– विलुप्त हो रही संस्कृति की सीता को खोजना होगा : महंत राधामोहन
झांसी(बुन्देलखण्ड)। श्री महंत बिहारीदास जू महाराज की पुण्य स्मृति एवं श्री कुंजबिहारी संस्कृत वेद वेदांत विद्यालय के शुभारंभ पर कार्यक्रमों की श्रृंखला में चौथे दिन की शुरुआत सितार वादन से हुई। बुन्देलखण्ड के ख्याति प्राप्त सितार वादक ललित लिखार एवं उनकी पुत्री हर्षिता लिखार की सितार पर मनमोहक जुगलबंदी की शास्त्रीय वादन की लहरियों से सांस्कृतिक संध्या सराबोर हो गयी। सितार पर छेड़ी राग-रागनियों की तानों की झंकार से श्रोताओं की भीड़ उमड़ पड़ी और पिता-पुत्री की संगीत साधना की वाहवाही कर उठे। महाराष्ट्रियन घराने से ताल्लुक रखने वाले सितार वादक ललित लिखार ने श्रोताओं के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी तो उनकी नावालिग पुत्री हर्षिता ने भी श्रोताओं पर अमिट छाप छोड़ी। इसके अलावा अन्य संगीत साधकों ने अपनी प्रस्तुतियों से संगीत संध्या में रंग बिखेरे। इसमें शास्त्रीय संगीत के माध्यम से श्री कुंजबिहारी जू के दरबार में नियमित गायन कर हाजिरी लगाने वाले नगर के प्रमुख समाजसेवी गुरजीत चावला ने गुरुवाणी की मनमोहक प्रस्तुति दी। गुरु मेरी पूजा गुरु भगवंत है एवं महाकवि रैदास द्वारा रचित भजन प्राणी क्या तेरा क्या मेरा सब कुछ जीवत के व्यहार सुनाया। श्रीधाम वृंदावन से पधारे श्रीहित आदर्श श्रीकृष्ण रासलीला मंडल के कलाकारों ने भगवान कृष्ण की माखन चोरी की लीलाओं का मधुर मंचन किया जिसे देखने दर्शक देर रात्रि तक डटे रहे।
इस मौके पर आशीष वचन कहते हुए बुन्देलखण्ड धर्माचार्य महंत राधामोहन दास महाराज ने कहा कि नेता युग में ऋषियों ने तपस्या एवं कठोर जप, तप कर अपने रक्त को एक घड़े में भरा था जिससे सीता जी उत्पन्न हुई थी। आज भारतीय संस्कृति विलुप्त होती जा रही है और पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव बढ़ता जा रहा है जो भारतीय संस्कृति एवं समाज के लिए घातक है। वर्तमान पीढ़ी को ही भारतीय संस्कृति की सीता की खोज करनी होगी। अत: समाज की भलाई के लिए संस्कृति के लिए अपना तन, मन और धन समर्पित करना होगा तभी संस्कृति को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है। प्रारंभ में बाबा पवनदास, बाबा मनमोहनदास एवं पुजारी बालकदास ने सभी कलाकारों का माल्यार्पण कर स्वागत किया। अंत में मंहत श्री ने सभी कलाकारों को शाल एवं नगद धनराशि भेंट कर विदा किया।