प्रयागराज (संवाद सूत्र)। देश को विश्वस्तरीय सुविधाएं देने के नाम पर भारतीय रेलवे के निजीकरण की दुहाई देने वालों को आज मुंह छुपाने की जगह नहीं मिल रही। रेल कर्मचारियों ने करोना वायरस की महामारी के समय अपनी सीमाओं से बाहर जाकर ना सिर्फ रेलवे कोचों को आइसोलेशन वार्ड में तब्दील किया बल्कि आज और भविष्य की जरूरतों के मद्देनजर कोचों को सैनिटाइजर टनल में बदला जिसको जरूरत के समय कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है, साथ ही मेडिकल स्टाफ के लिए पर्सनल प्रोटेक्टर इक्विपमेंट (PPE’s) बनाकर, यहां तक कि बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों के एकाधिकार व अहंकार को तोड़कर घरेलू तकनीक से बेहद सस्ता वेंटिलेटर बनाकर ना सिर्फ भारतीय रेलवे बल्कि देश का सर गर्व से ऊंचा कर दिया है।
उक्त बात का. मनोज पाण्डेय अध्यक्ष एवं का. सर्वजीत सिंह महामंत्री इंडियन रेलवे इम्प्लाइज फेडरेशन ने संयुक्त रूप से कहीं। मनोज पाण्डेय ने कहा कि यदि लॉक डाउन नही होता तो आज हम रेलवे के स्थापना दिवस सप्ताह जो हर वर्ष देश भर में 10 अप्रैल से शुरू होकर 16 अप्रैल तक मनाया जाता है कि शुरुआत कर रहे होते आज़ादी के बाद भारतीय रेल को भारत सरकार ने पूरी तरह से सार्वजनिक क्षेत्र करके अपने नियंत्रण में ले लिया, उसके बाद भारतीय रेलवे ने भारत के विकास में बहुत बड़ी भूमिका निभाई, देश की आज़ादी के शुरुआती दिनों में केंद्रीय बजट में अकेले रेल का 70% बजट हिस्सा हुआ करता था जिसे आज भारत सरकार ने आम बजट में मिला कर रेल बजट की सीमित कर दिया है उसके बावजूद जब देश नोवेल कोरोना वायरस से जूझ रहा है ऐसे समय मे भी रेल कर्मचारी दिन-रात देश सेवा में लगे हुए है। रेल में जहां एक ओर ,स्टेशन मास्टर, गार्ड, ड्राइवर, सिंग्नल एंड टेलीकॉम, मैकेनिकल, विधुत सामान्य, ट्रैक मशीन, इंजीनियरिंग,और खास कर ट्रैकमेन्टर्स साथी ओपन लाइन में जरूरी सामान की ढुलाई के लिए रात मालगाड़ी के संचालन को सफल बनाने लगे है वहीं डॉक्टर्स और स्वस्थ कर्मी मरीजो की सेवा में अपनी भूमिका का सफल निर्वाह कर रहे है । जिन रेल कारखानों को भारत सरकार निजी हाथों को सौंपने के लिए बेताब थी उन्ही रेल कारखानों में कार्यरत कर्मचारी कोरोना की लड़ाई में नये- नये निर्माण कर रहे है ।
इंडियन रेलवे इम्प्लाइज फेडरेशन के नेता द्वय ने कहा कि आज जहां अंतरराष्ट्रीय मार्केट में वेंटिलेटर की कीमत 2.5 लाख रुपए से 40 लाख रुपए पड़ती है वहीं भारतीय रेलवे ने मात्र 18 हजार में वेंटिलेटर तैयार किया है। अगर भारत सरकार रेलवे को बड़ी संख्या में वेंटिलेटर का उत्पादन करने को कहती है तो यह यकीनन और भी सस्ता पड़ेगा। उन्होंने कहा के रेलवे के पास इतने संसाधन तथा वेस्ट मटेरियल पड़ा है और जब रेलवे उत्पादन बंद है तो ऐसे समय केवल कुछ एक कर्मचारी ना सिर्फ देश की बल्कि पड़ोसी देशों की जरूरतों को भी पूरा करने में सक्षम है। नेताओं ने बताया कि इस समय जब पूरा देश घरों में बंद होकर रह गया है ठीक उसी समय रेल कोच फैक्ट्री कपूरथला, रेल व्हील फैक्ट्री बैंगलोर, रेलवे वर्कशॉप जगाधरी व हरनौध के बहादुर कर्मचारियों ने स्वास्थ विभाग, सुरक्षा विभाग, सफाई कर्मचारियों आदि का साथ देते हुए यह उपलब्धि हासिल की है। फेडरेशन उन सभी कर्मचारियों को मुबारकबाद देती है।
फेडरेशन नेताओं ने कहा कि कपूरथला में बनाए गए वेंटिलेटर को आरसीएफ के डॉक्टरों तथा स्टाफ ने मेडिकल जरूरतों के पैमाने पर बिल्कुल योग्य बताया बताया है। परंतु शंका है कि इंडियन काउंसल आप मेडिकल रिसर्च (ICMR) इसको बहुराष्ट्रीय कंपनियों (जिन के एकाधिकार को चुनौती मिली है) के दबाव के नीचे इसको पास नही करेगी। यह भी संभव है कि मोदी सरकार (जो इन कॉरपोरेशनों की ही कठपुतली है) भारतीय रेलवे की इस ऐतिहासिक ख़ोज को इन्हीं बहु राष्ट्रीय कारपोरेशनों के हवाले दे। नेताओं ने कहा कि ऐसा अक्सर होता है कि डेवलपमेंट के बाद उत्पादन के लिए वह तकनीक/ कंपोनेंट्स निजी कंपनी के हवाले कर दिये जातें हैं। जैसे आरसीएफ कपूरथला ने पिछले समय अत्याधुनिक बायो टॉयलेट का निर्माण किया परंतु जैसे ही उसकी डिवेलपमेंट का काम पूरा हुआ उस सारी तकनीक को निजी कंपनियों के सुपुर्द कर दिया गया। इंडियन रेलवे एम्पलाईज फेडरेशन के नेताओं ने समूह रेल कर्मचारियों व रेलवे संगठनों को भारतीय रेलवे की इस उपलब्धि को देश के लोगों तक ले जाने की अपील की ताकि भारत सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र व कर्मचारियों को बदनाम करने की राजनीति को नंगा किया जा सके। उन्होंने कहा यही समय है जब हम एकजुट होकर भारत सरकार की साम्राज्यवादी नीतियों का मुंह तोड़ जवाब दे सकते हैं।