• परिजनों को किया सम्मानित
    झांसी। नई दिल्ली के विज्ञान भवन में भारतीय अंगदान दिवस कार्यक्रम में जनपद झांसी की स्वर्गीय पूर्णिमा श्रीवास्तव क ो याद किया गया। हाल ही में पूर्णिमा की मृत्यु उपरांत उनके अंग दान से चार व्यक्तियों को नया जीवन प्राप्त हुआ था। उनके इस महान कार्य हेतु उनके पति राकेश खरे आशुलिपिक अपर जिलाधिकारी झांसी, पुत्र आदित्य, पुत्री आदित्य श्रीवास्तव व भाई अभिषेक जगधारी को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन द्वारा सम्मानित किया गया। स्व. पूनम श्रीवास्तव की पुत्री आदित्य श्रीवास्तव ने इस कार्यक्रम हेतु आभार व्यक्त करते हुए जब अपनी मां की तुलना जीवन प्रदाता ईश्वर से की तो विज्ञान भवन का ऑडिटोरियम तालियों कगडग़ड़ाहट से गूंज उठा। डॉक्टर हर्षवर्धन ने कठिन समय में भी समाज की कल्याणकारी सोच रखने हेतु बेटी की प्रशंसा की।
    कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने मृत्यु उपरांत अंगदान के महत्व को बहुत ही सरल व प्रेरक शब्दों में व्यक्त किया। उन्होंने देश भर से आए अंगदानकर्ताओं के परिवारो को सम्मानित किया व उनके प्रति आभार व्यक्त किया। स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने अंगदान को प्राचीन परंपरा का अभिन्न हिस्सा बताया व अंग दान की तुलना महर्षि दधीचि से की। भारत सरकार के स्वास्थ्य सचिव डॉ अरुण कुमार पांडा ने अंगदान की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए बताया कि भारत में प्रतिवर्ष 5 लाख व्यक्ति दान किए गए अंगों की कमी के कारण कालकवलित हो जाते हैं। उन्होंने बताया मृत्यु उपरांत अंगदान से एक व्यक्ति कम से कम 8 लोगों को नया जीवन दे सकता है। कार्यक्रम के समापन पर डॉक्टर हर्षवर्धन ने सभी को अंगदान करने हेतु शपथ दिलाई। इस दिशा में जागरूकता लाने हेतु समाज के सभी लोगों का आह्वान किया। मंच से उद्घोषक ने जागरूकता अभियान के लिए प्रेरणादायी गजल के अंश को उच्चारित किया कि मेरे जुनून का नतीजा जरूर निकलेगा इसी स्याह समुंदर से नूर निकलेगा।
    गौरतलब है कि यह कार्यक्रम उन महान विभूतियों को समर्पित किया गया जो इस संसार को अलविदा कहने के बाद भी अलग-अलग जिस्मो में कहीं दिल बनकर धड़क रहे हैं तो कहीं किसी की आंखों में उम्मीद की नई रोशनी बनकर चमक रहे हैं। उनके अंगदान के कारण ही किसी बच्चे को उनकी मां बाप इस मिल गई तो किन्हीं मां-बाप की गोद सूनी होने से बच गई। राकेश खरे द्वारा बताया गया इस कार्यक्रम में पूरे देश में 20 अंगदानकर्ता परिवार शामिल हुए। विचारणीय है कि सवा सौ करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले हमारे देश में मात्र 20 परिवार समाज कल्याण के इस महानतम कार्य हेतु आगे आए। महर्षि दधीचि जैसे दानवीरों के देश में अगर हम मृत्यु उपरांत अंगदान द्वारा जरूरतमंदों को नया जीवन दे सकते हैं तो यह समाज कल्याण की अभूतपूर्व नजीर होगी। श्री राकेश खरे के परिवार द्वारा अपनाई गई यह पल हमारे लिए अनुकरणीय है और नश्वर अंगों को नये रूपो मे पुनर्जीवित करने की सार्थक मुहिम भी।