– बुंदेलखंड में किसान पारंपरिक खेती को जैविक खेती के साथ अपनायें व नई नई फसलों का उत्पादन कर आय बढ़ाएं

झांसी। जिलाधिकारी आंद्रा वामसी ने पं0दीनदयाल उपाध्याय सभागार में नेशनल फ्रूड सिक्योरिटी मिशन-टीबीओ मिनीमिशन के तहत वृक्ष जनित तेल कार्यक्रम सेमीनार का शुभारम्भ करते हुये किसानों से आव्हान किया कि वैज्ञानिकों द्वारा जो जानकारी दी जा रही है उन्हें आत्मसात करते हुये खेती किसानी में अपनायें ताकि जो मेहनत की जा रही है, उसका अधिक लाभ मिले। उन्होने कहा कि किसान खेती के साथ वृक्षजनित तेल व औषधीय गुणों से भरपूर पेड़ पर फोकस करें क्योंकि ऐसे वृक्ष बुन्देलखण्ड क्षेत्र की जलवायु के लिए उपयुक्त है और कम मेहनत व पानी से इन्हें उगाया जा सकता है और यह लम्बे समय तक जीवित भी रहते है और लगातार आय वृद्वि में सहायक होते है।
जिलाधिकारी महुआ व नीम के औषधीय गुणों पर चर्चा करते हुए कहा कि महुआ के पेड़ को लेकर अपनी नकारात्मक सोच के स्थान पर सकारात्मक सोच पैदा करनी होगी। उन्होंने कहा कि महुआ को सिर्फ अल्कोहल बनाए जाने की जानकारी है, जबकि यह पेड़ औषधि से भरपूर है उन्होंने बताया कि इस पेड़ से बटर (मक्खन) बनाया जाता है जिसकी जानकारी लोगों तक नहीं है उन्होंने कहा कि महुआ के पेड़ की पत्तियां भी औषधि के रूप में इस्तेमाल की जाती है। उन्होने कहा कि नीम बड़े काम का औषधीय वृक्ष है जिसका उपयोग टूथपेस्ट, क्रीम, दवाईयां, साबुन के साथ नीम कोटिंग यूरिया व कीटनाशक के रुप में बड़े स्तर पर इस्तेमाल कर रहे है। उन्होने कहा कि किसान नीम की पत्तियों, निमौली का कई प्रकार से प्रयोग में ला सकते है। उन्होंने कहा कि कम पानी वाली फसलों की ओर अधिक फोकस करना होगा, उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड में पारंपरिक खेती के साथ अब नई नई खेती की ओर भी बढ़ना होगा उन्होंने क्षेत्र में ड्रैगन फ्रूट, स्ट्रॉबेरी की खेती को किसानों को अपनाने की सलाह दी।
सेमिनार में डॉ अनूप कुमार दीक्षित प्रधान वैज्ञानिक भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान झांसी ने बताया कि बुंदेलखंड में पशुपालन का खेती में महत्वपूर्ण योगदान है उन्होंने पशुपालन में हरे चारे की उपयोगिता का ध्यान रखते हुए कहा कि पशुपालन में 70% का खर्चा उनके आहार पर होता है जिसकी लागत को कम करके किसानों की आमदनी को बढ़ाया जा सकता है। रवि के मौसम में उपलब्ध जई के हरे चारे से गर्मी में चारे की कमी को दूर किया जा सकता है। वैज्ञानिक डाॅ पीके सोनी ने नीम व अण्डी के पेड़ को बेहद हितकारी व लाभकारी बताते हुये कहा कि यदि किसान अपने खेत की मेड़ पर अण्डी का पेड़ लगा ले तो इससे खेत सुरक्षित रहेगा तथा फसल भी कीटों से सुरक्षित रहेगी। इसके साथ ही अण्डी के तेल को बेच किसान अतिरिक्त लाभ ले सकता है।
कार्यक्रम में केन्द्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान संस्थान के डाॅ आर विष्णु ने बताया कि तिलहन फसलों के अतिरिक्त वृक्षजनित तेल की आज बहुत ज्यादा जरुरत है, क्योकि इसमें 30 से 70 प्रतिशत तक तेल निकलता है। जो खाद्य और बिना खाद्य भी है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में परम्परागत पेड़ जैसे नीम, महुआ आदि पेड़ों तथा गैर परम्परागत पेड़ जैसे रतनजोत, करंज आदि का बहुत स्कोप है। इसमें तेल के अलावा और भी उत्पाद मिलते है जिनका उपयोग कास्मेटिक, जैव ईधन, मेडीसन उद्योग में बहुत है।उन्होने किसानों को सुझाव देते हुये कहा कि मुनंगा, रतनजोत, करंज, लक्ष्मीताक आदि वृक्षों को खेत की मेड़ पर फसलों के बीच आसानी से लगा सकते है, इससे पर्यावरण संरक्षण में भी फायदा होगा। महारानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के डा. राकेश चौधरी ने कहा कि वृक्षजनिक तेल हेतु बुन्देलखण्ड की जलवायु उपयुक्त है तेल उत्पादन करने वाले वृक्ष अरण्डी के उत्पादन उसकी तकनीक तथा उपयुक्त प्रजाति जैसे टाइप-3, तराई-4 सहित अन्य प्रजातियों के बारे में विस्तार से बताया। महारानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मनमोहन डोबरियाल, वैज्ञानिक एवी मजूमदार ने भी किसानों को नीम, महुआ सहित अन्य तेल जनित पेड़ों की महत्वपूर्ण जानकारी दी।