– बुंदेली साहित्य उत्सव में जुटे कई साहित्यकार

झांसी। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में हिंदी संस्थान, पं दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ और डा मनुजी स्मृति ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में परिसर में आयोजित बुंदेली साहित्य उत्सव के दूसरे दिन बृहस्पतिवार को अपनी रचनाओं की प्रभावी प्रस्तुतियों से विद्यार्थियों को बुंदेली लोक साहित्य का महत्व बताया।

चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी तिथि पर भगवान श्रीराम, गोस्वामी तुलसीदास, महाकवि केशव दास और पद्माकर को श्रद्धापूर्वक याद किया गया। प्रथम सत्र की अध्यक्षता कर रहे साहित्यकार राम शंकर भारती ने एक रचना ‘जानकी अब सब जान गई है, वह धरती में नहीं आकाश पर जाना चाहती हैं’ सुनाई। उन्होंने कहा कि आज मांओं ने गाना बंद कर दिया है। यह चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि बोलियों को भाषा बनाने की जिद पर भी गंभीरता से विचार करना होगा। यदि बुंदेली को अलग भाषा मान लिया जाए तो हिंदी का भविष्य भी प्रभावित होगा। उन्होंने कहा कि लोकभाषा के शब्दों का प्रयोग सामान्य तौर पर नहीं करता है। भाषण और व्यवहार में विरोधाभास नहीं होना चाहिए। उन्होंने ‘ जैसे ही हो इन हादसों को टाला जाए’ रचना सुनाई। हमें समाज की विसंगतियों को दूर करना है। उन्होंने कहा कि आज हिंदी साहित्य जगत में अनेक विद्रूपताएं हैं। इन्हें दूर किया जाना चाहिए।

महोबा के रचनाकार संतोष पटैरिया ने कई लोकोक्तियों का सही रूप समझाया। उन्होंने एक रचना अटकन चटकन दधीच टोकन और धोबी को कुत्ता न घर को न घाट को का सही रूप बताया। हमारे लोक साहित्य का स्वरूप बिगड़ रहा है। उन्होंने आल्हा खंड पर भी चर्चा की। पूर्व आईएएस और साहित्यकार प्रमोद कुमार अग्रवाल ने अपनी रचनाओं के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि मां के जीवित रहने बुंदेली भाषा से बखूबी जुड़ा रहा। उनके उपन्यास ‘साकार होते सपने’ में भी बरुआसागर का चित्रण है। अपनी पुस्तकों स्टोरी आफ खजुराहो और झांसी की वीरांगना के बारे में भी जानकारी दी।
व्यंग्यकार देवेंद्र कुमार भारद्वाज ने अपनी पुस्तक ‘लाल किताब में लिखा है’ की एक रचना किट का कमाल सुनाई। उन्होंने एक शेर कहीं पर सूरज,कहीं चांद और कहीं तारे छोड़ जाते हैं भी सुनाया। एक अन्य शेर आईना बनने से बेहतर है कि पत्थर बनो, यदि कभी तराशे गए तो देवता बन जाओगे। साहित्यकार निहाल चंद्र शिवहरे ने कहा कि हम आपको जगाने आए हैं। उन्होंने कहा कि बुंदेली भाषा अभी आठवीं सूची में नहीं आई जबकि इसका प्रयोग सात करोड़ लोग बोलते हैं। उन्होंने सभी विद्यार्थियों से बुंदेली को आठवीं अनुसूची में जुड़वाने के लिए व्यापक अभियान छेड़ने का आह्वान किया। उन्होंने कई मुहावरों का अर्थ सुनाया। उन्होंने कुछ हाइकु भी सुनाए। उन्होंने रोजगार के तौर तरीके भी बताए।
साकेत सुमन चतुर्वेदी ने कुछ रचनाएं पेश कीं। साथ ही उन्होंने एक नौटंकी का प्रसंग भी सुनाया। उन्होंने युवाओं से कहा कि जब आप करेंगे तो नाम जरूर होगा। एक दोहा भी सुनाया। वोई मोड़िन के बाप हैं,वोई मोड़न के बाप, लेबो समझत पुण्य वो देबो समझत पाप।

रचनाकार राजेश तिवारी मक्खन ने मां वीणा पाणी को प्रणाम करते अपनी बुंदेली रचनाएं सुनाईं। खुशी को नौनों से अवसर आओ, हम बुंदेली उत्सव मना रए। मताई की भाषा को न भूलें। अब तो मताई की भाषा में टीवी पे सीरियल और बतकाव आ रए। उनने आकाशवाणी छतरपुर की तारीफ भी करी। उन्होंने एक रचना ‘नौनी बुंदेली है बानी,इसका कोऊ नहीं सानी’ सुनाई। उन्होंने ‘अंग्रेजन के आ गई धरे रूप दुर्गा काली’ रचना भी सुनाई।
इससे पहले सभी साहित्यकारों को बुके देकर सम्मानित किया गया। उत्सव के संयोजक प्रो मुन्ना तिवारी ने सभी विद्यार्थियों का आह्वान किया कि आप अपनी मातृभाषा को बिना किसी झिझक गर्व के साथ बोली। ऐसा करके आप हिंदी को ही समृद्ध करेंगे। उन्होंने सभी अतिथियों को गर्मजोशी से स्वागत भी किया। इस कार्यक्रम में डा अचला पाण्डेय, डा श्रीहरि त्रिपाठी, डा नवीन चंद्र पटेल, डा जय सिंह, उमेश शुक्ल, डा प्रेमलता श्रीवास्तव, डा शैलेन्द्र तिवारी,डा द्युति मालिनी,डा सुनीता वर्मा, डा पुनीत श्रीवास्तव, डा उमेश कुमार, डा प्रशांत मिश्रा, डा श्वेता पाण्डेय, अभिषेक कुमार, अतीत विजय, शाश्वत सिंह समेत अनेक लोग और विद्यार्थी उपस्थित रहे। संचालन डा अजीत सिंह ने किया। अंत में डा सुनीता वर्मा ने आभार व्यक्त किया।