– हर रचना की प्रक्रिया भिन्न होती है : प्रो देवेंद्र

– दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सृजनात्मक लेखन कार्यशाला का समापन सत्र

झांसी। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सृजनात्मक लेखन कार्यशाला के समापन सत्र के अध्यक्ष पद्मश्री कैलाश मड़वैया ने कहा कि लिखिए ऐसा कि जिससे साहित्य का भला है। बस मुंशीगीरी के लिए ही मत लिखिए। लिखिए यह सोचकर कि नहीं लिखता तो क्या बुरा हो जाता।
वीरांगना लक्ष्मीबाई की धरती झांसी ने ही मुझे लिखने का रोग 1960 में लगाया। फिर मैं लगातार लिखता रहा। हम लिखते क्यों हैं, लिखते कैसे हैं इन बिंदुओं पर जमकर चर्चा कीजिए। मुझे नहीं बुंदेलखंड के छह करोड़ लोगों को पुरस्कार मिला है। दर्शकों के प्यार से ही मेरे ग्रंथों को प्रसिद्धि मिली। जीवन है सतत प्रवाह मित्र रचना सुनाते हुए लक्ष्य को सुनिश्चित कर लेना चाहिए। उन्होंने ‘गिरा हो जो असुरक्षा से हो’ रचना भी सुनाई। इसके जरिए दिगंबर को रेखांकित किया। उन्होंने विविध उदाहरण देकर लोक-मंगल का भाव लेकर रचना कर्म का निर्वाह करने का आह्वान किया।
मारीशस से आए प्रो उमेश कुमार सिंह ने कहा कि मारीशस लघु भारत है। मारीशस एक मात्र ऐसा देश है जो अप्रवासी लोगों का है। वहां की विशेषताओं का उल्लेख किया। वहां भारतीय संस्कृति का ही बोलबाला है। मारीशस की आजादी के लिए रक्तहीन क्रांति हुई। महात्मा गांधी के मारीशस दौरे का भी उल्लेख किया। मारीशस में साक्षरता करीब करीब शत प्रतिशत है। बीए तक की शिक्षा मुफ्त है। वहां विद्यार्थियों को मुफ्त में अनेक सुविधाएं दी जाती हैं। वहां हिंदी का बेहतरीन माहौल है। यहां से वहां लोगों ने श्रीरामचरित मानस के साथ ही साथ हिंदी का प्रयोग और विस्तार जारी रखा। नीम,बड़ और नींबू के पौधे भी ले गए थे। मारीशस में दहेज प्रथा नहीं है। भोजपुरी के लोकगीत बहुत प्रचलित है। अनेक संगठन हिंदी के विस्तार में लगे हुए हैं। वहां भारतीय संस्कृति का पूरी शिद्दत से पालन करते हैं।

