी बताते हैं कि वह जब भी कानपुर रेस्ट हाउस ट्रेन में ड्यूटी करने के बाद विश्राम करने आते हैं तो खुद भुगतान कर पीने योग्य पानी का कैम्पर मंगवाते हैं। रेलवे का सारा ध्यान रेल यात्रियों को बेहतर से बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य पर टिका रहता है पर रेल प्रशासन यह भूल जाता है कि रेल यात्रियों को बेहतर सुविधा जो लोग उपलब्ध कराते है उसके प्रति भी प्रशासन का कुछ दायित्व होता है।
    सवाल उठता है कि रेल प्रशासन टिकट चैकिंग स्टाफ के इस दर्द को समझेगा और अगर समझेगा तो कब तक। बताते हैं कि कानपुर रेस्ट हाउस और उसके आसपास खाना नहीं मिलता है जिसके कारण दूर जाकर खाना खाना पड़ता है। टिकट चैकिंग स्टाफ को रेस्ट हाऊस मे मिनिमम सुविधा देने के नाम से प्रशासन को बहुत कष्ट होता है जबकि लाखों रुपये गैर जरुरी मद मे पानी की तरह बहाया जाता है। एनसीआरकेएस के मण्डल सचिव कामेन्द्र तिवारी का कहना है कि उक्त समस्या के समाधान के लिए विभिन्न अधिकारियों से यह मसला विभिन्न माध्यमों से बताया गया, किन्तु कोई असर नहीं हो रहा है। समस्या जस की तस बनी हुई है। क्या इन स्थितियों के कायम रहते भारतीय रेल विश्वस्तरीय होने का सपना देख सकती है यह विचारणीय है।