– पार्थिव शरीर चिकित्सीय परीक्षण/ अध्ययन में आएगा काम

झांसी । महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के एनेस्थीसिया विभाग के प्रोफेसर और पैरामेडिकल ट्रेनिंग कॉलेज के निदेशक डॉ़ अंशुल जैन ने परिजनों की सहमति से अपनी मां सरोज जैन का शव अध्ययन के लिए मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया। सरोज का शव सोमवार को महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज पहुंचाया गया।
मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ़ एन एस सेंगर ने मीडिया को बताया कि डॉ़ अंशुल जैन के परिवार के लिए श्रीमती सरोज का निधन बहुत ही दु:खद घड़ी है लेकिन इस समय में उनके परिवार ने एक बड़ा क्रांतिकारी फैसला लेते हुए स्व़ सरोज जैन का शव मेडिकल काॅलेज को दान किया है। शव मेडिकल कॉलेज के डिपार्टमेंट ऑफ एनाटॉमी में पहुंच गया है और स्वीकार भी कर लिया गया है। अब इसके एम्बामिंग की प्रक्रिया की जा रही है जिसमें सभी खून की नसों में फार्मेलिन भर दिया जाता है। इस प्रक्रिया के कारण शव सड़ता नहीं है और इसे छात्रों के अध्ययन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
डॉ़ सेंगर ने बताया कि यह फैसला क्रांतिकारी और बेहद वैज्ञानिक सोच को दर्शाने वाला है कि मेडिकल कॉलेज के ही एक डॉक्टर ने अपनी माता का शव यहां के पोस्ट ग्रेजुएशन के छात्रों की पढाई के लिए दान किया है। उन्होंने बताया कि शव दान या मृतक के शरीर के किसी हिस्से के दान के लिए पहले से फार्म भरा जाता है जिसमें सब कुछ परिजनों की सहमति से होता है। इस मामले में स्व़ सरोज के पति ने यह फैसला लिया है जिसे बाद में परिजनों ने सहमति दी। उन्होंने इस साहसिक फैसले के लिए पूरे परिवार को धन्यवाद दिया और बताया कि यह पार्थिव शरीर आगे चिकित्सीय प्रशिक्षण में बहुत काम आने वाला है।
इस दौरान पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता प्रदीप जैन आदित्य ने बताया कि “ देह दान बहुत बड़ा दान है और डॉ़ जैन व उनके परिजनों ने बहुत साहसिक और सामाजिक सोच में बदलाव लाने वाला फैसला किया है। हमारी संस्कृति में दधिचि जैसे उदाहरण हैं जिन्होंने लोकहित में देहदान किया और आज भी डॉ़ जैन जैसे लोग हैं जो लोकहित में इस तरह के फैसले लेकर एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। ऐसे फैसले भारतीय समाज में देह को लेकर सोच में बदलाव लाने वाले है । कोराना जैसी महामारी और अन्य घातक बीमारियों के मानवदेह पर हाेने वाले प्रभाव और इसको लेकर चिकित्सकों के ज्ञान में बढावा लाने के लिए प्रशिक्षण की दरकार होती है । ऐसे साहसिक फैसलों से मिले शवों की मदद से छात्रों को दिये जाने वाले प्रशिक्षण में बड़ी मदद मिलती है। डॉ़ जैन के परिवार को बहुत बहुत साधुवाद।”