इस कार्यक्रम में नेपाल से आए साहित्यकार प्रो डी आर शर्मा, प्रो संजीता वर्मा, डा श्वेता दीप्ति, डा मंचला शर्मा, हैदराबाद के डा आलोक पाण्डेय ने आयोजकों ने अपने विचार रखे। उन्होंने आयोजकों को बधाई दी। डा आलोक पाण्डेय ने कहा कि विदेशी बच्चे हिंदी का काफी गंभीरता से अध्ययन करते हैं। उन्होंने हर जगह सभी कर्मचारियों के लिए एक समान सुविधाएं देने पर बल दिया। उन्होंने बहुत पढ़ने और न्यूनतम लिखने पर बल दिया। हर रचना का उद्देश्य लोक-मंगल होना चाहिए। परंपरा का ध्यान रखते हुए आधुनिक बनें।
कार्यशाला के संयोजक प्रो मुन्ना तिवारी ने अतिथियों को सम्मानित किया। इस सत्र का संचालन डा अचला पाण्डेय ने किया। समापन सत्र में प्रो टी एन शुक्ल,पूर्व आईएएस अधिकारी प्रमोद अग्रवाल, डा अनिल दुबे, व्यंग्यकार देवेंद्र भारद्वाज, उमेश शुक्ल, डा श्रीहरि त्रिपाठी, डा प्रेमलता श्रीवास्तव, डा सुधा दीक्षित,डा नवीन चंद्र पटेल, डा सुनीता वर्मा, डा पुनीत श्रीवास्तव, डा जय सिंह, अभिषेक कुमार, अतीत विजय समेत अनेक विद्वत जन उपस्थित रहे।
इससे पहले कथा पर आयोजित एक विशेष सत्र में बिलासपुर से आए प्रो देवेंद्र ने कहा कि हर रचना की प्रक्रिया भिन्न होती है। रचना प्रक्रिया हाबी हो जाती है। रचना प्रक्रिया बेहतर हो तो उच्च कोटि की रचना बन जाती है। उन्होंने कहा कि अक्सर रचनाकार तय कर लेते हैं कि आदि और अंत क्या होगा। मगर मैं रचना प्रक्रिया पर ही निर्भर रहता हूं। उन्होंने कहा कि बहु चिंतित रचना भी अच्छी साबित नहीं होती है। उन्होंने अपनी रचना उपन्यासों भर्तृहरि और भवभूति के लेखन के अनुभवों को साझा किया। प्रो देवेंद्र ने कहा कि लेखक जिस पात्र के बारे में लिखता है तो वह उसके साथ साथ चलता है। उन्होंने कहा कि भारत में छठी सदी में उपन्यास लिखे गए। उन्होंने कहा कि जब आप एकांत में किसी दीवार या पेड़ के साथ होते हैं तो वे आपसे बात करते हैं। कथा लेखन की प्रक्रिया में अवलोकन और अनुभूति महत्वपूर्ण हैं। एक रचनाकार को अपने हर पात्र में ईमानदारी से प्रविष्ट होना पड़ता है तभी वह अच्छी रचना कर सकता है।
प्रख्यात रचनाकार महेश कटारे ने कहा कि जो प्रति क्षण नया नया लगे वह रमणीय है। कोई भी रचना जब गहराई तक पैठ जाती है तो वह शऊर की मांग रखती है। उन्होंने कहा कि इतिहास में राजाओं में आत्म हत्याओं का दौर चल पड़ा था। मैं उस पर कुछ काम कर रहा हूं। एक सवाल पर श्री कटारे कहा कि हमारे हीरो प्रख्यात कवि हुआ करते थे। उन्होंने प्रख्यात कवि प्रकाश दीक्षित का भी जिक्र किया कि कैसे उन्होंने उन्हें नसीहत दी। उस दिन से कविता लिखना छोड़ दिया।
एक सवाल पर श्री कटारे ने कहा कि सूचना तकनीकी के विस्तार ने अनेक चुनौतियां पेश कर दी है। सोशल मीडिया के फैलाव से भी अनेक जटिलताएं पैदा हो गईं हैं। मोबाइल ने स्मरण शक्ति को प्रभावित कर रहा है। पिछले दस साल में 85 बोलियां गायब हो गईं। शब्दों का गहरा संकट पैदा हो रहा है।
एक सवाल पर कथाकार प्रो देवेंद्र ने कहा कि हर कथा या रचना में भाषा के प्रति संजीदगी की जरूरत होती है। मैं कवियों की भाषा से प्रभावित होता हूं। कविता अपने भाषा के बल पर ही सर्वाधिक प्रभावी होती है। पिछले तीन दशकों का इतिहास बाजार आधारित ही रहा है। बड़ी बड़ी पार्टियों और विचारधाराओं को बाजार ने बदल दिया है। बाजार बेडरूम तक घुस आया है। आज दुनिया बड़ी तेजी से बदल रही है। आज सभी परीक्षाओं में लड़कियां आगे हैं। लड़कियों ने दुनिया का नक्शा बदल दिया है।
उन्होंने कहा कि कविता करना आसान नहीं। जब सब सो जाते हैं तो कवि शब्दों को गढ़ता है। सूचना के बाढ़ से समाज का संकट बढ़ा है। हमारी पीढ़ी सबसे अधिक दोमुंही रही है। उन्होंने एक रचना भी सुनाई। इस सत्र का संचालन प्रो सिद्धार्थ शंकर ने किया। सभी अतिथियों को संयोजक प्रो मुन्ना तिवारी ने स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया।